नमन उन गुरुजनों को
आशीष कुमार
प्रायः हम कई वादे अपने आप से करते है पर जरूरी होते हुए भी पूरे नही कर पाते है। तमाम टीचर डे गुजरे , मुझे अपने प्रिय अध्यापकों की याद भी खूब आयी पर दो शब्द न उनसे कहे , न लिखे। हर बार लगा जब फुरसत होगी तब मिलूंगा , लिखूंगा उन पर। आज उन पर दो शब्द। वैसे कबीर ने गुरु पर लिखा है कि सतगुरु की महिमा अनंत। उस अनंत महिमा में दो शब्द में लिखने का लघु प्रयास -
१. श्री उमाशंकर ( मास्टर जी , ईशापुर , चमियानी , उन्नाव ) - सर मेरे गांव के है। मेरे गांव में लगभग हर घर में सरकारी नौकरी है और उसके पीछे मास्टर जी मेहनत का ही योगदान मैं मानता हूँ। उनके पास कक्षा -5 से कक्षा -8 तक घर पर टूशन (३०/40 रूपये महीने ) पढ़ने जाता था। उन्होंने मेरी मैथ बहुत अच्छी तैयार करवाई थी। जो मुझे आगे बहुत काम आती रही। दरअसल अंकगणित ( नल व टंकी , रेल , मजदुर और दीवाल वाले सवाल आदि ) का बेस अगर मजबूत हो तो आप कभी पिछड़ नहीं सकते। तमाम चीजे वहाँ से सीखी। जीवन की पहली प्रतियोगी परीक्षा ( नवोदय विद्यालय ) की तैयारी उनसे ही सीखी। हर रविवार वो इसकी पढ़ाई कराते थे। नवोदय में सफल तो न हुआ पर बाद में एकीकृत परीक्षा ( जिसमें लखनऊ के स्कूल में एडमिशन मिलता है , पता नहीं अब यह परीक्षा होती भी या नहीं ) में सफल हुआ। उन्होंने मेरी अंग्रेजी , गणित , रीजनिंग, जी.के. खूब मजबूत कर दी थी। जिसका लाभ मुझे हर जगह मिला। हर बार जब गांव जाना होता तब उनसे मिलता जरूर हूँ। इस बार मिठाई से साथ मिला और मुझे महसूस हुआ कि निश्चित ही मेरी सफलता , उन्हें भी गर्वित करती है। उन्हें ह्रदय से नमन।
2. श्री रितेश सिंह ( गुड्डू भईया , मौरावां उन्नाव )- हाईस्कूल पास करने के बाद मैंने इंटर की पढ़ाई मौरावां के के. न. पी. न. इंटर कॉलेज से की। भइया नवोदय से पढ़े है और मौरावां में कोचिंग पढ़ाते है। एक बार कक्षा -8 के दौरान मै मौरावां गया था , भइया के पास कुछ लड़के टूशन पढ़ने आये थे , मैं भी बैठ गया। कुछ सवाल दिए गए lcm और mcm के। मुझे तो याद नहीं पर उस बैच में कुछ भावी सहपाठी(सुदीप मिश्रा ) बैठे थे, जो उस दिन की मेरी गणित में तेजी देख अत्यधिक प्रभावित हुए। इसके बाद तमाम बातें है जो पहले मैंने पोस्टों में जिक्र किया है। भइया ने मुझे जीवन के तमाम विषयों में रूचि पैदा की। वही पर चेस खेलना ( आगे मैंने यूनिवर्सिटी लेवल तक भी खेला) , बैडमिंटन खेलना सीखा। नावेल पढ़ने की लत वही लगी। वहां से मैंने कोर्स की किताबें कम , अन्य विषयों की किताबे ज्यादा पढ़ने लगा। नतीजा यह हुआ कि एकेडमिक में मैं पिछड़ता गया पर एक बौद्धिक व्यक्तित्व की नींव पड़ने लगी। उन दो सालों में मैंने खूब नावेल पढ़े ( मौरावां के पुस्तकालय में ). भैया के पास इंग्लिश की कोचिंग पढ़ता था और उनके सानिध्य के चलते 12 में सबसे ज्यादा अंग्रेजी में अंक पाए। तमाम बातें के बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि भैया ने मुझे दोनों साल में फ़ीस न ली ( 60 रूपये महीने ). सतगुरु की महिमा अनंत है इसलिए ज्यादा विस्तार में न जाते हुए , यही कहूंगा कि व्यक्तित्व निर्माण में भैया का रोल काफी अहम रहा है। इस बार सफल होने के बाद , उनसे भी मिला अच्छा लगा। पता चला उनकी कोचिंग में अब हर कोई आईएएस की तैयारी करने की सोचने लगा है।
3. श्री सुशील पांडेय ( भागीदारी भवन , लखनऊ )- सर भागीदारी भवन में इतिहास पढ़ाने आते थे। उनकी क्लास बड़ी रोचक होती थी। तमाम लोग इस बात से असहमत हो सकते है कि क्लास में सिर्फ कोर्स पढ़ाना चाहिए या फिर कोर्स के अलावा चीजे बतानी चाहिए। सर , की यह बात अच्छी लगती थी कि वो आईएएस , pcs से जुडी तमाम बातें बताते रहते थे। बड़ा मोटिवेशन मिलता था। सर , क्लास में मेरे ऊपर बड़ा स्नेह रखते थे। अगर कोई नोट्स लाते तो मुझे ही देकर जाते थे।इस उम्र में भी मेरे कान खींच लेते पर मुझे बुरा न लगता था। सर एक अच्छे परिवार से आते थे.कई आईएएस , आईपीएस उनके खास सम्बन्धी है। सर का वो दौर संघर्ष भरा था। पिछले महीने सिविल सेवा में सफलता पाने के बाद उनसे बात हुयी और उन्होंने सुचना दी कि उनका चयन एसो. प्रोफेसर के पद पर लखनऊ विश्विद्यालय में हो गया है ,बड़ी खुशी हुयी। इस बार उनके घऱ मिलने पहुंचा तो सर से मुलाकात न हो सकी पर एक वादे के साथ अगली बार उनके घर एक दिन बीतेगा और साथ में डिनर होगा , मैं वापस अहमदाबाद आ गया।
मैंने अपने जीवन में छोटी बड़ी तमाम सफलताएं ( प्रतियोगिता परीक्षा , लेखन आदि ) पायी है। सरकारी स्कूलों में ही पढ़ा। पढ़ाई के लिए उन्नाव से बाहर कही निकला नहीं। मन में इस बात की कही न कही कुंठा भी रही कि इलहाबाद , बनारस , जे एन यू आदि में पढ़ता तो कितना अच्छा होता पर ऊपर लिखे अध्यापकों ने हर कमी पूरी की। मैंने दो जगह फ़ीस का जिक्र इसलिए किया है ताकि पता चले कि कितने कम रूपये में कितनी अच्छी शिक्षा मिली है। तीनों लोगों ने मुझे पर विशेष स्नेह रखा , महत्व दिया। इनका मैं जीवन भर कृतज्ञ रहूंगा।
पाठकों के लिए एक जरूरी बात, सच्चे गुरु बड़ी मुश्किल से मिलते है अगर वो मिल जाते है तो उन पर अपार श्रद्धा रखना, उनका आशीर्वाद बड़े काम की चीज होती है।
- आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश
( हाल में घोषित सिविल सेवा परीक्षा 2017 में हिंदी माध्यम से चयनित )