मंगलवार, 18 सितंबर 2018

Jodhpur Visit :3

जोधपुर :3 

अंग्रेजी फिल्मों में एक बड़ा नाम क्रिस्टोफर नोलन का हैं जिन्होंने बड़ी कमाल की फिल्में निर्देशित की हैं। उन्होंने एक फिल्म बैटमैन राइज भी डायरेक्ट की।

आप सोच रहे होंगे कि जोधपुर के महल की कहानी बताते बताते , मैं बैटमैन और नोलन की बात क्यों करने लगा। दरअसल आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मेहरानगढ़ किले को आप बैटमैन राइज में भी देख सकते हैं। याद करें जब ब्रूस , एक गहरे कुवें से निकलने के लिए सीढ़ी चढ़ता और गिरता है। अंततः जब वो निकलता है तो मेहरानगढ़ के बाहरी परिसर में ही निकलता हैं। जोधपुर में तमाम फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।

बात हो रही थी जब किले से रानियाँ जौहर के लिए निकलती थी। किले के अंदर जाते ही एक  रेस्तरॉ है। किले के भीतर तमाम चीजे थे। पत्थरों की बहुत बारीक़ जालियाँ है जिनसे आप बाहर से कुछ नहीं देख सकते है जबकि भीतरी भाग में मौजूद व्यक्ति बाहर का  सब कुछ देख सकता है। अंदर तमाम हथियार , पेटिंग्स , राजसी कपड़े के लिए अलग अलग कमरे हैं। अगर एक एक चीज पर गौर करने जाये तो पूरा दिन इसीमे निकल सकता है।  हमने वहाँ पर 4 या 5 घंटे बिताये होंगे।

किले के पास ही जसवंत थड़ा है। इसे जोधपुर का ताजमहल कहा जाता है। राजपरिवार के तमाम  सदस्यों को  यहाँ पर दफन किया गया है। सफेद संगमरमर की इमारत में बहुत सकून महसूस होता है। राजेश और  हम दोनों बहुत थक चुके थे।  उम्मेद भवन पैलेस , किले से दिखता है , प्लान बना कल दोपहर बाद देखा जायेगा।

लौटते समय हम घंटाघर से आये। वहाँ पर कुछ स्थानीय नाश्ता किया , जैसे पालक पकौड़ी और चाय। यह चाय की बहुत प्रसिद्ध दुकान थी और अनोखे तरीके से चाय बन रही थी। एक तरफ चाय का पानी उबल रहा था और एक ओर दूध उबाल कर रखा गया था। चाय का टेस्ट बहुत बढ़िया था पर दुकान में साफ सफाई, जगह की कमी हैं। राजेश को चाय इतनी बढ़िया लगी कि उसने 2 गिलास पी।

घंटाघर , जोधपुर के प्रमुख मार्किट है। सैकड़ो की संख्या में विदेशी सैलानी दिख रहे थे। हमने भी कुछ शॉपिंग की और  घर लौट आये। अगले दिन राजेश का ras का पेपर था , मैं भी उसके साथ निकला और सेण्टर पर उसका इंतजार करता रहा। पेपर देने के बाद हम उम्मेद भवन पैलेस की ओर निकल गए।

उम्मेद भवन पैलेस , जोधपुर के महराजा का निजी सम्पत्ति है। महल का कुछ हिस्साा आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया है। जहाँ तक याद आता है , इसके कुछ हिस्से में ताज होटल ग्रुप ने एक हेरिटेज होटल बना दिया है और उसके कुछ कमरो का किराया एक रात का 2 लाख रूपये तक है। एक दिन का  न्यूनतम 50000 रूपये है। 

उम्मेद भवन एक पहाड़ी पर बना है। भीतर विंटेज कारों का एक म्यूज़ियम भी है। रोल्स रॉयस , कडियाक, मरसडीज और भी न जाने कौन कौन सी कारे खड़ी है। कारे 1920 से आगे के दशक की हैं और देखने में बहुत भव्य है। रॉल्स रॉयस के इंजन किसी रेल के इंजन सरीखा दिखता है। 

