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शनिवार, 21 नवंबर 2020

बथुए का साग और मास्टर जी

 

बथुए का साग और मास्टर जी 


आज जब सब्जी वाले के ठेले पर बथुए का साग देखा तो बहुत खुशी  हुयी। delhi में देशी चीज मिल जाये तो अलग ही आनंद मिलता है। वैसे कुछ दिनों से  पालक तो थोक के भाव खूब मिल रही थी पर बथुआ पहली बार दिखा। अब तो बढ़िया स्वादिष्ट साग व् पराठे बनेंगे , यही ख्याल बुनते हुए घर आ रहा था , इसी वक़्त मास्टर साहब याद आ गए। 

कक्षा 9  व 10 के समय वो मेरे अध्यापक थे। उनकी छवि बहुत सख्त व कंजूस किस्म के इंसान की थी। Government school me पढ़ाने के साथ साथ अलग से टूशन भी पढ़ाया करते थे। स्कूल से दूर एक बाग में नलकूप की एक कोठी थी , उसी में वो पढ़ाया करते थे। गुरु जी के बारे में तमाम कहानियां छात्रों के बीच में प्रचलित थी।जैसे कि उनके पास बहुत पैसे है फिर भी बड़ी कंजूसी से रहते है , एक कथा के अनुसार किसी बदमाश किस्म के छात्र ने गुरु जी को देसी असलहा दिखाकर उनसे उनकी सायकल लदवाकर 100 मीटर तक चलवाया था। दरअसल गुरु जी स्कूल में बहुत ज्यादा ही पीटा करते थे , इसके लिए भी लोग कहते थे जैसे कोई धोबी अपने खोये गधे को मिलने पर तबियत से पीटता है , वैसे ही गुरु जी छात्रों को पीटा करते थे। खैर वो अलग ही दौर था , अलग ही स्कूल हुआ करते थे , जहाँ अभिवावक खुद जाकर बोलते थे कि मास्टर साहब लड़का बिगड़ने न पाए मतलब बस हाथ पैर न टूटे बाकि चाहे जैसे पीटो। 


    

वैसे  तो तमाम किस्से है, जैसे कि एक जाड़े की सुबह मै tution जरा देर से पहुँचा तो गुरु जी ने बॉस के चार डंडे कस के हाथ में चिपका दिए , इस आरोप के साथ की रास्ते में कहीं आग लगाकर तापने बैठ गया होगा। उम्र 14 की थी , घर से स्कूल 10 किलोमीटर दूर था। सुबह 6 बजे पहुंचना था , पहला दिन था न पहुंच पाया तो गुरु जी ने माहौल बनाने के लिए पीट दिया। मेरे साथ दो चार और साथी थे वो पिटे। गुरु जी को टूशन के पैसे से बड़ा मोह था। डरे भी रहते कि कहीं कोई देख न ले , शिकायत न कर दे। आते व् जाते वक़्त सख्त हिदायत दे रखी थी कि एक साथ न निकलना ( वरना लोग देखते कि गुरु जी टूशन से बहुत पैसे छाप रहे हैं ). मेरे साथ में एक दलित छात्र भी टूशन पढ़ा करता था , उसको वो बड़ा बेइज्जत करते। उम्र छोटी थी पर इतना जरूर समझ आता कि उसके साथ वो ठीक न कर रहे है।किसी को fee देने में जरा भी देर हुयी कि समझो गुरु जी का पारा चढ़ा। 


गुरु जी को मुझसे कुछ स्नेह सा था। स्कूल के रास्ते में एक मेला लगा करता था। गुरु जी को मेरी आर्थिक स्थिति का ज्ञान था।एक दिन बोले मेला देखने जाओगे , मैंने कहा- नही , वो बोले अरे चले जाओ 2 रूपये मै दे रहा हूँ बस अगले महीने ध्यान से वापस जरूर कर देना। दो रूपये को कैसे खर्च करना है वो भी बता दिया पर मैंने गुरु जी को मना कर दिया। वजह आप समझ ही सकते हैं। 


गुरु जी की एक ही बेटी थी , सुनने में आता था कि उन्होंने अपने भाई के बेटे को गोद सा लिया है पर वो लड़का गुरु जी के सिद्धांतो में खरा न उतरा। बथुए के साग वाली बात भी बता रहा हूँ बस थोड़ी सी भूमिका और बना लूँ। उन्हीं दिनों उनकी बेटी , माँ के साथ आगे की पढ़ाई के unnao में जाकर रहने लगी। गुरु जी हर सप्ताह के अंत में वहाँ जाते और सोमवार को वापस आ जाते। शनिवार को जब वो गांव से उन्नाव जाते तो तमाम राशन पानी में बथुआ भी जाया करता। गुरु जी बथुए की दिल खोल कर प्रसंशा किया करते। मसलन कि बहुत पौष्टिक , सेहत के लिहाज से बहुत उपयोगी चीज है , बथुआ। आप सोच रहे है कि इसमें क्या खास बात है--- रुकिए गुरु जी बथुआ भी बाजार से न खरीदा करते थे। उनके अनुसार वो अपने गांव के कुछ छोटे छोटे लड़कों से यह काम कराया करते थे। उनके अनुसार 50 पैसे , एक रूपये में यह लड़के झोला भर बथुआ ला दिया करते है। मुझे उस टाइम भी यह लगता था कि गुरु जी उन लड़कों को इतने कम रूपये देकर शोषण कर रहे हैं पर कही दूसरे बहाने से मुझे पीट न दे , इसलिए मै भी इस अन्याय पर चुप ही रहा। 

पढ़ाई के बाद कुछ दिन तक तो गुरु जी से सम्पर्क रहा पर धीरे २ वो टूट गया।अब खबर न है कि वो किस हाल में हैं और अब बथुआ तोड़ कर लाने पर गांव के छोटे छोटे लड़कों को कितने रूपये देते हैं।  

©आशीष कुमार, उन्नाव।

21 नवंबर, 2020।

 






 









 

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

Chandni chauk

#चाँदनी चौक 

मेरी उस पर नजर पड़ी ही थी कि वो पास आ गया,
"भाई, ले लो। market में 1900  का बिकता है, मैं 500 में दे दूंगा। 
"नहीं "मैंने power bank पर हल्की सी नजर डाल कर नजर फेर ली। 
" साहब Samsung का है , सस्ते में दे रहा हूँ। चोरी करके लाया हूँ। नशा करने जाना है.. ले लो आप।" 
"नहीं "
उसके हाथ में दो पेन ड्राइव सी दिख रही थी।
" भाई, सब ले लो 500 में "  
"नहीं" 
"अच्छा 400..300..200 में भी नहीं " 
" नहीं " इस बार भी बस इतना ही बोला। उस नकली सी दिखने वाली समान न मुझे जरूरत थी, न ही उसके इस विचार में सहयोग करने की इच्छा कि चोरी का सामान है, नशा करने जाना है . 
लालकिला के ठीक सामने बेशुमार भीड़ में मेरी नजरें से फिर कुछ तलाशने लगी।

© आशीष कुमार, उन्नाव । 
29 अक्टूबर 2020।

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

करेली व अरहर की दाल

एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा 

वैसे ये करेली हैं, इनका स्वाद लाजबाब होता है। अरहर की गाढ़ी दाल, करेली की प्याज वाली बढ़िया खरी खरी सूखी सब्जी व चावल ( अगर थोड़ा चिपचिपे वाले भात बन जाय तो क्या ही पूछना ) ..इस पर बढ़िया शुद्ध देशी घी डालिये और स्वाद का अलौकिक आनंद लीजिये।

-आशीष

बुधवार, 26 अगस्त 2020

AAM PAPAD OR AMAVAT

अमावट/आम पापड़ 

पता नहीं जब आप इसे पढ़ने जा रहे, उससे पहले उक्त शब्दों को सुना है या नहीं। अगर आप गांव देहात से जुड़े है तो आपने अमावट के बारे में जरूर सुना होगा। अमावट यानी जिसको सुनकर ही मुँह में पानी आ जाय, क्या बच्चे क्या जवान सबके मुँह को भाने वाला। 

अभी अमावट खाते खाते इसके तमाम पहलुओं पर मन विचार करने लगा। अच्छा बता तो दूँ कि अमावट यानी क्या ...फलों के राजा आम के बारे में तो आप जानते ही होंगे। अमावट , Mango के रस से बनाया जाता है। आमों का रस निकालिये, एक कपड़े पर उसकी परत बनाइये, धूप में सुखाइये। अगले दिन उसी परत पर यही किया दोहराइए। आपको कई दिनों तक ऐसा करना पड़ेगा। तब जाकर तैयार होगा अमावट, जिसे ज्यादा साफ सुथरी भाषा में लोग आम पापड़ कह देते हैं।
मेरा जब भी home जाना होता, mother से एक ही फरमाइश होती कि कहीं से अमावट खरीद लेना। धीरे धीरे लोग अमावट बनाना बन्द कर रहे है, वजह इसमें बहुत ताम झाम होता है और यह बड़ी मेहनत व धैर्य का काम है।

