मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

मेरा मोटापा और इसकी कहानी

    यह सोच कर ही अजीब लग सकता है कि मैं अपने जीवन के शुरुआती दिनों में वजन बढ़ाने के लिए , कितना ज्यादा परेशान रहता था. 
    50 किलो वजन हो जाने के लिए तरसता था, पूरी पढ़ाई के दिनों में मेरा वजन 48 ... 49 किलो के बीच झूलता रहता था। न जाने कैसे कैसे उपाय करता। मुझे ठीक से याद है इसी के चलते ही अंडा खाना शुरू किया था , किसी से सुना था कि इसको खाने से  वजन बढ़ सकता है पर इससे भी न बढ़ा। यहाँ तक जब पहली बार बियर पी थी तो भी मन में मोटा होने की इच्छा था। कच्चा पनीर और बियर, पर वजन न बढ़ा।  दरअसल दोनों ही चीजे एक दो बार की होंगी इसलिए उसका असर न दिखा।  

मेरा वजन B.Ed.  करने के दौरान बढ़ना शुरू हुआ , उन दिनों इसका कारण मिठाई खाना था , खूब मिठाई , क्रीम वाले बिस्कुट , नमकीन खाता। इसके चलते वजन बढ़ना तो शुरू हुआ पर उसके साथ फैट भी बढ़ने लगा। 

    शुरू में तो बड़े मजे से कहता कि पेट निकला है तो क्या हुआ, खाते पीते घर का हूँ। मुझे बीच का वजन याद न आता। लखनऊ में आर्मी वाली जॉब में भी फोटो देखता हूँ तो वहां भी एकहरा शरीर दिखता है , जब अहमदाबाद गया एक्साइज डिपार्टमेंट में तब शरीर बहुत तेजी से फैला। उसके कुछ कारण थे, उसी दौरान बाहर होटल में खाने की आदत पड़ी , कई बार खुद से और कई बार दोस्तों के साथ।  

    अहमदाबाद में वीकेंड पर बाहर खाने का चलन सा है। अधिकतर शनिवार शाम को बहार ही खाना खाया होगा। ऑडिट में काम करने के दौरान , लंच बाहर होता , प्रायः कम्पनी की तरफ से , किसी अच्छे , फेमस होटल में।  नई नई जगह , नए नए व्यंजन।  उन दिनों 80 किलो वजन फिक्स सा था। पेट बाहर निकला था पर अपने आप को स्मार्ट फील करता , तमाम बार यह भी सुनने को मिलता कि वर्दी के लिए शरीर भरा पूरा होना चाहिए तभी जँचती है। 

     उन दिनों भी बड़ा मन होता था फिट होने का पर समय न था , नौकरी से जो भी समय बचता , upsc में चला जाता। 

    2018 में चयन के बाद लगा जिंदगी आसान हो जाएगी। रिजल्ट के कुछ दिन बाद ही रानिप , अहमदाबाद में एक जिम ज्वाइन किया। कुछ महीने ही गया होगा , थोड़ा बहुत चीजे पता चली , वजन फिर भी न कम हुआ। कारण था चयन के बाद पार्टी काफी बढ़ गयी , कुंदन भाई के घर अक्सर देर रात तक पार्टी हो जाती , उन दिनों कुंदन भाई अहमदाबाद एयरपोर्ट पर पोस्टेड थे , इसलिए पार्टी भी काफी शानदार होती थी। 

    2019 में दिल्ली आ गया , ट्रेनिंग के दौरान जिम शुरू किया , अपने आप ही जो समझ आता करता। ट्रेनर अफ़्फोर्ड कर सकता था पर किया नहीं पता नहीं सब खुद से करने की आदत सी है।  uspc में इसी जिद के चलते कोई कोचिंग न ज्वाइन की। खैर अपने आप ट्रेनिंग सेण्टर के छोटे से जिम में कुछ न कुछ करता, टिक टॉक का दौर था , उसी में वीडियो देखता और कभी कभी अपने भी डाल देता। 