महल घूमने के बाद हमें जोरों की भूख लगी थी। काफी देर हम वहीं पता करते रहे कि जोधपुर में सबसे अच्छी जगह खाने की कौन सी और कहाँ है। एक युवा ने जिप्सी रेस्तरॉ का नाम बोला। नाम सुनकर ही लगा कि वहाँ जरूर जाना चाहिए।

जिस्पी पहुँच कर देखा कि वहाँ तो वेटिंग क्यू है। 4 बज रहे थे। बाहर इंडिया टुडे की एक पेपर कटिंग लगी थी और जिप्सी को उसमें काफी अच्छी जगहों में शुमार किया था. अगस्त का यह पहला रविवार था और शायद यह फ्रेंडशिप डे भी था। सामने एक बेकरी की दुकान थी। कुछ लड़कियाँ और लड़के फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट करने के लिए उधर जा रहे थे। उन्हें देख लगा कि जोधपुर , फैशन के मामले में काफी एडवांस हैं।

यह शहर में कुछ पॉश एरिया होते है। शायद हम जोधपुर की सबसे महत्वपूर्ण जगह पर थे। जिप्सी में अंदर जाकर पता चला कि उनकी जोधपुरी थाली वैगरह 3 बजे तक ही रहती है और शाम को 7 बजे के बाद फिर से शुरू होगी। इस बीच सिर्फ चुनी हुयी चीजे मिल पाएंगी। हमने दाल मखनी और गार्लिक नॉन लिया। स्वाद और सबसे  महत्वपूर्ण साफ सफाई में जिप्सी का जबाब नहीं। गूगल से पता चला तो होटल का मालिक किसी आईपीएस का बेटा था और शौक के तौर पर इसे शुरू किया था जो अब बहुत अच्छे से चलने लगा था।

हमारी रात की ट्रैन थी। मेरी सीट कन्फर्म न थी उसी दिन टिकट बुक किया था। हालाकि सुमित ,  राजेश की सीट कन्फर्म थी। मुझे उनकी सीट पर बैठ कर रात काटनी थी। उन्होंने कहा की tt से बात करलो, अपना परिचय दे दो  शायद कोई सीट हो। मैं मुस्कराया परिचय से ही बात बनानी होती तो सीट पहले ही कन्फर्म होती। जब तक घोर जरूरत न हो , आम बन कर ही जीने में मजा है।

उन दिनों नेटफ्लिक्स पर मैं वाइल्ड वाइल्ड कंट्री सीरीज देख रहा था। काफी रात तक उन्हें देखता रहा। सुमित रात में कई बार उठ कर मुझे सोने के लिए ऑफर किया पर मैं साइड सीट पर बैठा रहा और सोचता रहा यही तो जीवन है , दो साल फ्लाइट से चलने के बाद इस तरह स्लीपर डिब्बे में साइड सीट पर रात जागते हुए काटना , ये भी तो जरूरी अनुभव है। आखिर मेरा फलसफा है कि अनुभव ही जीवन है और जीवन ही लेखन है।

(यात्रा के जुड़ी तमाम तस्वीरें मेरी इंस्टाग्राम प्रोफाइल @asheeshunaoo पर अपलोड हैं, उनके साथ आप इस यात्रा विवरण का बेहतर चित्र मनस पटल पर खींच सकते हैं. यात्रा विविरण लिखना काफी जटिल कार्य है विशेषकर प्रामणिक सूचना के लिहाज से, जब यात्रा की थी विकी और गूगल से खूब जानकारी जुटाई थी पर यह जरूरी नहीं कि इस यात्रा विवरण में सब प्रामाणिक ही हो, आलस के चलते लिखते समय बस स्मृति का सहारा लिया है।  )
(समाप्त )
©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 17 सितंबर 2018

