सोमवार, 23 अप्रैल 2018

Digital World



डिजिटल दुनिया के खतरे 


आउटलुक का 23 अप्रैल का अंक डिजिटल दुनिया के स्याह पहलुओं पर बारीकी से प्रकाश डालता है। फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण के बाद आम आदमी की सोच और निणर्य लेने की क्षमता पर सवाल खड़े होने लगे है। प्रसंगवश मुझे रामधारी सिंह दिनकर की कुरुक्षेत्र में लिखी दो पंक्तियाँ याद आती है -
सावधान ! मनुष्य यदि विज्ञानं है तलवार 
तो फेंक दे ,तज मोह , स्मृति के पार। 

फेसबुक जोकि पहले सोशल साइट थी आज डेटा से सबसे बड़े भंडार के तौर पर एक परमाणु बम सरीखी लगने लगी है। हरवीर जी ने  सम्पादकीय में बिलकुल सही कहा है -अगली पीढ़ी की तकनीक से सामने हम निहथे है। विश्व में अभी बड़ी तादाद में आबादी शिक्षा से वंचित है , डिजिटल शिक्षा उनके लिए दूर की कौड़ी है। ऐसे में डिजिटल शिक्षा से वंचित लोग आने वाले समय से सबसे कमजोर , सुभेद्य होंगे। इसलिए जब समावेशी विकाश की जब बात की जाय तो इसे केवल आवास , टायलेट , बैंक खाते तक न रखा वरन इसमें डिजिटल दुनिया के सभी पहलुओं पर ज्ञान को भी शामिल किया जाना चाहिए। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 



















गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

That air hostess


वो अशिष्ट एयर होस्ट्रेस 


13 अप्रैल 2018 की दिल्ली के एयरपोर्ट - टर्मिनल 3 से जेट एयरवेज की अहमदाबाद को जाने वाली रात 11 बजे की फ्लाइट।


यह लगातार  तीसरी रात थी  मैं चाह कर भी सो नहीं पा रहा था। पिछले 72 घंटो में 1 घंटे भी सो नहीं पाया था। फ्लाइट कुछ देर से आयी थी। पहली बार जेट एयरवेज की फ्लाइट ली थी इसलिए हर चीज पर गौर कर रहा था। विमान में इंडिगो की तुलना में सीट में ज्यादा स्पेस था। मेरे पड़ोसी दो बुजुर्ग पति पत्नी थे और मैं यह ऑब्ज़र्व कर चूका था कि वो पहली बार उड़ने जा रहे है। मैं बुरी तरह से थका , निढाल था। हमेशा की तरह मेरी विंडो सीट थी . मै चुपचाप आँखों को बंद कर बैठा था। विचारों की अनगिनत , अनवरत कड़ियाँ। इन विचारों के चलते ही अनिंद्रा का शिकार हो चूका हूँ। 

तभी इमरजेंसी लैंडिंग से जुडी डेमो देने की बारी आ गयी। न जाने क्यू मेरी नजर पीछे की तरफ चली गयी। मै बस देखना चाह रहा था कि एयर होस्ट्रेस कहां खड़ी होकर डेमो देंगी। मैंने नोटिस किया उनमें से एक के मुहँ के पास सफेद पाउडर सा कुछ लगा है। ऐसा लगा कि वो कुछ खा रही थी और हड़बड़ाते हुए जल्दी से डेमो देने के लिए आ गयी हो।  


इंडिगो की फ्लाइट में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता , जिसको जो खाना हो खरीद कर खाओ। इस फ्लाइट में हर किसी के लिए लाइट नाश्ता था। वो एयर होस्ट्रेस वेज , नॉन वेज का ऑप्शन पूछती हुयी नाश्ता देती हुयी आ रही थी। मुझे लगा कि अपने बगल की बुजुर्ग यात्रियों की मदद करनी चाहिए। मेरी सीट के पास आकर भी वही पूछा - वेज / नॉन वेज। मैंने कहा -आप इन्हें शाकाहारी / मांसाहारी में पूछिए, ऐसे समझ नहीं पायेगें।  वो बोली क्यों समझ नहीं पाएंगे। अब मैं उससे बहस नहीं करना चाहता था। वो नाश्ता देकर आगे बढ़ गयी। मैंने नोटिस किया कि उसने टी के लिए मिल्क , सूगर के पैकेट, स्टिक  और कप तो दिए है पर गर्म  पानी तो दिया ही नहीं। मैंने उसे टोका तो बोली - पानी गर्म है कही किसी के ऊपर गिर न जाये और वो जल जाये इसीलिए नहीं दे रही हूँ।उसके जबाब में हिकारत सी नजर आयी। ऐसा लगा कि कह रही हो कहाँ - कहाँ से आ जाते है। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उन बुजुर्ग दंपति के  साथ हूँ। मैंने कहा -नहीं।   