( अंडमान -2019 )

    दो साल में तमाम गैप आये पर वर्कआउट जारी रहा और अंत में वजन 73 kg था , जोकि 83 kg से गिर कर आया था।  इस समय मेरा ट्रांसफॉर्मेशन काफी विज़िबल था , लोग टोकते कि काफी बदल गए हो। वैसे इसमें एक सबसे बड़ा राज था कि लक्ष्यदीप में ट्रेनिंग के दौरान मुझे चिकनपॉक्स हो गया था , कोच्चि में अकेले होटल में पड़ा था , कई दिनों तक मुँह से खाना न जा पाता। गले के अंदर भी दाने थे। उसी दौरान पहली बार वजन 78kg तक आया था बाकि उसके बाद जोश में , खाना कम करके 73kg तक गया था।  


(दिसंबर 2023 )

    ट्रेनिंग के बाद, फिटनेस के लिहाज सबसे बुरा वक़्त आया, पार्टी का इतना ज्यादा दौर आया कि हर वीक में कोई न कोई पार्टी। बस कोई मिले तो बोलना होता था चलो बैठते है।  पद के हिसाब से गिफ्ट में भी ऐसी चीजे जो आपके फिटनेस की ऐसी तैसी कर दे। पूरा जाड़ा  गाजर का हलवा , गर्मी की तरफ  घेवर। कहते है खाना बुरा न होता पर हिसाब से खाना चाहिए। मै बेहिसाब खाता था, ४ किलो तक गाजर हलवा एक साथ था , इस तरह से घेवर के दर्जनों पीस। इसके चलते वजन 85 kg तक चला गया। काजू कतली , मेवा लड्डू , छोला भटूरा , दाल मखनी मतलब कुछ भी बेहिसाब खाना।  

     पिछले दिसंबर 23  की 25 को ऐसे जैसे की बुध्दत्व मिला हो। उन दिनों मैंने एटॉमिक हैबिट पढ़ी थी. उससे काफी बढ़िया बातें  पता चली। फिर से वर्कआउट शुरू किया, हर रोज की पिक्स ली और संभाल के रखी।  जुलाई 24 आते आते काफी हद तक फैट कम हो गया और मसल भी उभरने लगे।  अगस्त 24 , से रनिंग करने लगा। धीर धीरे रनिंग बढ़ गयी , स्ट्रेंथ ट्रेनिंग कम हो गयी।  तब से अब तक एक फुल मैराथन (42 km ), 7 हाफ मैराथन (21km ) में प्रतिभाग कर चूका हूँ।  स्टमिना काफी हद तक बढ़ चूका है पर खान पान अभी भी बंद न हुआ है। इसके चलते वो परिणाम न मिले है जो मिलने चाहिए।  

        इस पोस्ट के जरिये, यह सब बातें इसलिए भी शेयर कर रहा हूँ ताकि अब इसका दबाव मुझ पर पड़े , जब लोग पूछते नहीं तब तक दबाव नहीं पड़ता। तमाम बार सोचा कि पोस्ट करू पर लगता था कि यह सफर आसान न है।  लोग मजे लेंगे पर अब लिखकर बता रहा हूँ अब से खान पान पर सबसे ज्यादा ध्यान रखा जायेगा। तभी परिणाम मिलेंगे।   

    6 साल पहले किसी से शर्त लगी थी। उसका सलेक्शन न हो रहा था। मैंने कहा चलो शर्त लगाते है कि तुम्हारा सिलेक्शन पहले होगा या मेरे एब्स बनेंगे। मेरे एब्स बनते बनते रह गए। उसका सलेक्शन अब लगभग होने को है इसलिए मुझे ज्यादा गंभीर होना पड़ रहा है , आखिर हारना किस को पसंद है।  


                                                             (इन दिनों )