Jodhpur Visit : Part 02

जोधपुर :2 

सुमित के घर पहुंच कर चाय , नाश्ता किया। मैं और राजेश , ऊपरी मंजिल पर  फ्रेश होने गए , इसी बीच सुमित ने कहा कि खाना खा कर ही निकलना। सुमित की माँ ने शाही पनीर बनाया था। खाने के साथ घेवर भी था। सुनकर बड़ा अजीब लगे , पर घेवर से पहली बार रूबरू हो रहा था। सुमित ने कहा कि यहाँ खाने के साथ मीठा खाने का रिवाज है। बातों बातों में पता चला कि जोधपुर के प्रसिद्ध चीजों में प्याज कचोरी , मावा कचौरी आदि हैं। 
दिन शनिवार था। सुमित ने मोटा मोटा कार्यक्रम समझा दिया था कि कैसे घूमना। मैं और राजेश , सुमित के घर से बाइक लेकर निकले। मैं ड्राइव कर रहा था और राजेश पीछे बैठकर गूगल मैप की मदद से रास्ता बता रहे थे। गूगल मैप के चलते अब चीजे काफी आसान हो गयी हैं। 

 सबसे पहली जगह थी मछिया बायो पार्क। बहुत साफ सुथरी जगह। छोटी सी पहाड़ी पर , हवा काफी शीतल और ताजगी भरी  बह रही थी. पार्क में कई स्कूलों के बच्चे आये थे।  इसके बावजूद ज्यादा भीड़ न थी। पहले लगा कि यह ज़ू है और ज़ू इतने देखे हैं कि अब इसमें ज्यादा उत्साह नहीं रहा। बाद में पता चला कि पार्क की महत्ता जैव विविधता के लिए ज्यादा है। एक विशेष भवन में जोधपुर के आस पास पायी जाने वाली तमाम पेड़ , पौधे , फूल के नमूने इकठ्ठा करके रखे गए हैं। 1 या डेढ़ घंटे में ही इसे पूरा घूम लिया। मैप में पार्क के पास कोई झील दिखा रहा था , काफी प्रयास करने के बाद भी झील की लोकेशन समझ न आयी। 

पार्क के बाद अगला पड़ाव था जिसे पूरी यात्रा का सबसे खास आकर्षण कह सकते हैं -जोधपुर फोर्ट। पुणे यात्रा में मैंने अपने देखे कुछ फोर्ट का विवरण साझा किया था। एकदम निश्चित तो नहीं पर संख्या के लिहाज से यह मोटे तौर पर १२वा या १३वा फोर्ट होगा। किले घूमने का अपना ही मजा होता है। सुमित ने एक बात बता दी थी कि जोधपुर की धुप बड़ी कड़क होती है। 11 बजे से ही धुप का असर काफी तेज हो चला था। एसी में रहने वाला शरीर कुछ ज्यादा ही नाजुक हो जाता है। 

पार्क से जोधपुर किले की ओर जाते समय , एक बात समझ आयी कि जोधपुर शहर में ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं है। सड़के चौड़ी है और मकान की बड़ी बड़ी कतारे कम दिखती है। आप दो चीजें सुनकर शायद चौंके - एक राजस्थान का मतलब अक्सर रेत से लगा लेते है और जोधपुर के आसपास पहाड़ी इलाके हैं। जैसे कि राजेश कह रहे थे कि यहॉँ पहाड़ी देख कर हैरानी होती है। 

जोधपुर का किला काफी दूर से दिखने लगता है और ठीक ठाक ऊंचाई पर बना है।  दूर से महल की भव्यता देख दिल खुश हो गया। किले के बाहर काफी पार्किंग की जगह पर काफी भीड़ भाड़ थी। धुप अब और भी कड़क हो गयी थी। बाहर पार्किंग के पास पीने के ठन्डे पानी की बढ़िया इंतजाम था। लगे हाथ बता दूँ कि पुरे जोधपुर में जगह जगह पर वाटर कूलर लगे है कम कम जिन जगहों पर मै घूमा। इस बात की जितनी तारीफ की कम है। अमीर हो या गरीब , हर किसी के लिए कड़ी गर्मी में ठंडा पानी मिलना , बहुत सकून की बात होती है। 

