शनिवार, 22 जून 2019

kabir singh : a story


01 . कबीर सिंह : एक कानों सुनी , बिलकुल ताजी घटना 

हाँ , यह बात कबीर सिंह फिल्म की ही है। कल की बात है , मैंने किसी को फ़ोन पर इसके बारे में बात करते हुए सुना। जब उसकी बातें खत्म हो गयी तो मैंने पूछा "यार कबीर सिंह को लेकर क्या बात हो रही थी ( मैंने मूवी का काफी पहले ट्रेलर देखा था तब लोग बात कर रहे थे कि  यह सलमान खान की भारत मूवी से ज्यादा पॉपुलर हो रहा है ) . साथी ने बताया कि यार वाइफ का फ़ोन था कह रही थी कबीर सिंह मूवी देखने चले। अब जब वाइफ , पति से डिमांड करे वो भी जोकि सिविल सेवा का मैन्स देने वाली हो , जिसका पल पल कीमती हो तो जाहिर है मूवी बहुत खास होगी। मैंने साथी से पूछा कि तो फिर जा रहे हो क्या ? नहीं यार मैंने उसे समझा दिया कि दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है - शासित व शासक। अब तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम्हें क्या बनना है ? कबीर सिंह , फकीर सिंह तो आते जाते रहेंगे तुम्हें शासक बनना है कि नहीं, तुम कहाँ इन तुच्छ बातों में पड़ी हो । जाहिर है कि अब इतनी उच्च , दार्शनिक बातें सुनकर भाभी जी क्या ही बोली होंगी। हम दोनों बहुत देर तक इस बात को लेकर हसँते रहे। अगर कोई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा हो तो वो भी इस बात से प्रेरणा ले सकता है कि तुम्हें बनना क्या है - शासक या शासित।

[मेरे नियमित पाठकों को पता है कि मैं इतनी छोटी पोस्ट नहीं लिखता फिर  इतने दिनों बाद लिखा है तो  नैतिक दबाव है कि कुछ और भी लिख ही दूँ। ]

०२. "अब जिंदगी में कोई उद्देश्य बचा नहीं "

यह कहानी दो ऐसे लोगों कि है जो दुनिया की सबसे कठिन समझी जाने वाली ( पता नहीं यह बात कब से और कैसे विरासत में चली आ रही है ) और जो हर साल देश के सबसे योग्य युवाओँ का दिमाग का दही करने वाली प्रतियोगी परीक्षा को पास कर चुके है। जी यह सिविल सेवा परीक्षा की बात हो रही है। जिन दो लोगों की बात हो रही है , उनमें एक ने अपने अंतिम प्रयास में यह परीक्षा पास की है , वो आईएएस नहीं बना फिर भी वो मुक्त हो गया, UPSC  ने उसे आजाद कर दिया कि अब तुम मोक्ष्य को पा  चुके , 9 साल तक गुलाम रहे अब अपनी जिंदगी जियो। दूसरे के पास एटेम्पट है पर उसे आईएएस मिल गया तो वो भी मुक्त हो गया। संयोग से दोनों रूम पार्टनर है। एक जनवरी से सोच रहा है कि अब क्या किया जाय , उसे पुरे साल सिविल सेवा की तैयारी की आदत पड़ गयी थी अब एकाएक सब खत्म। दूसरे को इसी साल आईएएस मिल गया। जिस दिन रिजल्ट आया और रैंक से आईएएस मिलना निश्चित हो गया , उसी दिन से वो भी मुक्त हो गया।  