गलती होना अलग बात है पर किसी को  बेवकूफ बनाना या समझना मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। ये क्या लॉजिक हुआ कि पानी गर्म है कोई जल सकता है। सीधे सीधे बता सकती थी कि गर्म पानी खत्म हो गया। मैंने नास्ता करते हुए देखा कि वो बुजुर्ग सैंडविच में वो सफेद मिल्क पावडर डाल कर खाने की कोशिस कर रहे थे। मैंने उन्हें रोका और बताया कि यह ड्राई मिल्क है टी बनाने के लिए। इससे पहले कि वो पूछते कि टी कैसे बनानी है , मैंने उन्हें पूरी बात समझायी कि गर्म पानी नहीं मिला इसलिए चाय भूल जाओ। 

सच कहूं तो मेरा चाय पीने का जरा भी मन न था क्यूँकि चाय के बाद मुझे नींद और भी न आती मुझे रह रह कर  उन बुजुर्गों के साथ जो बदतमीजी की गयी थी पर गुस्सा आ रहा था। मैं उस अशिष्ट एयर होस्ट्रेस से बहस करने के मूड में नहीं था दरअसल थकान से मेरा बदन टूट रहा था। हाँ , मन में एक ख्याल जरूर आ रहा था कि इसको सबक जरूर सिखाना है। कुछ देर बाद कचरा लेने सीट के पास आयी। मैंने विन्रमता से उसका नाम पूछा - पल्लवी - उसने कहा।  

इसके बाद बारी थी अपने  सहयात्रियों से जानकारी जुटाने की। बातों ही बातों में पाता किया। वो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से थे। सिंचाई विभाग से हाल में ही सेवानिवृत हुए थे। गांधीनगर , गुजरात में उनका बेटा रहता था जो इंडियन नेवी में काम करता है। उनका नाम ओमप्रकाश ( शायद ,क्यूँकि मैंने बस अपने मन में नोट किया था ) था। फ्लाइट लैंड करने के समय एक बार फिर मैंने पुरे ध्यान से सुना - पल्लवी। आज की फ्लाइट के केबिन क्रू मेंबर के तौर पर यही नाम दोहराया गया। 

कहानी पूरी सच्ची है पर अपने कोई निष्कर्ष निकला या नहीं। क्या आप बता सकते है कि पल्लवी के मुँह पर मैंने जो  सफेद सा पावडर देखा था वो क्या था ? अरे , एक बात तो बताना भूल ही गया मैंने अपनी प्लेट में सुगर और मिल्क पाउडर खोले बगैर ही छोड़ दिया था। 


माननीय प्रधानमंत्री जी ने उड़ान ( उड़े देश का आम नागरिक ) योजना के तहत हवाई यात्रा के किराये काफी सस्ते कर दिए हैं। यह भी सच है कि  हवाई चप्पल पहनने वाला भी आज उड़ सकता है पर विमान के अंदर जो आम आदमी के साथ हिकारत , बदतमीजी होती है उसका क्या। कभी डॉक्टर को पीटा जाता है , मच्छर की शिकायत करने पर उसे उतार दिया जाता है। 

प्रिय दोस्तों ,  उन बुजुर्ग के साथ जो हुआ , उसकी पुनरावृति दोबारा न हो। इसलिए इस पोस्ट को जमकर शेयर करे ताकि जेट एयरवेज अपने केबिन क्रू मेंबर की अभिवृति में बदलाव लाने पर मजबूर हो। मेरा जेट एयरवेज को यही सुझाव है कि वह अपने क्रू मेंबर को ड्राई मिल्क पाउडर एक्स्ट्रा दिया करे ताकि वो यात्रियों से चोरी करने और चुरा कर खाने के लिए बाध्य न हो। 