मैंने ऐसा सुना है कि मेरे दादा के childhood में आम की बहुत बड़ी बाग हुआ करती थी। रोज बैलगाड़ी भर आम आया करते थे। मेरे बचपन मे पुरानी बाग के एक्का दुक्का पेड़ बचे थे, बड़े जबर व तगड़े। हमारे बचपन में एक झोला आम न मिलते तो bullckcart भर रोज के आम वाली बात फर्जी लगती।

खैर मेरे बाबा ने फिर से बाग लगाई, पुरानी बाग में देसी पेड़ ज्यादा थे। इस बार बाबा ने मीठे व स्वादिष्ट पेड़ो की पौध तैयार की। पेड़ रोपे गए, वो बड़े हुए और हमने अपनी आँखों से देखा। किसी किसी दिन बाग में 4 से 5 बोरा आम इक्क्ठा होते। घर आते। अब इतने आमों को खाये कौन..कुछ इधर उधर बाटे जाए । 
बचे आमों  दादी को बड़े से कठोलवा ( लकड़ी का बना बड़ा सा भगोना/ओखली) में मूसल से मसल मसल कर आमरस बनाते देखा। छत पर अमावट के लिए तमाम कपड़े पड़े रहते। वैसे अगर आप अमावट को बनते देख ले तो शायद कभी खाने का मन न करे। तमाम मखियाँ, पीली बर्र आमरस चाटने को बेताब दिखेंगी। आमरस को निकाल कर कपड़ो पर रोज परत बनाने का चाची करती थी। आम का सीजन खत्म होने पर घर में 50/70 किलो तक अमावट तैयार होता। यही हाल मौसी के घर पर भी देखा। मुझे याद है एक बार उनके घर 1 कुन्तल अमावट बेचा गया था। घर के खाने के लिए लोग अच्छे व मीठे आमों के रस को अलग निकाल कर अमावट के अच्छे साफ टुकड़े तैयार करते। बाकी काला, खट्टा, गीला अमावट बेचने को तैयार किया जाता। जितना साफ अमावट, उतने बढ़िया दाम।
( आम पूूड़ी )

इस बार भी घर गया तो अमावट याद आया। मां से पूछा कि अमावट तो बोली अब लोगों ने अमावट बनाना बन्द सा कर दिया। अबकि औरतों से कहाँ इतना काम हो पायेगा। एक दो लोगों को बताया कि उन्होंने अपनी जरुरत भर के लिए अमावट बनाया है, बेचेंगी नहीं। खैर , मुझे इस बार भी मां ने किसी जगह से अच्छी क्वालिटी के अमावट का जुगाड़ कर दिया। 
एक बात बताना भूल गया, अमावट को चाहे तो आप सूखा खाये अगर मन करे तो उसे एक दिन पहले पानी मे भिगो कर बढ़िया मीठी चटनी के रूप में खाये, मजा दोनों तरह से आएगा।
(अमावट को दांतों से चबाने में अलग ही आनंद आता है)

थोड़ा बौद्धिक स्तर पर बात करें तो अमावट के रूप में हमारे यहाँ अतीत से food processing का चलन है। लोग जब बहुत मात्रा में आम गिरने लगते तो उसके रस को धूप में सुखाकर संरक्षित कर लिया करते। उसे पूरे साल ( कई बार 2, 3 साल) तक उपयोग में लाते।

तो अब आप बताइए कि आप ने अमावट को चखा है या अभी इसके स्वाद से वंचित है ?

© आशीष कुमार, उन्नाव।
26 अगस्त, 2020।


रविवार, 16 अगस्त 2020

गाँव का आनंद



सिके हुए दो भुट्टे सामने आए
तबियत खिल गयी
ताज़ा स्वाद मिला दूधिया दानों का
तबियत खिल गयी
दाँतो की मौजूदगी का सुफल मिला
तबियत खिल गयी

बाबा नागार्जुन की एक कविता






धीमी आंच में नरम नरम , नमक के व नींबू के साथ

शनिवार, 1 अगस्त 2020

FRIENDSHIP DAY


आज किसी ने फ़्रेंड्स डे के लिए व्हाट्स एप पर विश किया तब ही याद आया इसके बारे में। इन दिनों इतने दिन मनाये जाने लगे हैं कि आये दिन कुछ न कुछ होता ही है।

मित्रता दिवस पर एक बात याद आ गयी। पिछले साल की बात होगी। मेरे फोन पर एक कॉल आयी। अहमदाबाद से कोई था। बोला कि " सर , आप मेरी दुकान पर चाय पीने आया करते थे, sir मैंने चाय की एक नई दुकान खोली है..बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप उद्घाटन पर आए .." मैंने दिमाग पर बहुत जोर डाला पर याद न आया कि कौन है ये..एक गुजराती जब हिंदी बोलता है तो चीजें समझी तो जा सकती हैं पर पूरी तरह से स्पष्ट नहीं।
वो कह रहा था कि अमुक भाई ने no दिया है , आप लाइब्रेरी आया करते थे , वही मेरी दुकान है ..
मेरा मन खुशी से अभिभूत था कि उसके बुलाये में कितना प्रेम व सम्मान है .. पर मै तब तक अहमदाबाद छोड़ चुका था, इसलिए उसे विन्रमता से मना करते हुए यह वादा किया कि जब अहमदाबाद आना होगा तब उसके दुकान पर चाय पीने जरूर आऊंगा।

हालांकि आज तक न जान पाया कि वो कौन सी दुकान से था। शायद पुरानी किसी पोस्ट में अहमदाबाद की चाय की दुकानों पर लिख चुका हूँ। क्या गजब चाय बनाते हैं.. खूब गाढ़ी, कड़क , खुशबूदार। खेतला आपा ( खेत के भगवान यानी सर्प ..यही लोगो है उनका) की s.g. highway ( सरखेज- गांधीनगर राजमार्ग ) वाली दुकान तो बहुत ही नामचीन है। एक बार मे 400 - 500 लीटर के भगोने में चाय बनती है जो 10- 15 मिनट में खत्म भी हो जाती है .. टोकन के लिए लाइन लगती है। मेरे ख्याल से वो 24 घंटे खुली रहती है।

अब उसकी कई फ्रेंचाइजी खुल गयी हैं। शायद राजकोट से यह शुरू हुई थी। उनकी चाय का बड़ा यूनिक से टेस्ट है। मैं जहां तक सोच पता हूँ मेरे पास जिस दुकान का फ़ोन आया था वो शुभ लाइब्रेरी के पास थी। काफी पुरानी दुकान थी। बहुत ही कड़क चाय होती थी। वो अपने समय से ही चाय देता था, अगर जल्दी देने को कहो तो भड़क जाता था, उसका कहना था कि जल्दी के चक्कर मे टेस्ट से समझौता नहीं कर सकता।

मुझे अहमदाबाद की तमाम चाय की दुकानें याद आती हैं। स्पीपा ( गुजराती सिविल सेवा का संस्थान ) , सेटेलाइट के गेट के दिनों तरफ की दुकानों की चाय बहुत सही मिलती थी। एक पुदीना वाली चाय की बड़ी फेमस दुकान थी, जहां एक बार dr के साथ , बारिश में चाय पकौड़े खाने गए थे। न्यू राणिप , जहां मैं रहता था, वहां पर भी एक बहुत सही दुकान थी। अच्छा चाय भी बजट के अनुरूप मिल जाती थी। रेहड़ी वाले अध्दि चाय मांगते जो 5 रुपये में मिल जाती थी। वो दिन में कई चाय पीते।  तमाम किस्से हैं वहां के चाय से जुड़े ..

वैसे आपको यह तो याद है ही न , हमारे माननीय  के जीवन में चाय का बड़ा महत्व रहा है वो भी गुजरात से ही है और आज किस मुकाम पर हैं वो.. इसलिए जब मुझे अहमदाबाद से चाय की दुकान के उदघाटन के लिए प्रेम से बुलावा आया तो यह मेरे लिए बड़े ही सम्मान की बात थी, पर परिस्थिति वश उसमें जा न सका।

 तमाम पाठकों को मित्रता दिवस की शुभकामनाएं

(सृजन वंदे भारत मिशन की ड्यूटी पर एयरपोर्ट जाते समय, )
© आशीष कुमार, उन्नाव
2 अगस्त , 2020।

बुधवार, 29 जुलाई 2020

AKELE ME

अकेले में 

पहले के दिनों में
जब भी अकेले होता
मिलता स्व से 
करता चिंतन, मनन
व आत्मावलोकन।

इन दिनों
जबकि मैं 
आपके प्रेम में हूँ,
अकेले में मेरे विचारों 
का क्रेंदबिंदु केवल व केवल
आपका ही ख्याल आता हैं।

अकेले में 
बुनता हूँ तुमसे जुड़े 
तमाम ख्वाब
हवा देता हूँ 
तमाम कल्पनाओं को

अकेले में 
सोचा करता हूँ 
तुम्हारी बिल्लौरी आँखों
की असीम गहराई,
घनी बदली सरीखे
तुम्हारे लहराते बालों
से खेला करता हूँ.