तो अब ऐसे लोगों के जीवन पर नजर डालते है , दोनों ने ही तमाम कल्पना की थी कि बस एक बार UPSC से मुक्ति मिले तो जिंदगी में ऐश ही ऐश करेंगे पर दोनों करते क्या है - कल रात की बात है , जिसे आईएएस मिला है वो बोलता है यार अब जिंदगी में कोई उद्देश्य नहीं बचा है , दूसरा बोलता है हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। फिर दोनों टिक टॉक पर भारत के नए उभरते हुए एक्टर एक्ट्रेस की फूहड़ एक्टिंग देखते है। बीच बीच में बोलते है कि देश का युवा किस किस तरह की बकैती में लगा है ( अगर अपने आप टिक टॉक के वीडियो नहीं देखे तो आप उन बचे हुए दुर्लभ लोगों में है जिनकी प्रजाति तेजी से खत्म हो रही है ) ----दूसरा बोलता है - हाँ भाई सही कह रहे हो।  फिर दोनों एक दो घंटे तक अपने अपने फ़ोन में डूबे रहते है , एक हल्के होने के लिए उठता तो अहसास होता है कि रूम में ac ठंठक कम  कर रही है , रूम में दो ac है। दोनों में 18C तापमान कर दिया गया है। कंबल ओढ़ लिए क़र  फिर एक ने बोला -भाई जिंदगी में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा , हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। रात के 1 बज गए है। अब मोबाइल से मन भर गया है। एक बोलता है कि भाई कौन सी मूवी दिखाओगे ? अब ipad  खुल गया। यू tube पर तिग्मांशु धुलिया की 'हासिल' फिल्म देखी जा रही है। रात  3 बजे दोनों का सोना शुरू हुआ पता नहीं कब सोये। सुबह 10  बजे उठे वो भी इसलिए कि इसके नाश्ता न मिलेगा। वापस आकर फिर सो गए।  दोपहर 1 बजे दोनों उठे - दोनों फिर एक बार दोहराया - "यार जीवन में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा है।" ऐसी ही जिंदगी चल रही है। आप सोच रहे होंगे कि भला जीवन में उद्देश्य कैसे खत्म हो सकते है , मेरे ख्याल से  दोनों के पास अब  सिविल सेवा की परीक्षा जैसा तगड़ा उद्देश्य नहीं बचा है, इसलिए ही वो इस तरह से जी रहे हैं। यह  कहानी याद जरूर रखना , क्या पता उनके जीवन के बाद के भी कभी अपडेट लिखे जाय।  

फुटनोट : उक्त कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, किसी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका सम्बन्ध मात्र एक संयोग होगा। काफी दिनों बाद कुछ लिखा है, लिखना कुछ और ही था और सोचा था कि जो भी लिखूंगा वो अपने दो खास मित्रों को समर्पित करूंगा। महर सिंह ( भारतीय सुचना सेवा 2011 बैच ) व शिवेंद्र मिश्रा ( IRS - IT 2016 बैच ) आप दोनों को यह पोस्ट समर्पित है , आप दोनों ही  मेरे लिखे बड़े चाव से पढ़ते है और बीच बीच में लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है , उम्मीद करता हूँ यह पोस्ट भी पसंद आएगी। 

रचनाकाल : रात 1 बजे, 23 जून 2019 , दिल्ली।  

© आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 7 जून 2019

Brida

काफी दिनों बाद , पाउलो कोएल्हो को पढ़ने जा रहा हूँ। उनके उपन्यास अलकेमिस्ट ने मेरे व्यक्तिगत जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव डाला था, जोकि मैंने पहली बार लखनऊ के भागीदारी भवन के पुस्तकालय में पाया था।
वैसे पिछले मैंने विनोद कुमार शुक्ल का प्रसिद्ध उपन्यास ' दीवार में एक खिड़की रहती थी ' पढ़ा। उसकी समीक्षा, मेरी उस नावेल के प्रति समझ लिखना बाकि है।
प्रसंगवश यह दोनों नावेल और शुक्ल जी का नॉवेल और भी हिंदी की प्रसिद्ध किताबें, मैंने अपनी अकादमी के पुस्तकालय में आग्रह करके मंगवाया है, धीरे धीरे उनको पढ़ना जारी रखूँगा।

शनिवार, 11 मई 2019

Happy mother's day

मां तुम्हें नमन

बच्चों की उपलब्धि उनके संस्कारों पर निर्भर करती है। संस्कार, परिवार से मिलते हैं। परिवार की नींव मां होती है। मुझे बचपन से याद है कि मेरी माँ की सबसे बड़ी चिंता, हमारी पढ़ाई थी। बेहद संघर्ष भरे दिनों में हमारे परिवार की आखिरी उम्मीद, हम बच्चें ही थे। कैसे भी करके कोई भी छोटी मोटी सरकारी नौकरी का सपना, बचपन से डाल दिया गया था।
शुरू के कुछ सालों तक यानी कक्षा 8 तक हम पढ़ने में काफी ठीक माने जाते थे, फिर धीरे धीरे उम्मीदें टूटने लगी। हम खुद तो कभी अपने को कमजोर न समझे पर समाज मे बुद्धिमत्ता के प्रतिमान जैसे कि 10वी, 12 में प्रथम दर्जे से पास होना, पर खरे न उतर सके।
10 में जब सेकंड डिवीज़न आयी तो एक रिश्तेदार ने बोला कि तुमको जो बनना था बन गए। आगे भी सेकंड ही आता रहा। लोग ऐसे ही बोलते रहे। मां ने कभी उम्मीद न छोड़ी।
कभी निजी भावनायें, ऐसे सार्वजनिक करने की आदत न रही पर आज मदर डे पर   उनको ऐसे नमन करना बनता ही है। मेरी तमाम सफलताओं की नींव मेरी माँ ही रही हैं। मुझे गर्व है कि वो काफी पढ़ी है और अपने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। देश की सबसे कठिन समझी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने का सपना और उसे हकीकत में बदलने का जज़्बा  मेरा जैसा सामान्य स्टूडेंट अगर कर सका है तो उसके पीछे मां के असीम आशीर्वाद,प्रेरणा ही रही है।
-आशीष