धन्यवाद। 


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

























शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

OUTLOOK- PRIZE WINING LETTER

ख़ुदकुशी क्यों इतनी  26 मार्च 2018 अंक 

ख़ुदकुशी के संदर्भ में हरिमोहन मिश्र जी का लेख , समकालीन समय की विसंगतियों को पारदर्शी चित्रण करता है। मानव जीवन अनमोल है और इस अनमोल जीवन को यूँ ही हार कर गवां देना उचित नहीं कहा जा सकता है। हमने समय से साथ खूब प्रगति की है पर अपने मानवीय मूल्यों में पिछड़ते जा रहे है। चाहे गांव हो या शहर , हर इंसान तेजी से भाग रहा है। उपभोक्तावादी दौर में नूतन उत्पादों की अमिट लालसा , तमाम पैसे की ख्वाहिश , अपनी हैसियत से बड़े सपने  आदि कुछ बिंदु है , जिनके चलते मानव सकून खोया है और तनाव पाया है। तनाव इतना चरम सीमा पर कि उचित -अनुचित का ख्याल रखे बगैर खुद के साथ साथ अपने परिवार को मार देना , जैसे रिवाज सा बनता जा रहा है। एक और महत्वपूर्ण बात , ऐसा नहीं है कि आत्महत्या करने वाले लोग पढ़े लिखे व समझदार लोग नहीं होते। पिछले साल बिहार के एक जिलाधिकारी ने दिल्ली जाकर आत्महत्या को चुना। उन्होंने मरने से पहले पुरे होशोहवास में नोट और वीडियो भी बनाया था। किसान से लेकर जिलाधिकारी तक आखिर आत्महत्या के चलन तेज होने की वजह क्या है ? दरअसल समाज में समरसता ,लगाव , आत्मीयता , भ्रातृत्व, सेवाभाव , सामाजिक उत्तरदायित्व , परोपकार  जैसे गुणों का तेजी से क्षरण होने लगा है। एकाकीपन , अलगाव , अजनबीपन , पहचान का संकट , उपेक्षा , झूठी शान आदि के चलते समाज में आत्महत्या की दर तेजी से  बढ़ी है। विकल्प यही हो सकता है कि हम भले चाँद , मंगल पर बस्ती बनाने का सपना भले रखे पर समाज में मुलभूत मानवीय गुणों को भी साथ लेकर चलने का प्रयास करें।  


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

BUDGET 2017-18

ऐतिहासिक व अभूतपूर्व बजट 

योजना का बजट अंक हमेशा से अपने सारगर्भित , विश्लेषणात्मक व रोचक लेखों के लिए हमेशा से लोकप्रिय  रहा है। पहले ही लेख में वस्तु एवं सेवाकर प्रणाली के आधार स्तम्भ माने जाने वाले  हसमुख अढ़िया जी ने  सम्पूर्ण बजट को साररुप में प्रस्तुत कर दिया गया है। उनका ठीक ही कहना है कि क्रेन्द्रिय बजट २०१८-19 का आधारभूत दर्शन "गरीबी हटाओ , किसान बचाओ " है। भारत देश कृषि प्रधान देश है जहां की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। तमाम उपायों के बावजूद किसानों की हालत जस की तस बनी हुयी है , इसके चलते ही इस वर्ष के बजट में किसानों के लिए बने स्वामीनाथन आयोग (2007 ) की सिफारिशों के अनुरूप उनकी लागत मूल्य का डेढ़ गुना दाम दिए जाने का प्रावधान किया गया है। किसानों की फसल का बीमा , सिंचाई के प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना , ई नाम , परम्परागत कृषि विकास योजना आदि पर फोकस किया गया है। आलू , प्याज और टमाटर के लिए  'ऑपरेशन ग्रीन'( 500 करोड़ रूपये ) की शुरुआत की जाएगी। खाद्य प्रसंस्करण के लिए 'सम्पदा योजना' की लागू की गयी है। इससे किसान अपनी फसल का मूल्य संवर्धन कर ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकेगें। देश की सभी मंडी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जोड़ा गया है। 22000 कृषि हाटो को कृषि बाजार में अपग्रेड किया जायेगा। इससे बिचौलियों का खत्मा होगा और किसान अपनी फसल सीधे बेच सकेंगे। इन कदमों से निश्चित ही माननीय प्रधानमंत्री जी का किसानों की आय वर्ष 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा। 
बजट के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण बिंदु स्वास्थ्य पर के रेड्डी जी ने अपने लेख में बखूबी विश्लेषित किया है। आयुष्मान भारत , विश्व के सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है जिससे भारत के 50 करोड़ आबादी लाभ पायेगी। समन्वित परिवहन पर अरविन्द जी का लेख परिवहन पर कुछ नवाचारी कदमों पर जोर देता है। निश्चित ही भारत में जलीय परिवहन के क्षेत्र में असीम सम्भावनाये छुपी हैं। ऋतु सारस्वत जी ने अपने लेख में महिलाओं के लिए इस बजट में महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया है। पिछले कुछ सालों में हमने महिलाओं पर क्रेन्द्रित योजनाओं यथा बेटी पढ़ाओ -बेटी बचाओ , सुकन्या समृद्धि योजना , मुद्रा योजना , स्टैंड अप योजना में बहुत अच्छी प्रगति की है। समग्रतः यह बजट ऐतिहासिक व अभूतपूर्व है और इस पर क्रेन्द्रित योजना का विशेषांक एक संग्रहणीय अंक बन पड़ा है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  



