सुमित से उसके घर में पूछा था कि इस टाइम  जोधपुर में विदेशी सैलानी आते है क्या ? उसने कहा था कि आते तो काफी है पर शायद  इस टाइम शायद न दिखे। वो गलत था मुझे फोर्ट के परिसर में सैकड़ो विदेशी सैलानी दिख रहे थे। जहाँ मैं पानी पी रहा था वहाँ एक अंग्रेज गर्मी से परेशान अपने मुँह को ठन्डे पानी से धो रहा था। चेहरे को गीला कर उसने एक सिगरेट निकली , एक कश लिया और आँखे बंद करके बहुत धीरे से धुँवा छोड़ा। मेरे मन तमाम ख्यालों यह बात आयी - आखिर यह हजारों मील दूर यहाँ गर्मी में क्यू आया होगा ? 

मैंने बाइक स्टैंड में लगाई , राजेश बैग व हेलमेट रखने के लिए दूसरी जगह गए। किले के प्रवेश द्वार पर टिकट मिल रही थी। यूनिफार्म अफसर के लिए आधे दाम थे। अच्छा लगा। हम कितने ही बड़े क्यू न हो जाये कही पर छूट मिले तो बड़ा बढ़िया लगता है। टिकट विंडो पर एक लड़का , झगड़ रहा था कि हम स्टूडेंट ही है पर हमारा i कार्ड नहीं बना है। गाइड 400 रूपये में था। इसका विकल्प मिला रिकार्डेड हेडफोन। बड़ी बढ़िया व्यस्था थी। जगह जगह नंबर दर्ज थे , जिनके जरिये आप किले के अतीत के बारे में प्रामाणिक जानकारी जुटा सकते है। मसलन भीतर के दरवाजे पर कुछ छेद बने थे , हेडफोन से पता चला कि यह तोप के गोले के निशान हैं। आगे एक किशोर एक वाद्ययंत्र में बड़ी मधुर धुन निकाल रहा था। किले के मुख्य द्वार पहुंचने में ही काफी वक़्त लग गया। 

इस गेट के पास दो लोग  नक्कारा बजा रहे थे। पर्यटक को देख वो अनुमान लगाते कि  कुछ निछावर देगा , तब ही वो बजाते थे। हम दोनों को देख भी बजाया , राजेश बोला इनको कुछ दे दो। मैं पास जाकर 10 रूपये रख दिए , एक ने नोट देख एतराज सा किया , दूसरे ने उसे चुप रहने का इशारा किया। नीचे देखा वहाँ पर 100 , 500 रूपये की ही नोट रखी थी। मन में लगा कि वो सोच रहा था कि एक वो दौर भी होता था कि राजा महराजा खुश हो गए तो अपने गले से हीरे -जवाहरात उतार कर दान दिया करते थे और आज ये 10 रूपये का नोट _________. 

इस किले अपनी विशालता और बनावट की जटिलता आप को बहुत प्रभावित करेगी। मुख्य द्वारा भी कला से बनाया गया है। सीधे न होकर यह साइड में खुलता है। ताकि पुराने समय में हाथी के जरिये तोडा न जा सके। वैसे भी यह काफी उचाई पर था , कितना ही बलवान हाथी क्यूँ न हो , यहाँ तक आने में उसकी दम निकल जाएगी और दरवाजा साइड में है तो उसे तोड़ने के लिए जगह  न बचती है। अंदर कुछ हाथों के निशान बने थे , हेडफोन से पता चला कि ये वो निशान है जब किले की रानियाँ जौहर के लिए निकलती थी तो आखिर बार अपनी निशानी महल में छोड़ कर जाती थी।
(यात्रा के जुड़ी तमाम तस्वीरें मेरी इंस्टाग्राम प्रोफाइल @asheeshunaoo पर अपलोड हैं, उनके साथ आप इस यात्रा विवरण का बेहतर चित्र मनस पटल पर खींच सकते हैं )
जारी ___________
©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

शनिवार, 15 सितंबर 2018

Jodhpur Visit : part 1


जोधपुर यात्रा (01 )