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

PRATEEK BAYAL : IAS TOPPER 2018 WHO HAS DEEP INTEREST IN FITNESS


मिलिए PRATEEK BAYAL आईएएस टॉपर 2018  से जिन्हें है  फिटनेस  का गहरा शौक 

- आशीष कुमार 




(इंटरव्यू से पूर्व परम्परा के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के बाहर फोटो खिंचवाते प्रतीक )

प्रिय पाठकों, आज आपको एक ऐसी PERSONALITY से मिलवाता हूँ जो इस वर्ष सिविल सेवा में अंतिम रूप से चयनित है। प्रायः ऐसा माना जाता है कि आईएएस की तैयारी करने वाले लोग फिटनेस पर ध्यान नहीं देते है या फिर उन्हें समय इजाजत नहीं देता है कि वो अपना कीमती समय फिटनेस पर दे। पर इस पोस्ट में आप  एक ऐसे युवा आईएएस  की कहानी पढ़ेंगे  जिसने विश्व की सबसे कठिन समझी जाने वाली आईएएस की परीक्षा में दो दो बार अंतिम रूप से पास की है बगैर फिटनेस से समझौता किये।  



प्रतीक बायल, मूलतः दिल्ली के रहने वाले है। IIT DELHI से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक् करने के बाद वो सिविल सेवा की तैयारी करने लगे।  जनवरी 2016 में उनका चयन अस्सिटेंट कमिश्नर प्रोविडेंट फंड पद पर हुआ। उन्हें जूनागढ़, गुजरात में पोस्टिंग मिली। 2017  में वो UPSC INDIAN FOREST SERVICE  में आल इंडिया रैंक 27 के साथ  चुने गये।  इसी वर्ष भारतीय सिविल सेवा परीक्षा 2017 में रैंक 966 के साथ DANICS SERVICE में चुने गए। इस वर्ष सिविल सेवा परीक्षा 2018 में रैंक 340 के साथ चुने गए हैं  और उन्हें आईएएस मिलना तय है।  एक प्रकार से उनकी सिविल सेवा की लम्बी का तैयारी का सुखद अंत हुआ। अब वह मसूरी में  आईएएस की ट्रेनिंग के साथ-साथ फिटनेस पर पूरा समय दे सकेंगे। 

उनका मानना है कि प्रत्येक युवा को फिटनेस पर ध्यान देना चाहिए। अगर हम फिट है तो कम समय पढ़कर भी अच्छी सफलता पा सकते है। उन्होंने हर दिन , चाहे वो कही पर भी रहे वो अपने लिए दिन में कम से कम 2 घंटे जरूर निकाल लेते है।  

वो वर्कआउट में  मोटिवेशन तलाशते है। उनका कहना है कि जब वो वर्कआउट करते है तब अपने वजूद  से मिलते है। इस समय वो पूरी एकाग्रता से , पूरी तन्मयता से अपनी फिटनेस के लिए समय देते है। इसका फायदा उन्हें अपनी सिविल सेवा की पढ़ाई के समय मिलता रहा है। फिजिक्स जैसे कठिन समझे वाले विषय के साथ उन्होंने दो दो बार सिविल सेवा की परीक्षा पास की है। इस समय वो दानिक्स सेवा में दिल्ली में प्रशिक्षण ले रहे है। 

प्रतीक बायल की आदत लोगों को फिटनेस के प्रति जागरूक करना है। दानिक्स अकादमी में उन्होंने तमाम साथी अधिकारियों को भी जिम जाना शुरू करवा दिया है। उनका मानना है कि सिविल सेवकों को आज समय की तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए मानसिक रूप से बेहद मजबूत होना चाहिए। वो माननीय प्रधानमंत्री जी के विचारों के अनुरूप हम फिट तो इंडिया फिट  ( Hum Fit Toh India Fit) पर विश्वास करते है। 






प्रतीक की कहानी भारत के लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। प्रतीक के लिए फिटनेस हमेशा से प्राथमिकता रही  है। उनका कहना है कि फिट रहना उनके लिये उतना ही ज़रूरी था जितना की आईएएस बनने का उनका मकसद।  