बुधवार, 28 मार्च 2018

An evening in mukherjee nagar, delhi

भइया क्या चाहिए ?


हमेशा की तरह इस बार शुरुआत खाने से हुई । अग्रवाल स्वीट्स में इमरती खाने से हुई , काफी अरसा हो गया था इसे खाये हुए । इसके बाद कुछ पत्रिकाओं , किताबों की खरीद और फिर यूँ ही घूमना और भीड़ को देखना । जब भी मुखर्जी नगर आना होता है लगभग यही रूटीन रहता है। शाम का वक़्त, सैकड़ो युवा चाय, काफी , मोमोज, रोल खाने में मस्त और हाँ किताबों , नोट्स, फ़ोटोकॉपी खरीदने में व्यस्त। इस भीड़ में मैं कुछ पढ़ने की कोशिस करता हूँ । एक युवा , पीठ पर बैग लटकाये, रोल खाने में व्यस्त। शायद किसी कोचिंग से 4 घंटे की क्लास करके निकला होगा। सोचता हूँ क्या सपना लेकर यह यहां आया होगा।
एक फोटोकॉपी की दुकान के सामने से गुजरा तो दूर से ही लड़के ने पुकारा -भइया क्या चाहिए ? मैंने गंभीरता से कहा - स्टूल ।
वो अकबकाते हुए मुझसे पूछा -स्टूल?
"हाँ , वो अंदर जो स्टूल पड़ा है वो यहां बाहर लाकर डाल दो । मैं तापमान नापने वाला हूँ और कुछ देर यहाँ बैठ कर तापमान नापना चाहता हूँ।"
पता नही उसको मेरी अलंकारिक भाषा समझ आयी या नही पर उसने बाहर स्टूल लाकर डाल दिया। लगभग 30 मिनट , वहाँ बैठा , भीड़ को पढ़ता रहा।
( ठीक 4 घण्टे पहले , बत्रा सिनमा के सामने की घटना )

मंगलवार, 6 मार्च 2018

दुक्खम सुक्खम : A novel by Mamta Kaliya



दुक्खम सुक्खम  : ममता कालिया का व्यास पुरुस्कार से सम्मानित उपन्यास 


274 पेज का यह नावेल वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ था। इसे 27 वा , 2017 का व्यास सम्मान दिया गया है । 9 दिसंबर की पोस्ट में मैंने लिखा था कि इसे पढ़ने वाला हूँ। तब इसे धीरे धीरे पढ़ता रहा और पिछले दिनों इसे खत्म कर लिया। इस नावेल को खरीदने के बजाय हिंदी समय की वेबसाइट पर जा कर इसे पढ़ता रहा। डिज़िटल संस्करण का फायदा था कि इसे आप चाहे जहाँ पढ़ सकते है। 

ममता जी के एक साक्षात्कार में मैंने पढ़ा था कि यह नावेल उनके पिता की कहानी है। पुरे नावेल में यह बात जेहन में रही और मैंने निष्कर्ष निकला कि कवि मोहन उनके पिता है और उनकी दो बेटी है।  छोटी बेटी के रूप में स्वंय ममता जी ने अपने आप को चित्रित किया है। नावेल के अंतिम पन्नों में काफी बेबाकी से एक किशोर लड़की का चित्र खींचा है। यह उपन्यास दरअसल महात्मा गांधी के महिलाओं पर पड़े प्रभाव की पृष्ठभूमि में लिखा गया.