अकेले में याद आती 
आपकी वो चितवन,
मोहक मुस्कान,
हँसमुख चेहरा
साथ ही वो 
तमाम कहानियाँ
जो तुमने सुनाई 

आशीष कुमार , उन्नाव
29 जुलाई , 2020 


तुम्हारी 'न '

प्रिय अगर तुम
मापना चाहो 
मेरे प्रेम की हद
तो सुनो

ये जो मजाक में
भी जो तुम मुझे 
अस्वीकार करती हो
या कह देती हो 'नहीं' 

यह मुझे गहरे तक 
उदास कर जाता है,
पल में लगती हो
कि तुम कितनी अजनबी
जैसे कि मेरा कोई हक 
न बाकी रहा हो।

© आशीष कुमार, उन्नाव
21 जनवरी 2020

तुम से दूर

यहाँ तुम से दूर 


मैंने यहाँ 
तुम से बहुत दूर
आकर जाना 
कि तुम मेरे लिए
 क्या हो,

यहाँ इतनी दूर
आकर ही समझा
कि तुम ही समझती हो
मुझे सबसे बेहतर ।

यहाँ आकर 
लगा कि जैसे
कोई मरते वक्त
याद करता है
अपने सबसे करीबी को
वैसे ही तुम मुझे याद आयी।

यही आकर समझा
कि तुम क्या हो मेरे लिए
याकि तुम्हारा होना
कितना महत्वपूर्ण है
मेरे जीवन में।

यहाँ पर आकर
खुले प्रेम के गहन अर्थ
यहाँ याद आयी 
तुम्हारी भीनी महक, 
तुम्हारी कोमल बाहें
तुम्हारे रेशमी बाल
तुम्हारी वो गोद
तुम्हारा गहरा स्पर्श
तमाम गर्म चुम्बन।


( पोर्ट ब्लेयर से, 31 जनवरी, 2020 )
© आशीष कुमार, उन्नाव। 

HAA TUM


हाँ बस तुम 

तुम हाँ बस तुम
हर वक़्त तुम
तुम्हारी बातें
तुम्हारी ही यादें 

तुम समझो मुझे 
कि कितना गहरा प्रेम
बस तुम से, तुम ही हो
मेरी सोच का  क्रेंद्
मेरे अहसास का बिंदु

©आशीष कुमार, उन्नाव

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

love at corona time

कोरोना के समय प्रेम 

प्रिय मैंने कभी न सोचा था
कि मुझे करनी पड़ेगी 
इतनी लंबी प्रतीक्षा
गिनना पढ़ेगा क्षणों को

याद करता हूँ
जब जब पुरानी मुलाकातों को
बहुत याद आती है
तुम्हारी हर पल चेहरे पर
खिलने वाली मुस्कान 

याद आता है 
उन पलों का सबसे खास हिस्सा
जब हम डूबे रहते थे एक दूजे मे
तब न जाना था कि
हमें यूँ भी बिछड़ना पड़ेगा
इतने लंबे वक्त के लिए

© आशीष कुमार, उन्नाव
26 जून 2020।


ummid ki rakhi

उम्मीद की राखी

नई दिल्ली जिला प्रशासन ने कोरोना के दौरान बेरोजगार हुए लोगों की मदद के लिए अनूठी पहल की है।'उम्मीद की राखी ' नाम से चलाए जा रहे अभियान में स्वयं सहायता समूह की Womens को राखी बनाने के लिए कच्चा माल, जरूरी प्रशिक्षण व बिक्री के लिए महत्वपूर्ण जगहों पर उनकी दुकान खुलवाई गयी है।


(जिलाधिकारी कार्यालय  नई दिल्ली जाम नगर हाउस  में एक ऐसी ही शॉप पर राखी खरीदते हुए )


इन महिलाओं द्वारा हस्तनिर्मित राखी अपनी सुंदरता व् मजबूती के चलते बेहद लुभावनी हैं। इनको खरीदते वक़्त , आप उन महिलाओं के चेहरे पर आत्मनिर्भरता की चमक बखूबी देख सकते हैं 
" उम्मीद की राखी " पहल  के जरिये न केवल corona के चलते बेरोजगार महिलाओं को रोजगार मिलेगा , वरन इन से लाभान्वित लोग "आत्मनिर्भरता " के नए प्रतिमान गढ़ेंगे। पिछले दिनों पड़ोसी देश से सीमा विवाद के बाद विदेशी चीजों के जगह देशी चीजों के production पर जोर दिया जा रहा है। इस लिहाज से "उम्मीद की  राखी " जैसी  अनूठी पहल के जरिये हम राष्ट्वाद को भी बढ़ावा दे सकते हैं। यह समाज के हाशिये पर रह रहे लोगों उम्मीद की किरण सरीखा हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नई दिल्ली जिला प्रशासन का अनुकरण  करते हुए देश में इस तरह के और भी अभियान चलाये जायेंगे।  

  ©आशीष कुमार , उन्नाव 
  28  जुलाई 2020 . 















रविवार, 26 जुलाई 2020

Meeting with Prem sir.

प्रेमपाल शर्मा जी से मिलना 

नीचे तसवीर में प्रेम जी साथ में हैं। पिछले साल लोकसभा tv के सिविल सेवा में हिंदी माध्यम से जुड़े एक मुद्दे के दौरान मुलाकात हुई थी। मोबाइल no का आदान प्रदान हुआ और हमेशा की तरह कि कभी मिलते है जैसे वाक्य से विदा ले ली। 

बीच बीच में जनसत्ता में उनके लेख भी पढ़ता रहा और प्रभावित भी होता रहा। लिखने पढ़ने वाले लोग मुझे विशेष आकर्षित करते रहे हैं। बीच बीच में उनके बुलावा मिलते रहे कि जब भी वक़्त मिले घर आना।
तमाम बार मुलाकात टलती रही..एक दिन ऑफिस से निकलकर पूछा ..आप घर पर हैं.. मुझे लोकेशन भेजिए मैं 30 मिनिट में पहुँच रहा हूँ। मैंने ऐसा तमाम बार किया जब कोई बार काम बार 2 टलता रहे तो उसे एक दिन किसी भी हालत पर, किसी भी शर्त पूरा कर देता हूँ।

मन में तमाम आशंका भी थी कि कोरोना के टाइम जाना ठीक होगा भी या नहीं..
 पता नहीं उनकी शाम की क्या प्लानिंग हो ..पर उस दिन इसी मूड में था कि आज लंबे समय से टल रही मुलाकात को पूरा करना ही है..

सर के घर पहुँच कर पाया कि वो बड़ी प्रसन्नता से प्रतीक्षा कर रहे थे। उचित दूरी बनाते चाय नाश्ते के साथ उनसे तमाम बातें हुई। सर, ने भी काफी संघर्ष के साथ 3 दशक पूर्व सिविल सेवा में चयनित हुए थे। भारत सरकार के संयुक्त सचिव (js) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं पर सामाजिक सरोकारों में उनकी सक्रियता अभी भी बनी हुई है। सेवा के दिनों से ही तमाम समाचार पत्रों में उनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं। विविध मुद्दों में उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी  हैं। आप उन्हें कई बार tv पर डिबेट में देख सकते हैं। 


प्रेम सर से प्रेमपूर्वक तमाम बातें होती रही .. उन्होंने कहा कि मेरी जैसी ही पृष्टभूमि से वो भी आये हैं.. सर के छोटे भाई भारतीय राजस्व सेवा ( इनकम टैक्स ) में काफी सीनियर पद पर कार्यरत हैं और वो भी लिखते हैं। बातें हमारी और भी होती पर मेरा ड्राइवर काफी समय से वेट कर रहा था.इसलिए सर से फिर मिलने के वादे के साथ विदा की।

चलते समय सर ने अपने हस्ताक्षर की हुए कुछ पुस्तकें भेंट की, ऐसी भेंट, हमेशा से बहुत पसंद आती रही हैं.
( सर ने कहा meri गाँधी जी की मूर्ति के तसवीर lijiey मैैंने कहा आप आज के गांधी की तरह हैैं  ) 

© आशीष कुमार, उन्नाव
26 जुलाई, 2020।

बुधवार, 22 जुलाई 2020

Judaai film

  " जुदाई" देखते हुए 

अभी टीवी (& पिक्चर्स)  पर यही फिल्म आ रही है, फिल्म देखते हुए कुछ याद आ गया। फिल्म में एक छोटा टेप रिकॉर्डर दिखाया गया है। एक दौर था तब यह मेरे सबसे प्रिय ईच्छाओं में एक था कि काश कभी इतने रुपए हो कि मै भी यह खरीद सकूं..
उस दौर में लोग इसे अपनी पैंट में फसा कर चलते थे। इसके साथ  भी आता था। एक दुक्के लोगों के पास होता था, बड़ी हसरतों से देखा करता था। ऐसा लगता था कि जीवन का असली सुख यही ले रहे हैं। 

समय बदला ..और पता ही न चला कब वो टेप रिकॉर्डर चलन से बाहर हो गए। फ़िल्म की तरह ही एक बड़ा सा Music system जरूर घर पर है..पर वो छोटा टेप रिकॉर्डर न ले पाया। अब फोन में सब कुछ आने लगा। Laptop (2012) की रैम 2 जीबी, फोन (2018) की 8 जीबी रैम.. कैसे बदलते जा रहे है हम।

 न जाने हमें अतीत से बड़ा ही मोह होता है.. कुछ दिनों से लालटेन व लैंप बहुत याद आ रहे हैं। मन में ख्याल आता है कि उनका ग्लास साफ करके शाम को आज भी जलाएं.. पर कहां ..कैसे .. वर्षो बीत (अहमदाबाद से दिल्ली )गए..बिजली की इस कदर आदत सी पड़ गई । न जाने कब से 5 मिनट की कटौती भी न हुई..क्या घर, क्या ऑफिस.. दूधिया सफेदी वाली चमक के बीच धुंवे से भरी वो किरोसीन के गंध वाली पीली धुंधली चमक बहुत याद आती है।

बहुत संभव है कि आज के 10 साल बाद, आज कि चीजे ऐसे ही याद आए.. 5 g से आगे 6g ,7g का दौर जाने कैसा होगा..कौन जाने मोबाइल का रिप्लेसमेंट भी आ जाये ..