कैसे रखते है दोनों में सामंजस्य  



प्रतीक के अनुसार आज के समय आलस्य हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। अगर हम आलस को अपनी जिंदगी में न आने दे तो कितने ही कार्यो को समय से निपटाया जा सकता है। वो अपने वर्कआउट को पूरा करने के लिए रोज सुबह 5:30 बजे उठते है। कैसा भी मौसम हो, कितनी ही ठंड पड़े वो समय से  बिस्तर छोड़ देते हैं। एग्जाम करीब होने पर भी वो वर्कआउट के लिए 1 घंटा  निकाल ही लेते है। इसके जरिये उनका एनर्जी लेवल पुरे दिन हाई रहता है। इसके चलते वो दिन के बाकि कार्य बहुत सरलता से निपटा लेते है। 

कुकिंग में भी है गहरी रूचि है 

प्रतीक बायल को वर्कआउट के साथ साथ स्वादिष्ट खाना बनाना भी बहुत पसंद है। देखा जाय तो वर्कआउट व कुकिंग दोनों ही रुचियाँ एक दूसरे की पूरक है। प्रतीक ने तमाम तरह की डिशेस को अपने वर्कआउट की जरूरत के अनुरूप बदलाव कर बनाना सीख लिया है। हमारी अकादमी में भी उनके खाने के सभी कायल हैं। 

(दानिक्स अकादमी , दिल्ली में साथी अधिकारियों  के लिए  लजीज डिश बनाते हुए तल्लीन  प्रतीक बायल )

सिविल सेवा के इंटरव्यू में भी दोनों हॉबी ने काफी मदद की 

सिविल सेवा के इंटरव्यू में उम्मीदवार से उम्मीद की जाती है कि वो हॉबी में सही चीज भरेगा। प्रतीक ने इन्हीं दोनों हॉबी को अपने DAF में दिखलाया था।  इंटरव्यू में इन चीजों पर भी बात हुयी । इंटरव्यू चेयरमैन एयर मार्शल भोंसले सर (2017 वाले इंटरव्यू में) ने तो कमरे में प्रवेश करते समय ही बोल दिया था  कि  आपको देखकर ही पता चलता है कि आप की हॉबी फिटनेस है।  


(When life puts more responsibility on your shoulders, make sure your shoulders are strong enough- Prateek )

प्रतीक ने लेखक से बात करते हुए उम्मीद की है कि आने वाले वर्षो में उनके जैसे लोग सिविल सेवा की परीक्षा पास करके आईएएस बनेंगे जो फिटनेस के प्रति समाज में अपने जीवंत उदाहरण से तमाम प्रेरणा देंगे। 




©  आशीष कुमार 

( लेखक हिंदी लेखन में गहरी रूचि रखते है वो प्रतीक बायल के बैचमेट व रूममेट  हैं )

रविवार, 7 अप्रैल 2019

Apana time ayega..

जिनको अभी भी और संघर्ष करना है

तमाम सफल लोगों के बीच उन लोगों भी याद करना लाजमी है जो लगातार संघर्ष करने के लिए बाध्य हैं या कहे कि अभिशप्त से हो गए हैं ।

इस बार जब से सिविल सेवा का रिजल्ट आना था , तब से मन मे बार 2 आ रहा था कि यार इस बार उन दोनों का जरूर हो जाय। दो लोग है, हिंदी माध्यम से। नाम नहीं लिख रहा हूँ पर लगभग उनको बहुतायत लोग जान ही जायेंगे । दोनों लोग राजस्थान से है।

पहले मित्र jnu से है, इतिहास विषय से देते है। शायद उनका 5 या 6 लगातार इंटरव्यू था पर न हुआ। पिछले साल 1 या 2 अंको से चयन रह गया था।

दूसरे साथी काफी अच्छे लेखक है, दैनिक जागरण, दैनिक भाष्कर आदि तमाम पेपर में उनके लेख आते रहते हैं।शायद भूगोल विषय है उनका। पहले दिल्ली में थे अब जयपुर में शिफ्ट हो गए हैं। उनका लगातार तीसरा इंटरव्यू था।

जिस दिन रिजल्ट आया , उनका दोनों के नाम एक मित्र से सर्च करवाया पर दोनों का ही न हुआ। सबसे खलने वाली बात यह है कि दोनों अभी किसी वैकल्पिक करियर को न बना सके है, इसलिए उन पर तमाम तरह के दबाव भी। अभी बात करने की हिम्मत न हुई उनसे। मुझसे बहुत ज्यादा गहरे , अंतरंग संबंध भी न है। बाद वाले साथी से कभी मिलना भी न हुआ, jnu वाले मित्र भी एक आध बार इंटरव्यू के दौरान  upsc परिसर में भेट हुई है पर दोनों संर्घष के चलते अपने से लगते है।