जोधपुर यात्रा का प्लान पहले से न था , कुछ मित्र (राजेश सोनी  , सुमित गोयल )  राजस्थान प्रशासनिक परीक्षा का प्री एग्जाम (05 अगस्त 2018 ) देने जा रहे थे। बोले साथ चलो घूमना हो जायेगा। बस ट्रैन की  टिकट एक समस्या थी जो अंतिम समय में हल हो गयी। साबरमती स्टेशन , अहमदाबाद से सीधे ट्रैन थी भगत की कोठी तक। स्टेशन समय से पहले पहुँच गए और ट्रैन आने तक दो कहानियाँ घट गयी। एक अभी बताता हूँ , दूसरी कहानी कुछ ज्यादा ही रोचक है जो फिर कभी स्वत्रंत कहानी के रूप में रचूंगा। 

हुआ यह कि मै और राजेश प्लेटफार्म नंबर 2 पर यूँ ही टहल रहे थे कि किसी ने मुझे नाम से पुकारा। सामने देखा तो एक अजनबी सा चेहरा नजर आया। उसने मुस्करा कर कहा -बधाई हो। मैंने कुछ हैरान सा धन्यवाद दिया। उसने मेरी परेशानी समझते हुए बोला - " आप शुभ लाइब्रेरी (शास्त्री नगर , अहमदाबाद ) में पढ़ने आते थे न वही से हूँ। अब तो लाइब्रेरी में सिविल सेवा में चयन के बाद आपकी फोटो लगा दी गयी है। " अब मुझे कुछ कुछ उसका चेहरा याद आने लगा। 7 होने को आये अहमदाबाद में पर इस शहर में ज्यादा घुल मिल नहीं पाया। इस तरह से उस मित्र का स्टेशन पर मिलना और आत्मीयता - बहुत अच्छा लगा। ट्रैन कुछ लेट थी। हमने तमाम बातें की , उसने कुछ पीने के लिए ऑफर किया। मैं इनकार करता रहा पर वो न माने। जब मैं , उस दोस्त के साथ प्लेटफार्म पर दुकान की तरफ बढ़ रहे थे। मैंने राजेश जोकि हमारे बैग की रखवाली कर रहा था , मैंने जोर से आवाज दी - यार कुछ पियोगे ? 

मैंने दो कहानियों की बात की है , एक तो ऊपर बता चूका हूँ , दूसरी कहानी  का थोड़ा सा हिंट दे देता हूँ। ये जो आवाज दी थी उसको किसी और अजनबी ने भी सुना और समझा कि हम ड्रिंक करने जा रहे हैं। ड्रिंक का यहाँ मतलब वाइन से ही है। खैर यह बहुत जाना माना तथ्य है कि प्रायः लोग गलत अनुमान ही लगाते है। इसका एक बढ़िया उदाहरण मेरी फेसबुक की टाइम लाइन पर एक पिक्चर है , जिसमें मै एक कांच की बोतल से गिलास में पानी डाल रहा हूँ और बहुतायत लोग हैरान है कि मै खुलेआम----------- 

 एक और जरूरी बात याद आ रही है , स्टेशन पर मुझे कुछ अलग सा अहसास हो रहा था। गौर किया तो समझ आया कि लगभग 2 साल बाद ट्रैन से सफर करने जा रहा हूँ। पिछले दो सालों में समय , पैसे की तुलना में समय कही ज्यादा कीमती था , संयोग ऐसे बने कि चाहे दिल्ली जाना हो , लखनऊ या फिर पुणे। हवाई सफर ज्यादा सरल , सहज लगा। ट्रैन की यात्रा समय तो लेती है पर यात्रा का आनंद भी इसी में आता है , विशेषकर कोई साथी हो तो आनंद ही आनंद। राजेश , मेरे ग्रुप में सबसे कूल , सहज माना जाता है। उसके साथ सफर बहुत मजे में कट गया।  