©आशीष कुमार, उन्नाव
22 जुलाई, 2020।

मंगलवार, 9 जून 2020

Sikshk Bhrti

शिक्षक भर्ती

यूँ तो अब सिविल सेवा में आखिरी प्रयास व चयन के बाद से अपना प्रतियोगी परीक्षा से इस जन्म में नाता खत्म हो गया। फिर भी गाहे बगाहे कुछ कुछ मिल ही जाता है लिखने को। 

पिछले कुछ दिनों में या सालों में देख रहा हूँ मैं शिक्षक भर्ती। आपको पता है कि मैं भी इस शिक्षक भर्ती में जाल में फंसा था। 2007/08 में बछरावां से बीएड किया और कुछ समय बाद भर्ती आ गयी। 

भर्ती प्रक्रिया कमाल की थी। मेरिट जिलेवार बनी थी। चक्कर लगाने वाले लोग इस जिले से उस जिले कॉउंसलिंग कराया करते थे। अपनी मेरिट इस कदर निम्न थी कि किसी जिले में नाम आना तो दूर कॉउंसलिंग का भी नंबर न लगा।यहाँ तक कि सीतापुर जैसे जिले में जहाँ रिकॉर्ड संख्या में भर्ती होती रही हैं।

मेरिट के बारे में क्या ही बोलूं ? इसका खामियाजा पिता जी भी भुगते थे। उनके समय बीएड के लिए 6 व 12 अंको वाला सिस्टम चलता था। फर्स्ट वाले को 12, सेकंड को 6।

खैर इस पोस्ट को लिखने के पीछे उन लोगों को मोटिवेट करना है जो मेरिट लिस्ट में न आये इसके बावजूद कि वो प्रतिभाशाली हैं। दरअसल इस तरह की चयन प्रकिया तमाम रूप में सबके लिए सटीक न हो सकती है। आप किस सब्जेक्ट (सँस्कृत/इंग्लिश/मैथ) से ग्रेजुएट हैं, किस यूनिवर्सिटी(कानपुर/इलाहाबाद/लखनऊ) से पढ़े बड़ा मायने रखता है। ऐसे में हताश होने की जरूरत नहीं है।

मुझे रिस्तेदारों/मित्रों/पड़ोसियों के इतने ताने मिले कि मजबूरी में सर के बल वाली मेहनत करनी पड़ी.. उसके बाद तो नौकरियों की लाइन लग गयी।
तैयारी इतनी शानदार कि क्या ssc, बैंक, रेलवे , pcs व UPSC हर जगह के एग्जाम निकलने लगे।

अब मेरे साथ ऐसा हुआ है तो आपके साथ भी हो सकता है आखिर मैं भी शिक्षक भर्ती में असफल व्यक्ति रहा हूँ। आप भी शरू हो जाइए। सुना है कोई BEO  का एग्जाम अगस्त में होना है। तो शिक्षक भर्ती के राग/ कोर्ट कचहरी को छोड़िये सीधे शिक्षकों के बॉस बनने का अवसर आपके सामने हैं, सर के बल पढ़ना शुरू करिये..टाइम पास बहुत हुआ..ज्यादा ही जोश हो तो आईएएस का एग्जाम है अक्टूबर में .. प्री के लिए इससे बढ़िया समय कभी न मिलेगा.. करके दिखाए.. आईएएस बनने के लिए मेरिट की जरूरत नही होती है ..समझ गए न ..


© आशीष कुमार, उन्नाव 
(सिविल सेवा परीक्षा 2017 में सफल,
उपजिलाधिकारी(प्रशिक्षु), नई दिल्ली)
09 जून, 2020।

सोमवार, 11 मई 2020

story of Crane

" सारस"

आज  प्रीतम सिंह की फेसबुक पोस्ट में सारस के जोड़े की तस्वीर  देखी तो मन फिर village की ओर लौट गया। वर्षो से सारस न दिखी, वैसे वर्षो से गांव से नाता भी टूट सा गया है। साल में 10 से 15 दिन से ज्यादा जाना न होता है। हालांकि जब भी घर जाना होता है, खेत तरफ जरूर जाता हूँ।
पहले सारस बहुतायत दिख जाते थे। सारस के बारे में कहा जाता है कि वो अकेले नही दिखेगा। अगर एक साथी मर गया तो दूसरा भी अपने प्राण त्याग देता है। 

खेतों के पास एक छोटा सा जंगल था। उससे लगता एक pound था उसे वीरा का ताल कहते थे। वैसे वो एक गहरा खेत था। कभी जब ज्यादा बारिश हुई तो उसमें 2- 3 फ़ीट पानी भर जाता था। उस समय कभी कभी सिंघाड़े की खेती भी कर ली जाती थी। उसके पास में तमाम तरह के साग मिल जाता करता था।

 मुझे ठीक से याद है एक बार उसमें सारस ने eggs दिए थे। जोड़े ने लकड़ी, खर पतवार से जमीन पर उसी तालाब के बीचों बीच अपना घोंसला बनाया था। उस समय तालाब में पानी सूख गया था। तालाब की सतह पर कीचड़ के बजाय घास रहा करती थी।

(चित्र : प्रीतम सिंह, उन्नाव )


बचपन में उत्सुकता बहुधा चरम पर होती है। उसी के चलते उसके घोंसले के पास अंडे देखने का मन हुआ करता था। सारस हमेशा उसी के पास रहते। कितनी ही बारिश हो, उनमें एक हमेशा अंडो पर बैठी रहती थी। एक grandfather अपनी भैंसे उधर चराया करते थे। एक बार वो गलती से उसके घोंसले के पास चले गए, सारस ने उन्हें दौड़ा लिया। अपने बच्चों के लिए किसी भी मां की तरह सारस किसी से भिड़ सकती थी।

मुझे याद आता है कि सारस अक्सर धान की फसल के समय दिखायी पड़ते थे। कभी 2 वो कई जोड़ो में दिखते। शाम को जब वो वापस लौटते दिखसई पड़ते तो देखने से लगता वो काफी नीचे उड़ रहे है। उस समय धेले से उनको मारने का असफल प्रयास भी किया.. पर वो बस देखने मे ही लगता कि नीचे है बाकी वो काफी ऊपर उड़ा करते थे। सारस India के कुछ सबसे बड़े पक्षियों में एक है। उत्तर प्रदेश में इसे विशेष पहचान दी गयी है। यह अलग बात है अब के समय इनको रूबरू कम लोग ही देख पाते हैं ...

बात पक्षियों की हो रही है तो यह बात जरूर साझा चाहूंगा कि मैंने गिद्ध (अब विलुप्त के कगार पर ) भी देखा है. गाँव में इन दिनों जहां अब cricket खेला जाता है, पुराने दिनों में वहां गांव के मरे जानवर डाल दिये जाते थे, पहले कस्बे से कुछ खाल निकलने वाले लोग आकर खाल निकाल ले जाते तब गिद्ध बड़ी संख्या में दिखते.. पिछले सालों तक वहां जो एक सूखा पेड़ था, जिसे  क्रिकेट के खिलाड़ियों ने हटा दिया ( वजह उसकी वजह से तमाम छक्के , चौके रुक जाते थे ) उसी में वो झुंड बना कर बैठे रहते थे। अगर अपने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की है तो आपको यह प्रश्न जरूर मिला होगा कि गिद्ध कैसे विलुप्त हुए ..वो इंजेक्शन भी गाँव में खूब बिका करता था, उसे भैसों को लगा कर दूध निकला जाता था..

पोस्ट जरा लम्बी हो रही है पर तमाम बातें याद आती चली जा रही है..नाना के घर में छत के पीछे दीवाल के पास peacock का घोसला व अंडो को भी मैंने देखा है..मैंने अपने महुए के पेड़ के पुराने कोटर में parrot के अंडो, बच्चों को देखा है। मैंने बबूल के पेड़ों में तमाम बगुलों को खूब जोर से आवाज करते देखा है, उनके पेड़ो के नीचे की जमीन ऐसे सफेद होती जैसे कि उस पर चुना किया गया हो 

नीलकंठ का नाम सुना व देखा जरूर होगा। साल में कोई दिन होता है जिस दिन उसको देखना बहुत शुभ माना जाता है। उस दिन हम अपनी टोली के साथ निकलते.. जिन साथी ने ये शुभ वाला ज्ञान दिया था, उस पक्षी को देखते  अपनी आँख बंद करके अपना हाथ पक्षी की ओर दिखा कर चूमा करते..मैं भी देखी देखा ऐसा करता। उनसे पूछता कि क्या मांगा तो बोलते अपनी मन्नत बताई नही जाती। मैं उन दिनों बस यह मांगा करता कि आज जो ऐसे घर में बिना बताए घूम रहे हैं उसके लिए घर जाकर में कुटाई न हो..उन दिनों upsc के सपने न थे , इसलिए मन्नतों में upsc कभी न रहा 😁😉

बाकी फिर कभी ...