मित्रों हो सकता है कि आप इस पोस्ट को पढ़े या कोई आप तक इसे पहुँचा दे। अब आप लोग उस स्तर पर है कि ज्यादा कुछ कहने या समझाने का अर्थ नही बचता। बस समय का फेर है, यह बस हिंदी माध्यम का बुरा दौर है। अभी आप दोंनो के प्रयास बचे है , अंतिम प्रयास में भी सफ़लता मिलती है, इसलिए एक और प्रयास सही। गुनगुनाते हुए लगिये- अपना टाइम आएगा ।

- आशीष कुमार
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

शनिवार, 26 जनवरी 2019

Manikarnika

मणिकर्णिका

कल उक्त मूवी देखी । इतिहास आधारित फिल्मों की कड़ी में एक और बढिया मूवी का निर्माण हुआ है। रानी लक्ष्मीबाई का किरदार हमेशा से बहुत रोमांचक लगता रहा है। हम सबने वो बात जरूर पढ़ी सुनी होगी कि अपने घोड़े पर सवार होकर रानी ने अपने बच्चे को पीठ पर बांध कर झाँसी के किले से छलाँग लगा थी ।

कई साल पहले पहले झाँसी के किले में  जाने का मुझे अवसर मिला था। उस समय तमाम बातें जानने को मिली थी। गौस खान की कब्र किले में ही है। किले पर वो जगह भी देखी जहाँ से रानी ने छलाँग लगायी थी, इतनी ऊंचाई है कि यकीन करना मुश्किल है पर रानी वीरता , जाबांजी के समक्ष कुछ भी नहीं।

इतिहास का विद्यार्थी रहा हूँ और लंबे समय से यह पढ़ता आ रहा हूँ कि जनरल हुयरोज ने अपनी जीवनी में रानी के बारे में लिखा है कि 1857 के समय रानी सबसे खतरनाक विद्रोही थी और उस समय के विद्रोहियों में एकलौती मर्द थी।

सुभद्राकुमारी चौहान ने भी लिखा है -
"खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी।"

मूवी देखकर दिल खुश हो गया। बाजीराव, पद्मावत की कड़ी में ही इतिहास आधारित एक और शानदार मूवी ।

- आशीष

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

Be helpful to everyone

कृतज्ञता का भाव

मेरे विचार से यह ऐसा भाव है जिसकी शक्ति बहुत प्रबल होती है, मैंने तमाम मौकों ओर इसे महसूस किया है। हर जाने अनजाने सहयोगी ,शुभचिंतक के प्रति मन बेहद आभार का भाव स्वतः पैदा हो जाता है और न जाने कब से आदत पड़ गयी है कि किसी के छोटे से सहयोग को भी बरसों बीत जाने के बाद भी न भूलना।

आज की दुनिया मे अक्सर सबको शिकायत होती है कि उनकी कोई हेल्प नही करता , जरा रुक कर विचार करे कि क्या आपके भीतर दूसरों की हेल्प करने की आदत है या नहीं। मुझे जीवन के हर मोड़ पर अक्सर अनजान अपरिचित लोगों से तमाम तरह की हेल्प मिलती रही । कई बार मुझे खुद आश्चर्य होता है कि आखिर ये कैसे ?

महर सिंह वाली पोस्ट पढ़ी है, पुणे जाना हुआ तो नवनाथ गिरे जैसे होस्ट मिले जो पहली बार मिल रहे थे पर इतने प्रगाढ़ व मित्रवत की पूछो मत। बाइक से महाबलेश्वर घूमना व अन्य तमाम प्रकारन आप पढ़ ही चुके है। कुछ और बड़े और महत्वपूर्ण घटनाएं आने वाले दिनों में पढ़ने को मिल सकती है ।

मुझे अब तक यही समझ आया है कि अहसान मानने की आदत बहुत प्रभावी चीज है, जितना आप इसको मानेंगे ,उसके सुखद और गहरे परिणाम दिखेंगे ।
( यूँ ही विचार आया, विस्तृत पोस्ट फिर कभी । अपने अनुभव साझा कर सकते हैं )

रविवार, 23 दिसंबर 2018

That dainty


वो अनोखा प्रसाद 


यह १० अप्रैल २०१८ की बात है , अगले दिन मेरा सिविल सेवा का इंटरव्यू था। शाम को महर सिंह का फ़ोन आया। पाठक , महर सिंह से परिचित होंगे। काफी पहले उनकी कहानी लिखी थी। एयरफोर्स में जॉब करते हुए सिविल सेवा की परीक्षा पास की थी और मेरी जानकारी में महर , हिंदी माध्यम से इंटरव्यू में 200+ अंक पाने वाले गिने चुने लोगो में से एक है। 

