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मंगलवार, 12 जून 2018

An evening in Mt. Abu

असली है क्या ?
आशीष कुमार 

कभी कभी हमारे जीवन में कुछ ऐसी बाते होती है जो होती बहुत सामान्य है पर आप उनको हमेशा सोचते रहते हो। वो चीजे मन मस्तिष्क से गुजरते ही मुस्कराने पर बाध्य कर देती है। उस छोटी सी घटना के 3 साल पुरे होने वाले है पर  मैं अब भी उस शाम की वो बात अक्सर याद करता रहता हूँ और सोचता हूँ आखिर उसने ऐसा क्यूँ कहा था ? उसके मन में क्या चल रहा था ? 

माउंट आबू में दो सन सेट पॉइंट है ( ज्यादा भी हो सकते है पर मैंने दो ही देखे ) . नक्की झील के आगे जो रोड जाती है उधर वाला ज्यादा फेमस और भीड़ भाड़ वाला होता है। उस शाम को मैं सन सेट पॉइंट पर ठीक 10 मिनट पहले ही पहुँचा था। खूब भीड़ थी। आगे लोग जगह घेर कर खड़े थे पीछे लोग सट कर बैठने लगे थे। ठीक बगल में 10 फिट ऊंची जगह पर बंदरों की एक टोली भी बैठी थी। मैं बार बार यही सोच रहा था कि अगर ये ऊपर से नीचे कूद गए और भगदड़ मच गयी तो ? हिल स्टेशन में सन सेट पॉइंट में होना और सूर्य को ढलते देखने का अपना आनंद होता है। तमाम लोग इसी आनंद के लिए जुटे थे पर लोग तो लोग होते है। इस भीड़ में भी उन्हें अलग से पहचाना जा सकता है। 

आप कुछ भी कहे - क्यों होता है , कैसे होता है पर मैं वो चीजे देख लेता हूँ , सुन लेता हूँ जो अनोखी होती है। जिन पर लिखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते है कि मेरी नजर व कान ऐसी चीजें देख व सुन ही लेते है। उस भीड़ में तमाम अंग्रेज पर्यटक भी थे। मेरे ठीक नीचे एक अंग्रेज किशोरी बैठी थी। उसके पीछे , उसकी माँ थी। बगल में एक आंटी ( वय 40 वर्ष बहुत सम्भव राजस्थान/गुजरात से ) बैठी थी। दरअसल थे तो तमाम लोग और एक दूसरे से सटे हुए पर बात इन्हीं पात्रो की ही है। अंग्रेज किशोरी के बाल पुरे गोल्डन थे और कर्ली थे ( कर्ली थे या उसने खास डिज़ाइन करवा रखी थी कहना मुश्किल है, काफी लम्बे और बहुत ही करीने से पूरी पीठ पर फैले हुए ) उसके बाल निश्चित तौर पर किसी का भी ध्यान खींच सकते थे। सूर्यास्त होने कुछ मिनट ही बचे थे शोर गुल बढ़ने लगा था। तभी मुझे सुनाई पड़ा - असली है क्या ? 

मैंने देखा- मेरी बगल की आंटी , उस किशोरी के बाल अपने हाथ में लेकर पूछ रही थी। किशोरी ने घूम कर देखा और जब तक कुछ समझती आंटी ने फिर उससे पूछा -असली है क्या। किशोरी और उसकी माँ थोड़ा सा हैरान थी। उस एक मिनट की घटना , मुझे तमाम चीजे सोचने पर बाध्य कर गयी। सबसे पहली बात आंटी ने बगैर यह समझे कि यह हिंदी समझेगी नहीं पुरे विश्वास से  हिंदी में पूछ रही थी। दूसरी बात आखिर आंटी को कितनी चुलबुली हुयी कि सूर्यास्त देखने के बजाय गोल्डन बालों की खूबसूरती देख कर उनसे रहा न गया जो बगैर हिचके उस किशोरी के बाल हाथ में पकड़ ली थी। सूर्य आधा ढल चूका था। प्रकृति ने आकाश में अपनी अनोखी छटा बिखेर रखी थी। थोड़ा और नीचे एक देसी लड़का कोई सस्ता सा चश्मा लगाता / हटाता और उसी सुनहरे बालों वाली किशोरी का ध्यान अपनी और खींचने का प्रयास करते हुए सस्ती सी घटिया हरकत कर रहा था। उस देसी लड़के की विदेशी दिखने की  हरकते , किसी सज्जन को भी शर्मिंदा कर सकती थी। मुझे  अतिथि देवो भव के तमाम विज्ञापन / आमिर खान  बहुत याद आये।   


फुटनोट :- इधर हमारे समाज में लड़कियों में गोल्डन बालों की लट रंगवाने का खूब चलन बढ़ा है( अब यह मत पूछना मुझे सब कैसे पता मैंने पहले भी बताया और लिखा भी है कि मेरा वर्तमान ऑफिस बहुत हाई फाई जगह पर है जहाँ लड़कियाँ बगैर हिचके हर समय सिगरेट पीते दिख जाती है, फिर गोल्डन कलर वाली लट तो बहुत आम बात है ) क्या पता उस फैशन  शुरुआत उन्हीं आंटी से हुयी हो जो माउंट आबू से लौट कर अपने बाल सुनहरे करवा लिए हो। 


©आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

( 12 जून 2018, अहमदाबाद  )  

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