सुबह सवेरे ही भगत की कोठी में मेरी ट्रैन रुकी। स्टेशन से बाहर निकले तो जोधपुर का ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालय (  jnv ) दिख गया। इस विद्यालय का बहुत नाम सुना था। स्टेशन के बाहर , ऑटो वालों का वही पुराना ड्रामा। शुक्र है कि सुमित अपने गाड़ी लेकर लिवाने आ गए। सुमित , हमारे सहकर्मी है और जोधपुर में उनके घर पर ही रुकना हुआ। मेरे मन में थोड़ा झिझक थी , सोचा था कि कोई होटल देख लिया जायेगा पर सुमित का घर में रुकना बहुत सही निर्णय था। बड़ा सा घर , स्वादिष्ट खाना और जोधपुर से जुडी तमाम जानकारी।

( जारी_________)

©  आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

NETFLIX: WILD WILD COUNTRY

नेटफ्लिक्स : वाइल्ड वाइल्ड कंट्री 


काफी पहले मुझे किसी ने सुझाव दिया था कि आप ओशो को भी पढ़िए। कई बार बुक स्टाल पर ओशो से जुडी मैगज़ीन देखी पर पल्ले कुछ भी न पड़ा। उनकी पुस्तक सम्भोग से समाधि के बारे सुना बहुत पहले था पर विवादित विषय होने के चलते उसे ज्यादा तलाशने की कोशिस भी न की। 

पिछले दिनों जब सेक्रेड गेम्स की धूम मची थी और हर कोई फेसबुक पर "कभी कभी लगता है कि अपुन ही भगवान है " जैसे डायलॉग लिख , जतला रहा था कि उसने नेटफ्लिक्स तक अपनी पहुँच बना ली है। हमने भी गणेश गाईतोंडे को देखा और सुना। नेटफ्लिक्स को लेकर कुछ और जिज्ञासा बढ़ी  तो वाइल्ड वाइल्ड कंट्री के बारे में भी सुना। 

बात चूँकि ओशो से जुडी थी इसलिए उस सीरीज के 6 भाग एक एक देख डाला। गणेश को लगता था कि वो भगवान है पर ओशो को लोगों ने भगवान मान लिया था। वाइल्ड वाइल्ड कंट्री में ओशो के जीवन का वह भाग है जिसमें वह अमेरिका के ओरेगन प्रान्त जाते है और एक नया शहर बसाते है। पूरी सीरीज मंत्रमुग्ध होकर देखता रहा और हैरान था कि कुछ दशक पहले ऐसा भी हुआ था। डॉक्यूमेंट्री के रूप में इस सीरीज में कई लोगों के इंटरव्यू ,  वीडियो क्लिप्स के आधार पर अतीत को फिर से लिखा गया है। शीला का चरित्र काफी रोचक है। 

सीरीज देखने के बाद से ओशो से जुडी चीजे नेट पर तलाशा तो देर सारी चीज उपलब्ध हैं। धीरे धीरे उन्हें देख रहा हूँ। ओशो में बहुत कुछ है जो सीखा जा सकता है। अक्सर उनके विवादों पर बात होती है पर विवाद से इतर भी तमाम चीजें है उनके सटीक तर्क , गहन अनुभव व विस्तृत  ज्ञान का कोई जोड़ नहीं है। मन की तमाम उलझनें , उनके विचारों से सुलझायी जा सकती है।  

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

शनिवार, 1 सितंबर 2018

Life means travel and meeting with friends

जीवन यानी यात्रा और मित्रों से मिलना

प्रिय मित्रों, मेरा अगले सप्ताह यानी 7 से 11 तारीख को मैं दिल्ली आना होगा। प्रयोजन कुछ पुराने मित्रों से मुलाकात करना है। हालांकि हर किसी से बात करना और अलग अलग मुलाकात करना काफी कठिन है। पिछली बार इस तरह का जब प्रोग्राम बना था तो काफी मुश्किलें हुई थी। मुखर्जी नगर के एक पार्क में अंततः 3 लोग मिले, उसमें एक विशेष तौर बस मिलने के लिए  अलीगढ से आया था। 
इस बार दिल्ली, गाजियाबाद और नोयडा में रहने का प्लान है। यात्रा पूरी  से घूमने और सिविल सेवा में पूर्व में चयनित मित्रों से मिलने के लिए प्लान की है।