वो भारतीय सुचना सेवा के अधिकारी (२०१२ ) है और मेरे कुछ करीबी व अंतरंग मित्रों में एक। मैं इंटरव्यू के लिए गुजरात भवन में रुका था। सिविल सेवा में चयनित कुछ अन्य मित्रों से बात हुयी थी कि दिल्ली आना हुआ है  मुलाकात करते है। अब सिर्फ दो दिन बचे थे , किसी से मुलाकात न हुयी थी।  महर सिंह ने फ़ोन पर कहा कि "यार काफी व्यस्त था इसलिए मिलने न आ सका पर कल सुबह संघ लोक सेवा आयोग के बाहर मिलने आ रहा हूँ।"  

यह एक प्रकार से मेरे लिए  संजीवनी थी। कोई सफल मित्र न केवल मिले बल्कि आपके मनोबल को बढ़ाने के लिए आयोग के गेट पर भी आ जाये , इससे बढ़िया क्या हो सकता था। मैं बहुत खुश था। 

अगली सुबह मैं , अंकित जैन के साथ संघ लोक सेवा आयोग के बाहर खड़ा था। अंकित जैन से इंटरव्यू के ठीक पहले टेलीग्राम से सम्पर्क हुआ था। वो बागपत, उत्तर प्रदेश से थे , उनके भैया IRS-IT थे। अंकित हमारे विभाग से थे। इसलिए विभाग/मूल प्रदेश  से जुडी तैयारी के चलते काफी चर्चा परिचर्चा हो चुकी थी।  तमाम बातों के बीच एक उल्लेखनीय बात का जिक्र करना आवश्यक है वो है उनकी सर्विस  प्रेफरेंस- आईपीएस > आईएएस > दानिप्स।  कहने का मतलब उन्हें वर्दी से बढ़ा लगाव था और यूनिफार्म सर्विस की उम्मीद कर रहे थे।  

महर भाई आये  और बड़ी गर्मजोशी से अपनी मुलाकात हुयी। उन्होंने एक छोटा सा डिब्बा खोला और बोला - "भाई प्रसाद ले लो। वैसे तो मैं मंदिर ज्यादा आता -जाता नहीं पर आज आपके लिए चला गया था। " मैंने प्रसाद लिया उस वक़्त मन में तमाम विचार चल रहे थे कि आज जहाँ लोगो के पास समय की घनघोर कमी है कोई आपके खातिर मंदिर तक जाये और प्रसाद लेकर आये। अंकित ने भी प्रसाद  लिया। 

इसके बाद आयोग के नाम के साथ फोटो खिचवाने की परम्परा का निर्वाह किया गया। मै पहले भी दो बार इंटरव्यू के लिए यहाँ आ चुका था तब यह ताम झाम फालतू से लगे थे। चूँकि यह मेरा आखिरी  अवसर था तो सोचा "यार पिक्स ले ही लेते है " महर सिंह वहाँ तब तक खड़े रहे जब तक मैं भीतर न गया। अंदर के प्रकरण फिर कभी। 

रिजल्ट आया तो मैं और अंकित दोनों ही अंतिम रूप से सफल थे। कहने की बातें अलग है कि पर सच यही है कि  मैं रिजल्ट से पहले इस दशा में था कि सोच रहा था कि " भगवान , मुझे वेटिंग लिस्ट में भी सबसे आखिरी स्थान भी दिलवा दो तो भी बड़ी बात होगी ". भगवान ने हमे उससे कही ज्यादा दिया। उधर अंकित जैन ( रैंक 222 ) के साथ अपनी ड्रीम जॉब आईपीएस के लिए चुने गए। 

मैंने काफी पहले आस्था पर कुछ लिखा था आज भी वही दोहरा रहा हूँ कि यह आप निर्भर है कि आप मानो तो भगवान है न मानो तो पत्थर। क्या पता उस दिन महर सिंह की आस्था व  प्रसाद ने ही सबकुछ किया हो। ( वैसे मुझे यह मत पूछना कि महर सिंह किस मंदिर गए थे , क्योंकि यह मुझे भी नहीं पता है ) 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

7 years in Ahmedabad



7 साल अहमदाबाद में (०१) 


जनवरी 2012 की एक रात मैंने जब साबरमती ट्रेन अहमदाबाद के लिए पकड़ी थी तो मैं पूरी तरह से निश्चित था कि बस कुछ महीने की जॉब है , जल्द ही नई नौकरी मिलेगी और मैं अहमदाबाद छोड़ दूँगा। वो  समय मेरे जीवन कुछ ऐसा समय था जब मुझे हर साल नई नौकरी मिल रही थी। एक नौकरी ज्वाइन करता तो अगली बड़ी नौकरी का रिजल्ट आ चूका होता। मैं सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर बन चूका था। सिविल सेवा 2011 की मुख्य परीक्षा  अच्छी गयी थी और मैं उम्मीद कर रहा था कि जल्द ही परीक्षा पास कर लूँगा।  