कथानक वहाँ से शुरु होता है जहाँ कविमोहन , आगरा में रह कर पढ़ाई कर रहा है। आजादी के 20 , 30 पहले से कहानी शुरू होती है। कवि की माँ , पिता , उसकी पत्नी के बारे बताते हुए नावेल आगे बढ़ता है। देखा जाय तो ममता जी का यह नावेल एक परिवार की पूरी कहानी है। हर छोटी -बड़ी घटना है इसमें। कवि की माँ यानि ममता जी की दादी , गाँधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित है। वो एक गीत गाया करती थी - 

कटी जिंदगानी , कभी दुक्खम , कभी सुखम। 

इसी से इस नावेल का शीर्षक लिया गया है। सच में नावेल में सुख और दुःख के विविध प्रसंग है। कहानी वहां खत्म हो जाती है जहां कवी की माँ मर जाती है।  कवि की छोटी बेटी यानि ममता अपनी दादी को बहुत याद करती है। मथुरा , आगरा , दिल्ली और पुणे तक यह नावेल फैला है। पुणे में कविमोहन रेडियो में कार्य कर रहे होते है। समग्रतः यह नावेल पठनीय है खास तौर पर आप आराम से , सकून से ज्यादा दिमाग पर जोर न  डालते हुए कुछ सरस् पढ़ना चाहते हो तो इसे पढ़ सकते है। 



आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

A very bad time for me and my family



प्रिय दोस्तों , 23 फरवरी 2018 को मेरे छोटे भाई विकास ( आयु -25 वर्ष ) जोकि लेखपाल के तौर पर जॉब कर रहा था एक सड़क दुर्घटना में  मौत हो गयी है। 2010 में पिता जी मौत के बाद धीरे धीरे परिवार में चीजे काफी हद तक व्यस्थित हो गयी थी पर इस दुखद घटना की क्षति कभी न हो सकेगी। मन में बहुत दुःख है , धीरे धीरे उबर रहा हूँ। अब जब कि सब कुछ बहुत अच्छा और सही चल रहा था , इस तरह भाई का जाना मुझे अंदर से तोड़ दिया है। अभी भी पूरी तरह से यकीन नहीं हो रहा है कि वह अब नहीं रहा। उस पर विस्तार से लिखना है पर अभी मै इस स्थिति में नहीं हूँ कि उस पर ज्यादा बात कर सकूं।  

दो और भी बातें है जो निश्चित ही बेहद प्रसन्नता का विषय होती अगर वो होता पर अब मुझे विशेष खुशी नहीं हो रही है हालांकि यह मेरी हॉबी से जुडी चीजे है-

प्रकाशन विभाग से छपने वाली दो पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुयी है -
 १. बाल भारती ( मार्च 2018 अंक )- कहानी - एंजेल और उसकी सफाई सेना 
२.  कुरुक्षेत्र ( मार्च 2018 बजट अंक ) - लेख - समावेशी शिक्षा की ओर बढ़ते कदम 

अगर संभव हो तो पढ़ कर बताना कैसी लगी ?

-आशीष 

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

How to double former income


[ This letter has been published in yojna hindi feb 2018 issue .]

'बैकिंग सुधार' पर क्रेन्द्रित योजना का जनवरी 2018 अंक मिला। आजादी के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में बैंको की बेहद अहम भूमिका रही है। 2008 के वैश्विक मंदी के दौर में जब अमेरिका के बेहद मजबूत बैंक , एक एक कर धराशायी हो रहे थे , भारतीय बैंक बेहद मजबूती के साथ टिके रहे। पिछले कुछ वर्षों से  भारतीय बैंक "अनर्जक परिसम्पतियों" के भार से जूझ रहे है।इसका प्रभाव , भारत की सकल वृद्धि दर पड़ रहा  है। भारत सरकार ने बैंको की मजबूती के लिए कई अहम कदम उठाये हैं यथा इंद्रधनुष योजना , बैड बैंक का गठन , दिवालिया कानून में संशोधन आदि। पिछले दिनों सरकार ने बैंको में 2.11 लाख करोड़ रूपये पूँजी निवेश कर इनको बड़ा सहारा दिया है। इस पूंजी के चलते बैंको को जहाँ अपने घाटे को कम करने में मदद मिलेगी , जिसके चलते वह बेसल -3 मानक के अनुरूप बन सकेंगे , दूसरी ओर वह ऋण के प्रवाह को बढ़ा सकेंगे। इस तरह से सकल अर्थवयस्था में तेजी आएगी। 