जो लोग दिल्ली आने पर मिलने के लिए लंबे समय से कह रहे थे , प्लीज अपना पता और मोबाइल इनबॉक्स कर दे। अगर बात बनी यानी मेरे रूट में आप है तो निश्चित ही मुलाकात होगी।
-आशीष,

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

letter


योजना का सामाजिक सशक्तिकरण पर क्रेन्द्रित अगस्त 2018 का रोचक अंक मिला। हमारे समाज के समुचित उत्थान के लिए यह सबसे जरूरी है कि समाज की कमजोर कड़ी पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाय। देखा जाय तो महिलाएं , बच्चे , दिव्यांग व बुजुर्ग समाज के सबसे भेद्य कड़ी है। वर्तमान सरकार ने इन वर्गों के समावेशी विकास हेतु कई महत्वपूर्ण योजनाओं यथा प्रधानमंत्री जन धन योजना , सुगम्य भारत अभियान , प्रधानमंत्री वय वंदना योजना की शुरुआत की है। इनके जरिये हम समावेशी विकास हासिल कर सकेंगे जोकि सामाजिक सशक्तिकरण की नींव माना जाता है। वस्तुतः तेज विकास के तब तक कोई मायने नहीं है जब तक हम विकास के लाभ को समाज के हाशिये पर खड़े लोगों तक न पहुंचा सकें। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी जी ने भी हमेशा इसी बात पर जोर दिया है कि सबका साथ , सबका विकास। योजना के इस अंक में समाजिक सशक्तिकरण के लिए जरूरी कई पहलुओं पर रोचक , सारगर्भित जानकारी मिली। तमाम शोधपरक लेखों से सुसज्जित यह अंक संग्रहणीय बन पड़ा है।  

आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

Questions and answers

सवाल व जबाब

हम कई मसलों में जबाब देने के योग्य होते हैं और कई बार हमें खुद सवालों से घिरे होते है। दोनों ही मसलों में हमें बहुत मितव्ययिता बरतनी चाहिए । सवालों का अंत नही है और हर किसी से अपने सवालों को नहीं साझा करना चाहिए । उत्त्तर देने में भी हमें संयम बरतना चाहिए । जितने अधिक आप उत्तर देने जाओगे , अपने महत्व को कम करते जाओगे। कई बार , चुप रहना भी सबसे बेहतर जबाब होता है।