कुछ महीने बाद इंटरव्यू कॉल भी आ गयी। अब उम्मीद बढ़ गयी थी।  मेरी वर्तमान जॉब बढ़िया थी , शहर बढ़िया था पर मन संतुष्ट न था। मैंने UPSC को कम करके आँका था। इंटरव्यू तो फेल हुआ ही , अगले साल का PRE एग्जाम भी फेल हो गया। मुझे ठीक से याद है वो जुलाई 2012  के आखिरी दिन थे। जिस दिन PRE का रिजल्ट आया , बहुत बड़ा सदमा लगा कि अब इस अजनबी शहर में रहना पड़ेगा। 

उन दिनों मैं मेम नगर एरिया में रहता था। उसी दिन शाम को हिमालया मॉल गया और क्रोमा स्टोर  से एक लैपटॉप खरीदा। उसके बाद दिसंबर 2012  तक जी भर कर फिल्में देखी। टोरेंट का दौर था। हिंदी , अंग्रेजी फिल्मों के साथ चीनी ,कोरियन , जापानी फिल्में देखता गया। मन में यह था कि इतना फिल्में देखो कि उनसे ऊब जाओ। क्या दिन , क्या रात , फिल्में चलती रही और समय गुजरता रहा।

जीवन  के साथ प्रयोग करने की पुरानी आदत थी । इससे पहले के दौर में फिल्मों की तरह नॉवेल , कथा कहानी का पढ़ने का जूनून सवार हुआ था। दिन / रात , महीने साल केवल एक ही काम पढ़ना। हिंदी , बंगाली , मलयालम , मराठी , कन्नड़ , रुसी मतलब अनुवाद में जो मिले बस पढ़ जाओ।  पहले इन चीजों का जिक्र किया करता था कि इतने नावेल पढ़ चूका हूँ पर अब लगता है कि उनका का कोई मतलब नहीं। मैंने जो भी नावेल पढ़े थे वो केवल मनोरंजन की दृष्टि से पढ़े थे। अगर आलोचनात्मक दृष्टि से पढ़ता तो शायद कुछ और ही व्यक्तित्व होता। 


अहमदाबाद मेरे लिए अजनबी जगह थी। उन दिनों मुझे इस शहर में सबसे ज्यादा जो चीज हैरान करती थी वो यह कि इस शहर में साइकिल से चलने वाले लोग न के बराबर है। सड़कों पर दो पहिया से ज्यादा चार पहिया वाले वाहन थे। घर कम थे , फ्लैट अधिक। शहर में समृद्धि हर तरफ देखी जा सकती थी। मैं उत्तर प्रदेश के एक सामान्य जिले से लम्बा ग्रामीण जीवन जीकर आया था। इसलिए शहर के साथ ताल मेल जल्द न बैठा सका। 

हम जहाँ रहते थे वहाँ से कुछ दुरी पर ही अहमदाबाद का सुप्रसिद्ध ड्राइव इन सिनेमा था। प्रायः मैं, मनोज श्रीवास्तव के साथ टहलते हुए फिल्म देखने चले जाते। मनोज श्रीवास्तव हमारे जिले उन्नाव से ही थे। हम पहले से परिचित थे और यहाँ पर भी एक ही विभाग में सहकर्मी थे। इसके चलते ज्यादा अहमदाबाद के शुरुआती साल ज्यादा कठिन न लगे।  

जहाँ मैं रहता था वहाँ से ऑफिस 2 किलोमीटर दूर था। दोनों ही साल मैं पैदल ही ऑफिस आता जाता रहा। इस समय मैं फील्ड में जॉब कर रहा था। मेरा काफी लोगों से मिलना होता , अक्सर मुझे लोग कहते कि " फिर मिलेंगे" मैं उन्हें हाँ भी करता पर मैं जानता था कि मैं उनसे कभी नहीं मिलूंगा।

कुछ दिन तक हमने बाहर होटल में खाना खाया। अहमदाबाद में मुझे एक और अनोखी चीज लगी। यहाँ पर अनलिमिटेड थाली का चलन खूब था। हर बजट के लिए थाली। 50 रूपये से लेकर 100 रूपये वाली। उन्हीं दिनों एक होटल पर  Hardik Thakker  से मुलाकात हुयी। दरअसल मैं और मनोज खाने के बाद कुछ upsc पर बात कर रहे थे। उन बातों को सुनकर हार्दिक ने हमसे बात की पहल की। हार्दिक से लम्बी और गहरी दोस्ती हुयी। उनसे जुडी इतनी बातें है कि उन पर अलग से पोस्ट लिखी जा सकती है। लिखूंगा कभी। इन दिनों वो इसरो में क्लास वन अधिकारी है। उनकी कहानी भी बड़ी मोटिवेशनल है।