© आशीष कुमार, उन्नाव
12 मई, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर) 



सोमवार, 4 मई 2020

बेला के फूल


बेला के फूल 

यूँ तो गुलाब के फूल ही बेजोड़ होते हैं पर बेला के फूल अपनी धवलता के साथ, अनूठी खुसबू के लिए जाने जाते हैं। 
इन दिनों शाम को टहलते वक़्त रोज उसके पेड़ो के पास से गुजरता हूँ। हाथों में कुछ फूल लेकर मुट्ठी बन्द कर लेता हूँ। बन्द मुठी को नाक के पास लाकर, उनकी खुसबू को भीतर तक महसूस करना, मेरा प्रिय सगल बन चुका है। यूँ तो पहले भी तमाम बार फूलों की खुसबू को भीतर महसूस किया है पर इन दिनों यह कृत्य बड़ा रुचिकर व सुखदायी प्रतीत होता है।


मुझे यह ध्यान, योग की तरह लगता है। मन भीतर से हल्का, प्रसन्न व शांत हो जाता है। कोरोना के इन दिनों की उदासी को, यह क्रिया बड़ी सुखदायक प्रतीत होती है।

© आशीष कुमार, उन्नाव
3 मई, 2020 

रविवार, 3 मई 2020

OLD Days

   इमलियाँ पक चुकी हैं 

उस रोज शाम को टहलते समय सामने पेड़ पर निगाह गयी तो लगा कि जैसे कि तमाम इमली लटक रही हो। हालांकि यकीन न हो रहा था कि इतनी दूर , यहां की जलवायु में भी इमली का पेड़ भी हो सकता है। 

दूसरे दिन सुबह देखा तो यह इमलियाँ ही थी। कुछ तलाश करने पर कुछ पकी इमली भी पड़ी मिल गयी। उन इमली को ज्यों स्वाद के लिए मुख में रखा, मन बचपन की में खो गया।

मेरी बाग में इमली का बहुत पुराना पेड़ था।उसका तना बहुत मोटा था। मेरे दुबले पतले हाथों में वो क्या ही आता पर उसके बावजूद में मैं उस पर चढ़ जाता था। दरअसल इमली के पेड़ की डालियाँ बहुत ही ज्यादा मजबूत होती हैं। डाल पकड़ कर उल्टा होकर चढ़ना, किसी करतब से कम न था।

उसमें चढ़कर सबसे ऊपर जाकर मैं बैठ जाता था। वहाँ से सामने रोड साफ साफ नजर आती। इसमें कच्ची इमली बहुत लगती थी। उनको नमक के साथ खाना बड़ा स्वादिष्ट लगता था। पेड़ में कुछ रोग लग गया था। उसमें पकी हुई इमली शायद ही कभी अच्छी मिली हो। पकने के साथ ही वो इमली अजब तरीक़े से सूख जाती । 

बाद में पेड़ सूख गया। जब मेरी बी.एड.की फीस जमा करनी थी। पिता जी ने एक करीबी रिश्तेदार से 20 हजार रुपये उधार लिए थे। वैसे तो वो रिश्तेदार काफी सम्रद्ध थे पर उनसे इतंजार न हुआ। पिता जी ने कहा था कि जब मेरी fd टूटेगी तब वो रुपये लौटा देंगे। अगर दुनिया में रिश्तेदार इतने ही बढ़िया होते तो  उन पर इतने मजाक क्यों बनाये जाते..

हमारे रिश्तेदार अपवाद न थे, इतना चरस बोया कि पेड़ कटवा कर बेच दिए गए और उनके रूपये चुका दिए गए। इस तरह इमली का सूखा पेड़, मेरी पढाई की भेंट चढ़ गया।

अब कहने वाले कहते है कि मैं बड़ा घमंडी हो गया हूँ, किसी रिश्तेदार, नातेदारों से बात नहीं करता .. सच में.. ?
अक्सर लोग पर्दे के पीछे का सच जाने बगैर ही अपने  मत/ अनुमान स्थापित कर देते हैं। वैसे इमली के पेड़ पर चढ़ने के सुख किसने किसने भोगा है ?

© आशीष कुमार, उन्नाव 
3 मई, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर)

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

My E book

E Book 


सफलता मिलने के बाद, तमाम काम बढ़ गए, इसके चलते तमाम लोग जो मुझसे हमेशा से सफलता के टिप्स मांगते रहे, उन्हें उचित समय व मार्गदर्शन न दे सका। दरअसल इस उदासीनता के पीछे यह भी बड़ी वजह रही है कि मैंने अपने ब्लॉग पर, फेसबुक पेज व टेलीग्राम चैनल ( ias ki preparation hindi me ) पर पहले ही लगभग हर विषय पर पोस्ट (500 से) लिख रखी हैं। अब उक्त लोगों की शिकायत कुछ हद तक दूर करने की कोशिश की गई है।


मेरी कुछ मोटिवेशनल पोस्ट को एक प्रिय पाठक ने संकलित करके e book के रूप में तैयार किया है, आप उसे नीचे दिए गए लिंक से डाऊनलोड कर सकते है। लिंक अगर न काम कर रहा हो तो आप टेलीग्राम एप में  ias ki preparation hindi को सर्च करके चैनल में पीडीएफ को डाऊनलोड कर सकते हैं, उम्मीद करते हैं, यह प्रयास आपको पसंद आएगा। धन्यवाद, 

आशीष, उन्नाव।
दिनांक 16 अप्रैल, 2020।



मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

Talk vs meeting

बात बनाम मुलाकात

प्रियतमा 
तुमने जो कहा
बात होते रहने 
जरूरी है बेहद

मैंने कहा बात के साथ
मुलाकात भी जरूरी है
समय समय पर

बात होने पर
भले ही तुम्हारे मधुर शब्द
मेरे अंतस में
घोलते है प्रेमरस

पर मुलाकात होने पर
तुम्हें नजरों से छुआ जा सकता है
आँखों से पिया जा सकता है
चंद पलों में 
असीम जिया जा सकता है

मादकता से भरपूर
नशे से चूर, 
तुम्हारे चन्दन बदन पर
अंगुलियों से बनाये जा सकते हैं
तमाम चमकते चाँद

पकड़ी जा सकती है पोरों से
तमाम जिंदा मछलियाँ
उगाये जा सकते है 
लाल दहकते गुलाब

© आशीष कुमार, उन्नाव।
14 अप्रैल, 2020 (लॉक डाउन दुबारा बढ़ने का दिन)



रविवार, 12 अप्रैल 2020

Neela Chand

नीला चाँद 

कल रात में अंततः इस उपन्यास का पठन पूरा हो गया। शिव प्रसाद सिंह द्वारा लिखे गए इस बहुचर्चित उपन्यास की विषय वस्तु 11 वी सदी के समय राजा विद्याधर के पौत्र कीर्ति वर्मा के द्वारा अपने खोये राज्य की वापसी का प्रयास है। उस समय काशी में दो राजा थे एक कलचुरी शासक कर्ण , दूसरा गहड़वाल मदन। उपन्यास में तमाम उतार चढ़ाव हैं ।

पुस्तक का शीर्षक " नीला चाँद " बड़ी रोचकता जगाता है।मन में बड़ी उत्सुकता थी कि आखिर क्या है नीला चांद। इसका खुलासा उपन्यास की इन आखिरी पंक्तियों में होता है - 

" .. बेटे , जैसे हर व्यक्ति के अंदर एक आंगन है, एक तुलसी चौरा है, वैसे ही सबके छोटे छोटे आकाश में एक नीला चाँद भी होता है। ढकोसलों से नहीं, नियति को जानने वाले दाम्भिकों की भविष्यवाणी से नहीं, तू खुद कालिमा में डूब कर अपने मन के आंगन में जगमगाता नीला चाँद देख लेगा, उसका नाम है अमोघ इच्छा शक्ति । "

यहाँ से उपन्यास खत्म हो जाता है। दरअसल कीरत ( कीर्ति वर्मा ) का शुरू में समय बेहद कठिन, संकट पूरित होता है जो वो समयांतर में अपने रण कौशल, अनुभव व जमीन से जुड़े लोगों के सहयोग से सुखांत में बदल देता है।

इस पुस्तक पढ़ने के पीछे की एक कहानी है। एक दिन मैं अपने वरिष्ठ के कक्ष में बैठा था। मैंने सर से पूछा कि आपके नाम के पीछे जो डॉ लगा है वो चिकित्सा वाला है या पीएचडी वाला। सर ने बताया कि उन्होंने साहित्य में पीएचडी की है। तीन उपन्यास को आधार बनाकर बनारस के पूर्व, मध्य व आधुनिक समाज को पिरोया है। उसमें " नीला चाँद " भी एक पुस्तक थी।