-आशीष, उन्नाव

सोमवार, 27 अगस्त 2018

Motivational : Three star of Hindi Medium

हिंदी माध्यम इनका हमेशा ऋणी रहेगा
हिंदी माध्यम से सिविल सेवा की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से मैं कई सालों से जुड़ा हूँ , जो मैंने सीखा , अनुभव पाया। उसे समय समय पर अपने पेज व ब्लॉग पर लिखता रहा हूँ। सैकड़ो अनजाने लोगों से बात हुयी है। इधर मेरे चयन के बाद , फ़ोन कॉल के लिए तादाद कुछ ज्यादा बढ़ गयी है। पिछले दिनों mrunal .org पर मेरी सफलता की कहानी प्रकाशित होने के बाद भी बड़ी मात्रा में मेल मिले।
आज भी एक फ़ोन पर बात करते करते मैंने एक चीज नोटिस की। पिछले कुछ समय से मैं अपनी बातों के साथ साथ हर किसी से यह चीज जरूर कहने लगा हूँ कि अगर हिंदी माध्यम से हो तो तीन नाम नोट करो - श्री निशांत जैन , आईएएस राजस्थान कैडर , श्री गंगा सिंह राजपुरोहित , आईएएस गुजरात कैडर , श्री राहुल धोटे , आईएएस मध्यप्रदेश कैडर और इनसे जुड़े जितने भी u tube वीडियो मिले देख डालो। बहुत गौर से उन्हें सुनना , उन्होंने बहुत ही ईमानदारी से अपनी बातें रखी है , उनका अनुसरण करिये , सफलता जरूर मिलेगी।
अपने उन्हें सुना होगा पर क्या उन्होंने जो बातें कही है उन्हें नोटिस किया। 2016 तक मेरे 8 प्रयास हो चुके थे , इसके बावजूद अगर मैंने अपने आखिरी यानी 9 प्रयास में बगैर निराशा के पूरी मेहनत से अपने आप को झोका तो इसके पीछे एक बड़ी जरूरी बात थी। श्री गंगा सिंह जी ने अपने दृष्टि वाले वीडियो में एक बड़ी जरूरी बात कही थी कि उन्होंने एक दिन में तीन-तीन टेस्ट लिखे हैं और उनकी अंगुलियों में छाले तक पढ़ गए थे। यह बात मेरे मन में बैठ गयी और मैंने भी gs के 22 टेस्ट और वैकल्पिक विषय के 7 टेस्ट और 5 निबंध लिखे , जिसका असर मेरे मैन्स के अंको में देखा जा सकता है। इसी तरह से निशांत जी से भी कई बातें सीखी जा सकती है - " अपनी लकीर बड़ी करो " " अनेकांतवाद वाली बात " और राहुल धोटे जी की " मैन्स के लिए कीप थ्योरी " . अगर अपने उल्लिखित लोगों के वीडियो देखने के बाद भी इन चीजे से परिचित नहीं है तो एक बार फिर से उन्हें सुने।
हिंदी माध्यम के लिए जितनी भी शिकायतें / समस्याएं हैं या हो सकती है , उनके जबाब /समाधान इन लोगों में अपने समय में बखूबी दिए हैं जो आज भी प्रासंगिक है। टॉपर से बात ही हो यह जरूरी नहीं है , कई बार आस्था भी बहुत काम की चीज होती है। मैंने इन लोगों से सम्पर्क करने का खूब प्रयास किया था पर सफल न हुआ। पिछले दिनों , निशांत जी और गंगा जी से काफी लम्बी लम्बी और बड़ी ही आत्मीय बात हुयी , बहुत अच्छा लगा। सच में इन लोगों ने अपने समय पर ऐसे कमाल किये है जो हिंदी माध्यम को लंबे समय तक प्रेरणा देते रहेंगे।
© आशीष कुमार ,उन्नाव उत्तर प्रदेश.

बुधवार, 22 अगस्त 2018

Vo jo ankho se ek pal n ojhal huye


वो जो आँखो से एक पल न ओझल  हुए , लापता हो गए देखते देखते 

कभी कभी ऐसे गाने बनते है जो बहुत ही सुंदर , कर्णप्रिय होते है। आतिफ असलम ने समय समय पर कुछ बहुत ही बेहतरीन गाने गाये है यथा तेरे लिए (प्रिंस ) . उक्त वर्णित गीत भी कमाल का लग रहा है. शब्द , संगीत ,आवाज और भावनाएं चारों ही कसौटिओं पर खरा है. अपने एक बात शायद नोटिस की हो ,  पिछले कुछ समय के  कुछ अति लोकप्रिय  गीतों वो है जो दशकों पहले नुसरत फतेह अली खान ने गाये थे। बात चाहे "  मेरे रश्के कमर " हो या फिर " नित खैर  मंगा " हो। आतिफ असलम को सुने तो नुसरत साहब की बेहतरीन आवाज में भी सुने - सोचता हूँ कि वो कितने मासूम से थे , क्या से क्या हो गए देखते देखते।  

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।      

रविवार, 19 अगस्त 2018

Success tips for upsc

अगर आप कोचिंग कर पाने में सक्षम नही हैं तो 2 चीजे जरूर ध्यान रखना
1. किताबें जितनी ज्यादा खरीद सको, खरीदते रहना।
2. जितना ज्यादा पढ़ सकते तो पढ़ते रहना

एक मजेदार तरीके में कहूं तो मैंने अपने वजन के 10 गुना ज्यादा किताबें खरीदी होंगी और उनमें कुछ 4 या 5 बार से ज्यादा पढ़ी गयी होंगी।

-आशीष कुमार

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मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...