जरा हटके स्तम्भ के तहत युद्धवीर मलिक के का "भारतमाला" पर आलेख बहुत अच्छा लगा। निश्चित ही भारत को वैश्विक महाशक्ति बनने में राजमार्गो प्रमुख भूमिका निभा सकते है। भारत में मॉल परिवहन विकसित देशो से तुलनात्मक रूप में बेहद शिथिल है।  राजमार्गों के विस्तार , उन्नतिकरण के जरिये भारत आंतरिक व्यापार के साथ साथ वैश्विक स्तर पर अपने उत्पाद तेजी से पहुंचा सकता है। सन्नी कुमार जी ने अपने लेख में बैंको की कृषि विकास में भूमिका को स्पष्ट  किया है। अगर हमें किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करनी है तो कृषि में भारी पूंजी निवेश के जरिये कोल्ड चेन स्टोरेज , उन्नत कृषि यंत्रो की खरीद , बीज शोधन , सिंचाई की नूतन तकनीक को अपनाना होगा। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

Muktibodh ki kvita

मर गया देश , जीवित रह गए तुम 


                  'आजकल' का प्रगतिवादी कवि मुक्तिबोध की जन्मशती पर केंद्रित अंक समय पर डाक द्वारा मिला। लेखों पर राय देने के पूर्व मै आजकल की पूरी टीम को उनकी मेहनत के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ विशेष रूप से पत्रिका की ऑनलाइन सदस्य्ता की सुविधा के लिए। इसके चलते पाठकों को बहुत ज्यादा सुविधा हुयी है। मैंने अपने कुछ मित्रो को इस सुविधा का लाभ दिलवाया है। 

                  'मुक्तिबोध' को आसानी से नहीं समझा जा सकता है। उनकी कविता की संवेदना , उनके फैंटेंसी शिल्प की समझ के लिए पाठक को बहुत गहराई में पैठना पड़ता है ठीक जैसे उनकी ब्रम्हराक्षस कविता में ब्रम्हराक्षस बावड़ी की गहन गहराइयों में डूबा हुआ है। मुक्तिबोध के लिए कविता समाज की दशा को सटीकता से दिखलाने तथा उसको वांछित दिशा देने का अचूक जरिया थी। उनके ही शब्दों में- 
" जो है उससे बेहतर चाहिए , 
पूरी दुनिया को साफ करने के लिए मेहतर चाहिए
और जो मै हो नहीं पाता हूँ। "  

         मुक्तिबोध की कविता में व्यक्ति व समाज की टकराहट है। वह बुद्धिजीवियों की निष्क्रियता, उदासीनता पर जमकर चोट करते है।  तभी वह लिखते है - 
"लिया बहुत बहुत , दिया बहुत कम 
अरे मर गया देश , जीवित रह गए तुम।।"

         इस अंक में रोचक व सरस् संपादकीय , डबराल जी के लेख की गहनता , प्रभा दीक्षित जी के लेख की रोचकता तथा सुनीता जी के संक्षिप्त किन्तु विशिष्ट लेख बहुत पसंद ही सुंदर बन पड़े है। रंगमंच पर कविता जी लेख मोहन राकेश जी के नाट्य कर्म को रोचकता से प्रस्तुत किया गया है। समग्रतः यह अंक पठनीय होने के साथ साथ संग्रहणीय बन पड़ा है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Banking Charges

कितने उचित है बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क ?


पिछले दिनों कुछ बैंक द्वारा विविध सेवाओं के लिए ग्राहकों से शुल्क वसूलने या उनमें वृद्धि  के लिए घोषणा की गयी है। भारत में अभी भी बहुत से लोग वित्तीय समावेशन से महरूम है। सरकार ने जन धन योजना के माध्यम से करोड़ो की संख्या में खाते खुलवाए है। इन खातों के माध्यम से , गरीब , पिछड़े आम तबके के लोगों को संस्थागत वित्तीय प्रणाली में बने रहने के उद्देश्य की पूर्ति के लिहाज से बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क उचित नहीं कहे जा सकते है। निश्चित तौर पर बैंक इनके जरिये अपनी आमदनी बढ़ा कर , अपने घाटे की पूर्ति करना चाहते है। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि करोड़ो रूपये की अनर्जक परिसम्पति के घाटे की कीमत आम खाता धारक क्यों उठाये। आखिरकार इन बढ़े शुल्कों के बदले में खाताधारक के कौन से हितों की पूर्ति होगी। यह कौन सा न्याय है कि बड़े कर्जदारों की चोरी का परिणाम , आम खाताधारक भुगते। सरकार को इसमें हस्तझेप कर इसे रोकना चाहिए ताकि जन धन योजना जैसे वित्तीय समवेशी उपायों का लाभ समुचित रूप से आम जन उठा सके। 


आशीष कुमार 
उन्नाव  , उत्तर प्रदेश।   

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