उन्हीं दिनों पुस्तकालय जाना हुआ, संयोग से यह उपन्यास सामने दिख गया। व्यास सम्मान, शारदा सम्मान (?) व साहित्य अकादमी पुरस्कार द्वारा इस कालजयी उपन्यास को पढ़ने के लिए काफी समय के साथ साथ हिंदी की बहुत अच्छी जानकारी होनी चाहिए। इसी उपन्यास से ऐसे 10 शब्दों के साथ तमाम हिंदी प्रेमी पाठकों को छोड़ रहा हूँ, इनमें एक का भी अर्थ मुझे पता न था।

स्तबक -
धम्मिल -
षंड-
प्रातराश-
क्वाथ-
धारायन्त्र -
वेशवास-
नागरमोथा-
प्रसेव-
त्वष्टा-


© आशीष कुमार, उन्नाव
12 अप्रैल, 2020।

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

POEM : HOPE

उम्मीद 

इन दिनों जबकि 
सारी दुनिया 
परेशान,बेबस व मजबूर
सी है,

इन दिनों जबकि
आदमी बेहद परेशान,
भयभीत है 
और उसको भरोसा
न रहा अपने जीवन का

ऐसे उदासी, बेजान
खामोशी भरे दिनों में
भी मैं रहता हूँ
प्रफुल्लित,जीवन्त 
उत्साह से भरा

वजह केवल इतनी
कि इनदिनों के गुजरने 
के बाद मुझे उम्मीद है
कि तुम एक रोज मेरे पास
आओगी उतने ही करीब
जितना इन दिनों के पहले थी

उम्मीद है कि फिर से
स्पर्श कर सकूँगा
तुम्हारे मन को 
अन्तःस्थल को

उम्मीद है कि
देखूँगा तुम्हारी झील सी
गहरी आँखों में,
अपने लिए
पहली सी चमक

© आशीष कुमार, उन्नाव
1 अप्रैल, 2020।


रविवार, 29 मार्च 2020

Reading Tips

पढ़ाई से जुड़े कुछ सूत्र 

काफी समय से इस विषय पर लिखा नहीं हैं, पिछले दिनों कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर लगा कि कुछ अपने अनुभव साझा किए जाय। रही बात वायरस की तो उस पर इतना ज्ञान साझा हो चुका है हम अदने लोग क्या ही बोले। बस एक बात याद रखना कि आप जो कॉपी पेस्ट, फॉरवर्ड करने जा रहे है वो जरूरी नहीं सत्य ही हो। आइये उन चीजों पर बात करते है जो एक विद्यार्थी को हमेशा याद रखनी चाहिए -

1. अपने लक्ष्यों को स्पष्ट रूप में जाने, अगर आपको जिंदगी में करना क्या है यह अगर चीज समझ में आ गयी तो जीवन सरल, आसान व सुखद हो जाएगा।

2. अपने लक्ष्यों की समयसीमा तय करके रखे। क्या आपने इस पर विचार किया है कि हम बस पढ़ते चले जा रहे हैं पर कब तक ? आप अपने लक्ष्य की समय सीमा तय कर ले, इससे आप पर लक्ष्य को समय से पूरा करने का दबाव पड़ेगा।

3. आप अपने कोर्स से इतर विषयों पर भी किताबें पढ़ते रहें। किताबें पढ़ने की आदत, आपको हमेशा आगे रखेगी। 

4. तेजी से पढ़ने की आदत विकसित करें। यह एक ऐसी बात है जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं होती है। तमाम लोगों से बात करने के आधार पर यह समझ आया है कि बहुधा लोग, किताब खोल कर बैठ जाते हैं पर उनका मन वहाँ पर नहीं होता है। इसके चलते कई बार वो कई घंटे बाद भी पहला पन्ना भी खत्म नहीं कर पाते हैं।

5.  तेजी से पढ़ना सीखने के लिए आपको गैर जरूरी चीजें  स्किप करना सीखना होगा। अपने कभी गौर किया है कि हर वाक्य, पैराग्राफ व कई बार पूरे पन्ने में गैरजरूरी चीजें होती हैं। आप मतलब की चीजें , निकलना सीख जाए तो आपके पढ़ने की गति बहुत तेज हो जाएगी। 

6. रुचि जगाये । अपने देखा होगा कि कई बार कॉमिक्स, नॉवेल जैसी चीजें पढ़ने में कभी न थकान होती है न ही बोरियत। इसकी वजह रुचि का होना होता है। इसलिए आपको पूरी रुचि के साथ किताबें में डूब कर पढ़ना चाहिए।

5. पिछले दिनों मैंने रॉबिन शर्मा की एक किताब The monk who sold his ferrari पढ़ी. इसके बारे में पहले सुना था पर लगा कि फालतू किताब होगी कोई योगी, अध्यात्म से जुड़ी, इसलिए कभी पढ़ने की कोशिस नहीं । पर अब पढ़कर लगा कि इस किताब को जितनी जल्दी हो, सबको पढ़ना चाहिए। इसमें बहुत सरल तरीके से अपने लक्ष्यों को पूरा करने, सच्ची सफलता के बारे में बात की गई है। गूगल में पीडीएफ मिल जाएगी, सर्च करके जरूर पढ़िए।

कुछ और भी बढ़िया किताबें पढ़ी जा रही है, इसलिए आगे भी कुछ ऐसी पोस्टों की उम्मीद के साथ विदा 😊

© आशीष कुमार, उन्नाव
30 मार्च, 2020।


गुरुवार, 19 मार्च 2020

My introduction with libraries

दो शब्द पुस्तकालयों के संदर्भ में 

पुस्तकालय से पहला परिचय मौरावां में हुआ, मेरे इंग्लिश की कोचिंग वाले रितेश सर ( गुड्डू भैया ) ने मुझे वहाँ की सदस्यता दिलवा दी। शायद 50 रुपए सदस्यता शुल्क था। बात कक्षा 11 की थी। इसके पहले गांव में यहाँ वहां से इधर उधर की किताबें जुटा कर पढ़ा करता था जिसमें प्रायः  मेरठ से छपने वाले सस्ते उपन्यास हुआ करते थे। वेद प्रकाश, ओम प्रकाश, रीता भारती, गुलशन नंदा आदि आदि। गांव में ये किताबे कौन लेता पता न चलता पर आदान प्रदान के जरिये पूरा गांव पढ़ा करता था। गर्मी की दोपहरी में दुछत्ती पर चारपाई में लेटकर पढ़ने का सुख, रात में चोरी से किरोसिन के दीपक में इन प्रेम, रहस्य, रोमांच, अपराध, मार धाड़ से लबरेज किताबों में डूबने के सुख को वही समझ सकते है जो इसे भोग चुके हैं।

मौरावां में भैया ने सदस्य बनवाने के साथ तमाम किताबे सुझाई जिनमें मंटो, शरत चन्द , इस्मत चुगताई जैसे कुछ नाम याद आते हैं। दो साल उस कस्बे में रहा और मेरे ख्याल से 200 से 250 किताबें पढ़ी होंगी। पिता जी ने पहले डॉट लगाई थी फिर बाद में वो भी मेरे कार्ड पर किताबें निकलवाने लगे, कई शाम हम दोनों किसी मोटी किताब लिए अपने अपने में डूबे रहते। इसका परिणाम मेरे 12वी के अंकों पर पड़ा, गणित में बस 100 में बस 37 अंक। खैर इससे फर्क क्या पड़ता था, पिता जी इसमें खुश थे कि पास हो गए यही क्या कम है।

इसके बाद उन्नाव के जिला मुख्यालय में स्नातक के लिए जाकर रहना शुरू हुआ। वहाँ जिला पुस्तकालय में सदयस्ता लेने के लिए बड़ी जहमत उठानी पड़ी,तमाम चीज़ो के साथ कचहरी से एफिडेविट भी मांगा गया। मुझे पढ़ने का इतना नशा कि उसी दिन दौड़ भाग कर सारी खाना पूर्ति की। शाम तक दो किताबें मेरे हाथ में थी, सोचो कौन सी ? देवकीनंदन खत्री कृत चंद्रकांता के दो भाग। वहां के तमाम किस्से , अलग अलग टुकड़ो में पहले लिख चुका हूँ। एक कार्ड पर दो किताबें निकलती थी, बाद में मैंने अपने दो कार्ड बनवा लिए और ताबड़ तोड़ ( सच में ) किताबें पढ़ी, शायद 300 से 400 के बीच।

उन्नाव में एक गांधी पुस्तकालय भी है जो शाम व सुबह के समय ही खुलता है शिवाय सिनेमा के पास। बाद में यह मेरे लिए ज्यादा अनुकूल पढ़ने लगा। शाम को ट्यूशन पढ़ाकर लौटते वक्त अपनी साइकिल वही रुकती और पुस्तकालय बन्द होने तक वही रहता। मेरी साईकल के हैंडल पर एक कैरियर लगा होता जो विशेषतौर पर इन्हीं किताबों के लिए लगवाया गया था। यहाँ भी दो कार्ड बने 200 से 300 किताबें पढ़ी गयी। बाद में कार्ड भाईयों को दे दिया और वो निकलवा कर पढ़ते रहे।