बाद में मैंने अपने रूम में खाना बनाने लगे। मैं और मनोज दोनों ही खाना बनांने में कुशल थे। होटल में अधिक दिन खाना सेहत के लिहाज से अच्छा न था। उसी साल कुंदन कुमार से भी परिचय हुआ। वो हमारे विभाग में ही थे और हमसे सीनियर थे। उस साल मैं pre फेल हुआ था और उनका पहली बार मैन्स देने का अवसर था। यह भी अजीब बात है कि हम पहली बार मुखर्जी नगर के एक रूम में मिले। वो दिल्ली में कोचिंग के लिए थे और संयोग से मैं भी किसी काम से दिल्ली गया था।


 इसके बाद मुझे अपने ऑफिस के मुख्यालय में पोस्ट दी गयी। यह ऑफिस , मेरे रूम से लगभग 5 किलोमीटर दूर था। इतनी दूर पैदल जाना संभव न था। काफी दिनों से एक अच्छी साइकिल लेने का मन था। जल्द ही एक गियर वाली काफी महॅगी साइकिल खरीद ली। रेड कलर की साइकिल से घूमने में खूब मजा आता था। कुछ दिन ऑफिस उससे गया। जल्द ही मुझे अहसास हुआ कि इससे इज्जत की बाट लग जाएगी। जिस ऑफिस में बहुतायत लोग कार से आते थे और कुछ लोग मोटर साइकिल से आते थे वहां पर साइकिल से जाना मुझे अजीब लगने लगा। कभी कभी सोचता कि अगर कोई कुछ कहेगा तो बोल दूंगा कि मेरे एक महीने की सैलरी से बाइक मिल जाएगी पर जल्द ही मुझे बाइक लेनी पड़ी।

बाइक लेने का सबसे प्रमुख कारण , अहमदाबाद का ट्रैफिक था। दूसरा साइकिल बहुत नाजुक थी। अक्सर उसमें कुछ न कुछ  बिगड़ने भी लगा था। साइकिल के दिनों सबसे ज्यादा फ़ायदा मुझे अपनी बेली पर दिखा। उतना फ्लैट कभी नहीं रहा। मुझे आज भी लगता है कि फिटनेस के लिए साइकिल से बेहतर कोई चीज नहीं।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

aatm dipo bhav


आत्म दीपो भव  


गौतम बुद्ध ने आत्म दीपो भव यानि अपना दीपक स्वयं बनो का सूत्र दिया तो उसका आशय क्या था ? अक्सर हमारे सामने बहुत सी मुश्किलें , दुविधाएं होती है और उनके हल के लिए किसी न किसी का  आसरा चाहते है पर क्या वास्तव में कोई अन्य आपकी उलझन  को ज्यादा बेहतर समझ सकता है क्या ? आपके लिए सबसे बेहतर मार्ग क्या है , यह आप से बेहतर कौन जान सकता है। 

सिविल सेवा की तैयारी के दौरान तमाम प्रश्न उठते है , वैकल्पिक विषय क्या ले ? कोचिंग करे या न करे , कहाँ से करे ? कितने घंटे पढ़े ? नोट्स कैसे बनाए ? इनके बड़े सामान्य से उत्तर है पर आप खुद सोचिये कि इनके उत्तर दूसरा भला कैसे दे सकता है। यह बात सही है कि दूसरे के ज्ञान/अनुभव से सीख का समय बच सकता है पर यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। मैंने पहले भी कुछ ऐसे प्रकरण साझा किया है जिसमें दूसरे के कहने पर व्यक्ति ने काफी नुकसान उठाया है। 

दरअसल बात सिविल सेवा तक ही सिमित नहीं है। जीवन , बहुआयामी है। सेवा/जॉब सिर्फ एक आयाम है। जीवन के सभी आयामों में अपना दीपक बनने की कोशिश करनी चाहिए। तुम्हारे भीतर छुपी ऊर्जा / कमजोरी को तुमसे बेहतर भला और कौन जान सकता है। इसलिए आज से इस वक़्त से अपने निर्णयों पर जीने की आदत डाल लो। जो भी करोगे , उसका सुखद /दुखद परिणाम भी आप भोगोगे पर यह संतुष्टि रहेगी कि यह मेरा निर्णय था। 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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