फिर अहमदाबाद में अलग अलग जगहों पर पुस्तकालय गया। मेमनगर वाली सरकारी लाइब्रेरी,शुभ लाइब्रेरी, स्पीपा की लाइब्रेरी, विवेकानंद लाइब्रेरी, राणिप, और आखिरी वो जहां से आखिरी अटेम्प्ट देना हुआ। यहाँ पर साहित्य की एक भी किताब न पढ़ना हुआ। सब में अपनी किताबें ले जाकर पढ़ना होता था। 2012 से 2019 तक अहमदाबाद के पुस्तकालयों में सिविल सेवा की ही किताबें पढ़ी गयी।

इसके बाद दिल्ली आना हुआ,  मेरी अकादमी का सरदार पटेल नाम से एक समद्ध पुस्तकालय हैं।यहाँ फिर से साहित्य पढ़ना शुरू हुआ। अब अपनी मन की किताबें यहाँ बोल कर ख़रीदवाई जा सकती थी। कुछ महत्वपूर्ण किताबे जो पढ़ने से रह गई, वो लिस्ट बना कर दे दिया। सब खरीदी गई। जब भी उधर जाना होता, इंचार्ज बोलते कि पढ़ तो बस आप ही रहे हो। अब मोटे उपन्यास की जगह पत्रिकाओं ने जगह ले ली, शायद समयाभाव।

इस लंबे चौड़े अतीत लेखन का उद्देश्य पोर्ट ब्लेयर के अनुभव को लिखना मात्र था।दरअसल अभी तक सभी पुस्तकालयों में किताबें लेने के लिए तमाम ताम झाम , मगजमारी करनी पड़ती थी। पोर्ट ब्लेयर में समय कट न रहा था। नेट स्पीड की मध्यम गति से परेशान , समय काटे न कटे। पुस्तकालय का ख्याल आया पर लगा कि मेंबर बनना काफी तामझाम रहेगा। 

खैर एक रोज पहुँच गए, परिचय दिया। इतना काफी था बड़ी गर्म जोशी के साथ स्वागत और यह छूट कि आप को जो भी, जितनी भी किताबें पढ़नी है निकलवा लीजिए। "आप लोगों के लिए अलग रजिस्टर है  नाम व मोबाइल no दे दीजिए बस" 
ऐसे समय में अपने पद व उसके साथ मिलने वाले इस तरह के विशेषाधिकार बड़े सुखद अनुभूति देते हैं, कहाँ तो वो दिन कि जब 2 किताबें के लिए दुनिया भर की कागजी कार्यवाही और अब ये दिन।

ऊपर दूसरे फ्लोर पर किताबें तलाश रहा था और साथ आया बन्दा, वहाँ बैठी सहायक को निर्देश देकर गया कि साहब की चुनी किताबें, लेकर नीचे साथ आना। यद्यपि मैंने उस सहायक को विनम्रतापूर्वक  अपनी किताबें उठाने से मना कर दिया तथापि पोर्ट ब्लेयर के मुख्य पुस्तकालय के कर्मचारियों की गर्मजोशी सदैव के लिए मानस पटल पर अंकित हो गयी।

© आशीष कुमार, उन्नाव 
दिनांक 19 मार्च, 2020
(हैडो, पोर्ट ब्लेयर)


शनिवार, 7 मार्च 2020

NO AGE LIMIT

"न उम्र की सीमा हो "

लिखने वाले के लिए यह जरूरी नहीं वो हमेशा अपने ही अनुभव लिखे। पिछले दिनों मुझे दूसरों के जरिये कुछ बड़े गजब के अनुभव सुनने को मिले, उन्हीं में से यह एक ..

तमाम लोगों को काम करने का इतना गहरा चस्का होता है या कुछ और ..जिस उम्र में शांति से घर में आराम करना चाहिए वो हिलते डुलते काम में लगे रहते हैं। मैं बात सरकारी सेवा की कर रहा हूँ। एक अकादमी में एक साहब   पढ़ाने आते थे। बहुत ज्यादा ही योग्य, जितनी हमारी उम्र उससे दोगुना उनका अनुभव । कितनी ही किताबें प्रकाशित हो चुकी थी। जब वो पढ़ाते तो खड़े खड़े काँपने लगते। थोड़ी में उनकी साँसे फूलने लगती,बेचारे बड़ी ही मेहनत से पढ़ाते अब यह अलग बात है कि साहब 15 क्लास में 5 पन्ने की भी विषयवस्तु न पढ़ाई होगी। वो खुद बताया करते कि उनके बच्चे मना करते है कि अब आप पढ़ाने न जाया करिये, मैं खुद न मानता हूँ। इस बीच क्लास में पीछे से आवाज आती कि हां हम लोग तो फालतू हैं, जाहिर है साहब के जर्जर हो चूके कानों  तक ये मजाक न पहुँच पाता।

खैर आज एक बहुत ही बड़े साहब की कहानी बतानी है। साहब इतने बड़े इतने बड़े हैं कि पुछो ही मत और उनकी अवस्था क्या हो चुकी है वो आप आगे पढ़ने जा रहे हैं।

जिनके मुख से मैंने यह घटना सुनी वो साथी भी सिविल सेवक हैं। मित्र का प्रशिक्षण चल रहा था। उन्हें पता चला कि बड़े वाले साहब का उनके क्षेत्र में दौरा है, साथी , साथी के बॉस सब लोग आनन फानन में क्षेत्र पहुँच गए। मित्र अपनी गाड़ी से उतर कर, बहुत बड़े वाले साहब के पास पहुँचे। बड़े वाले साहब अपनी कार से उतर ही रहे थे। मित्र ने जाकर अभिवादन किया और बड़े साहब उतर कर खड़े हुए। मित्र ने बड़े साहब से बताया कि सर अपने पिछले वर्ष  मेरे UPSC वाले साक्षात्कार में सदस्य थे, 

अब इसे संयोग कहे या क्या कहे ठीक उसी समय साहब की पैंट उतर ( दरअसल सरक ज्यादा उचित शब्द है) कर नीचे जूतों पर जा टिकी। मजे की बात यह कि साहब को इसका आभास ही नहीं, मित्र को बताना पड़ा कि साहब आपकी पैंट उतर गयी है। इसी बीच उनका सहायक आ गया और बड़े साहब की पैंट में दोनों तरफ से अंगुली फ़साई और कमर में लाकर टिका दी। ( आपको हेराफेरी फ़िल्म के बाबूराव याद आ रहे होंगे, बाबूराव थोड़ा जवान थे कम से कम झुक सकते थे पर ये साहब इस दशा में थे कि झुक भी न सकते थे )

मेरा हँस हँस कर पेट फूल गया और मैंने तिखार तिखारकर (तिखारना एक बैसवाड़ी बोली,अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है खोद खोदकर/रस ले लेकर  पूछना ) खूब पूछा, विस्तृत जानकारी ली मसलन कि क्या साहब ने बेल्ट न पहनी थी या तुम्हारे कहते ही कि उन्होंने उसका साक्षात्कार लिया था, उनकी पैंट सरक गयी और उन्होंने आपके बोलने पर क्या बोला था आदि आदि।

हालांकि बड़े साहब की टीम बहुत ही बढ़िया कार्य में लगी है पर आप ही सोचिए ऐसा भी क्या जुनून कि इस अवस्था में कार्य करते रहा जाय। अनुभव व योग्यता कितनी ही अधिक क्यों न हो क्या देश के अन्य लोगों के लिए बड़े साहब को जगह खाली न कर देनी चाहिये। 

( अपनी बात : इन दिनों हम 4g चलाने वाले लोग, भटकते भटकते 2g स्पीड वाली जगह में चले आये हैं, अब तमाम चीजों के साथ हम लिखने पढ़ने वालों लोगों को मन्थर, जर्जर गति के नेट स्पीड से बड़ी दिक्कत हो रही है। रचनात्मकता उछाल मारती जा रही है पर नेट स्पीड है कि उसे दबाये ही जा रही है। तमाम मजेदार अनुभव संग्रह हो गए है, ऊपर वर्णित घटना इस कदर भायी कि लगा इसे पाठकों को कैसे भी हो जरूर पहुँचनी चाहिये।
कहानी सुनाने वाले मित्र बहुत डरे कि लिखना मत, मुझे टैग मत करना, वरना बड़े साहब तक अगर बात गयी तो मेरी पैंट उतरवा देंगे। हमने उन्हें भरोसा दिया कि शरलक होम्स भी आएंगे तो भी जान न पाएंगे कि बड़े साहब कौन थे, बशर्ते आप मुँह न खोले ) 

( उक्त रचना काल्पनिक है, किसी नाम, घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है )

© आशीष कुमार, उन्नाव। 
8 मार्च, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर से ) 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

repetitions

#दोहराव के मायने 

तमाम बार जब तुम्हें
बुलाता हूँ अपने करीब
नहीं बेहद करीब 
और दोहराता हूँ 
वही बातें
कि तुम मुझे 
बेहद पसंद हो

या कि मैं तुम्हें बहुत 
ज्यादा चाहता हूँ,
करता हूँ जुनून से
शिद्दत से, तुमसे प्यार

तब तुम मेरे इन 
दोहराव से कभी
न परेशान होना
या कि ऊबना

इन तमाम दोहराव
में निहित अर्थ 
यही है कि तुम 
मेरे लिए हमेशा 
रहोगी सर्वोपरि
और मेरे तुम्हारे प्रति प्रेम
कभी न होगा जीर्ण 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
( 17 जनवरी 2020 )

with you

#तुम्हारे साथ

मैं चाहता हूँ रहना
 हमेशा ही तुम्हारे साथ 
मैं चाहता हूँ जुनूनी प्रेम
ताउम्र तुम्हारे साथ,

मैं चाहता हूँ जीना भरपूर 
हर पल, हर क्षण
केवल व केवल 
तुम से ही , प्रिय केवल तुम्हारे साथ।

©आशीष कुमार , उन्नाव।
(17 जनवरी, 2020)

Death of love

#ठंड

कॉफी पीने के बाद वो बाहर खुली छत के किनारे खड़े थे। कई दिनों से वो मिल रहे थे तमाम बातें भी करते। दोनों ही एक दूसरे की बातें बड़े गौर से सुनते, प्रायः उनकी आंखों में खुशी की एक चमक दिखती। 
वो काफी देर से बाहर खड़े थे। लड़की अपनी धुन में बातें किये जा रही थी, लड़का हूँ हा करते हुए वो उसके गोरे, नाजुक हाथों को गौर से देख रहा था। वो बहुत देर से उन हाथों को छूना चाहता था पर अजब कसमकश थी। वो छू न पा रहा था। वो शंकित था कि पता नहीं उसके भावों को कहीं गलत न समझा जाय।लड़की ने अपने दोनो हाथ जीन्स की पॉकेट में डाल रखे थे।

लड़के से जब रहा न गया, उसने पूछा कि तुम्हारे हाथों को काफी ठंड लग रही है क्या ? 
"हां,आज काफी ठंड है । " कहते हुए उसने अपने हाथों को और भीतर कर लिया।

खलील जिब्रान ने कहा है कि जो कहा गया पर समझा नहीं  गया और जो समझा गया पर कहा न गया के बीच में तमाम मुहब्बत की मौत हो जाती है।

(17 जनवरी, 2020)
© आशीष कुमार, उन्नाव।

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

poem :fresh rose

कविता : ताजा गुलाब 

"जब तुम मेरी करीब होती हो
मुक्त मन से, आवरण रहित,
तुम मुझे एक ताजे गुलाब 
सरीखी लगती हो
अति कोमल, नाजुक 
भीनी भीनी खुसबू से भरी"

10 जनवरी, 2020,😌
© आशीष कुमार, उन्नाव

सोमवार, 6 जनवरी 2020

wait

इंतजार

"मैं थोड़ी देर में करती हूँ"
"अरे कोई नहीं "
" अरे मैं करती हूँ, पक्का"...
और वो हमेशा की तरह उसके फ़ोन का इंतजार करता रहा, यह जानते हुए भी कि घर में हजार तरह के काम होते हैं।

6 जनवरी 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव


Poem : promise

एक वादा

प्रिय सुनो,
मुझसे करो एक वादा
नहीं नहीं 
शंकित न हो
बस एक छोटा आसान सा वादा

वादे हमेशा ही
आसान व सहज होने 
चाहिए ताकि वो निभाये 
जा सके ताउम्र 
बगैर किसी दुविधा के।

मुझे करो बस इतना
वादा कि हम आज 
जितने करीब है
उतने करीब रहेंगे उम्रभर

जैसे पकड़ लेता हूँ हाथ
सुलझा देता हूँ आपके बाल
अपनी अगुलियों से
लगा लेता हूँ गले से
निःसंकोच,

वादा करो कि जैसे
तुम भी टिका देती हो 
अपना खूबसूरत चेहरा 
मेरे कंधों पर,
सिमिट आती हो आगोश में मेरे
बगैर किसी परवाह के
सहलाती हो मेरे हाथों को
कभी कभी अनायास ही

आ जाती हो कभी भी, कहीं भी
बुलाने पर मेरे
नहीं करती हो अस्वीकार
साथ में देखने को चलचित्र
पढ़ती हो मेरे चेहरे को 
समझती जाती हो मेरे हर इशारे को
और उन तमाम बातों को
जो प्रेम में कभी कही नहीं जाती है।

प्रिय, बस इतना सा वादा करो 
कि उम्र के किसी भी दौर में
कैसे भी मोड़ पर 
जब हम मिले तो
रहे कम से कम इतना करीब
जितना कि इन दिनों हैं।

*6 जनवरी, 2020
©आशीष कुमार, उन्नाव 


रविवार, 5 जनवरी 2020

कविता 6: A love latter

 कविता 6: एक प्रेमपत्र

एक सुहानी रात
तुमने कहा कि
मैं लिखूँ एक प्रेमपत्र
जिसमें बतलाऊँ कि
मेरे हदृय में क्या 
जगह है आपकी,
क्या मायने है आपके होने
मेरे जीवन में। 

सुनो प्रिय,
मैं कोई उपमा
नहीं दे सकता
जो परिभाषित कर
सके हमारे 
अनाम रिश्ते को

मैं अमिधा में 
ही कहूँगा कि
तुम सबसे खास हो
सबसे करीब,
सबसे राजदार

तुम्हें सुन सकता हूँ
अनवरत, अविचल
बोल सकता हूँ तुमसे
हर वो बात जो
किसी से कभी नहीं
कहता,

कर सकता हूँ वर्षों इंतजार
आपके आने का,
नहीं रखता अपेक्षा जरा सी भी
न ही कोई उम्मीद। 

तुम जब भी साथ होती हो
तब महसूस करता हूँ
दुनिया की सबसे अनमोल खुशी
आँखों में आ जाती है
बयाँ न कर सकने वाली चमक।

दिसंबर की सबसे ठंढी शाम 
पार्क की कोने वाली बेंच पर,
बैठ सकता हूँ कई घंटे
तुम्हारे साथ, 
बस हाथों में लेकर हाथ। 

दे सकता हूँ और भी 
लंबे, चौड़े व गहरे 
आत्मीय बयान 
शर्त यह है कि आप 
समझ सके मुझे 
और माप सके 
अपनी जगह को
मेरे हदृय में ।

*5 जनवरी, 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव







बुधवार, 1 जनवरी 2020

2 पेन व डायरी

                                                           2 पेन व डायरी

कुछ दिन से वो चौकीदार अंकल बहुत याद आ रहे है। काफी साल पहले की बात है , वो हमारे पड़ोसी थे। उस घर में तमाम किरायेदार रहा करते थे। मेरा रूम , उनके सामने ही था। मस्त मौला आदमी थे। हमेशा कुछ न कुछ मजाकिया बातें किया करते थे। उनके कुछ छोटे २ किस्से याद आते हैं।

१.  पहला किस्सा वो था जिसमें वो एक ऐसे आदमी का जिक्र करते जो बिलकुल भी पढ़ा लिखा नहीं था। ऐसे लोग काफी गुनी होते हैं। उसने लोगों को देख देख कर कुछ बातें सीख ली। उन्हीं बातों में एक बात उस अनपढ़ आदमी ने यह भी सीखी। उसकी जेब में हमेशा दो पेन व एक छोटी पॉकेट डायरी जरूर होती। एक बारात में वो इस रूप में गया। अच्छे से बाल सवारे , साफ स्तरी किये हुए कपड़े, शर्ट की जेब में दो पेन , एक छोटी पॉकेट डायरी। उसी बारात में किसी लड़की ने इन सज्जन को देखा और उसके मन में बड़े मधुर विचार पनपे। लड़की पढ़ी लिखी व काफी समझदार थी। उसने हमेशा से सोचा था कि किसी पढ़े लिखे इंसान से प्रेम विवाह ही करेगी। अंकल खूब हसँते -हसँते  बताया करते थे कि इस तरह से एक अनपढ़ इंसान ने दो पेन व एक पॉकेट डायरी के सहारे सुंदर -पढ़ी लिखी समझदार बीवी पा ली।

२.  अंकल ने मुझको लेकर एक भविष्यवाणी की थी कि देखना आशीष तुम एक दिन बहुत बड़ी नौकरी पाओगे। जब मैं उनसे पूछता कि ऐसा क्यों लगता है तो कहते कि तुम इतनी मोटी -२ किताबें जो पढ़ते हो। मैं बहुत मुस्कुराता और कहता कि ये तो फालतू के नावेल हैं , जो बेरोजगार खाली इंसान समय गुजारने के पढ़ा करते हैं। उन दिनों गोर्की का मां, शरत बाबु का देवदास, टालस्टाय का वॉर एंड पीस, कामु का प्लेग जैसी किताबें मेरे बिस्तर पर पड़ी रहती। रूसी भाषा के कुछ अनुदित नावेल 700-800 पेज के हुआ करते थे। बाद के तमाम सालों में मुझे अंकल वो तर्क याद आता रहा कि जो मोटी 2 किताबें पढ़ सकता है वो बड़ी नौकरी करेगा।

तो अब कहानी खत्म करू, नहीं कहानी तब तक खत्म न होगी जब तक आपको यह न बता दूँ कि अंकल चौकीदार जरूर थे पर रात में भी वो अपनी शर्ट में दो पेन व एक छोटी डायरी लेकर जाया करते थे।

(1 जनवरी 2020, दिल्ली)
© आशीष कुमार, उन्नाव

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