©  आशीष कुमार, उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  



बुधवार, 29 जनवरी 2025

एक अद्वितीय लड़की की अद्वितीय प्रेम कथा



    कितना ही वक़्त गुजर गया पर आज भी उसका जिक्र होते ही चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान आ जाती है। कल बम्बई वाले मित्र से बातों ही बातों में उसका जिक्र हुआ , शाम क्या देर रात तक , उस मजेदार घटना को सोच सोच कर मुस्कुराता रहा।  

    कहानी को लिखने के लिए समझ नहीं आ रहा कैसे कड़ियाँ जोड़ी जाय। बात सिविल सेवा तैयारी के  दिनों की है, एक सरकारी संस्थान में तैयारी के लिए जुड़ा था। एक्साइज इंस्पेक्टर वाली नौकरी से जो भी समय बचा उधर चला जाता था। उन्ही किन्ही दिनों में उसे देखा था. आज मुझे उसकी ठीक से शक्ल ठीक से याद न आ रही है पर कुछ तो खास था। क्या खास था यह लिख पाना कठिन है। भीड़ में भी उसे पहचाना जा सकता था, हालांकि उसे हमेशा ही अकेले ही देखा था। कहानी आगे बढ़े उससे पहले कुछ बाते बतानी जरूरी हैं , मुश्किल से 3 या 4 बार ही उसे सामने से देखा था और आज तक उससे कभी बात न हुयी , उसके बाद ही ये कहानी लिखी जा रही है।  


    तो उसे मैंने जब ही देखा अकेले ही देखा , नजर बरबस ही उस पर अटक जाती। नजरे कभी न मिली पर एक गहन आकर्षण में डूबता चला गया। एक रोज उसी संस्थान के हाल में कोई कार्यक्रम हो रहा था. हम मित्रों का एक समूह बैठा था, बात क्या हो रही थी याद  न रही पर इतना याद रहा कि कोई बोला कि उसके बारे में सोचना भी मत , मैंने पूछा क्यूँ ? जबाब आया . बहुत बड़े घर की है, ऐसे ऐरे गेरे को भाव न देती। मै चुप रह गया, दरअसल दूसरा प्रदेश , भाषा अलग.... काफी सालों से अहमदाबाद में रहने के बावजूद वहां उस तरह से घुल मिल न पाया। स्पीपा से कुछ साथी मिले पर कभी कोई खास अंतरंगता न आ पायी। मेरे ज्यादातर दोस्त नौकरी वाले थे , साथ तैयारी करने वाले थे।  

गुजरात भवन में 2015 वाला इंटरव्यू देने के लिए ठहरा था।  मेरे साथ एक गुजरात के साथी थे। वो बहुत गंभीर थे पुरे दिन पढ़ा करते थे , मेरे लिए दूसरी बार इंटरव्यू था। मैं बहुत आराम से था। पता नहीं क्यू जब तक आखिरी अटेम्प्ट तक बात न पहुंची मै कभी गंभीर क्यू न हो पाया।  एक शाम की बात है , साथी से कुछ देर गप्पे हो जाती थी। ऐसे भी बातो बातो में बात स्पीपा तक पहुंच गयी। मैंने ऐसे ही बोला यार मुझे तो कोई अब तक खास लड़की न दिखी हाँ एक लड़की जरूर ऐसी थी जो बहुत अट्रैक्टिव लगती थी। मुझे ठीक से याद नहीं मैंने क्या विवरण दिया पर आगे जो कुछ हुआ वो वाकई बहुत हैरानी भरा था। 

मेरे साथी चुपचाप पूरी बात सुनते रहे और फिर बोले अब तुम रुको जरा..... उन्होंने फेसबुक खोला और एक प्रोफाइल पिक दिखाते हुए बोले इसी की बात कर रहे हो न......... मेरे विस्मय का ठिकाना न रहा मैं हैरान उसी लड़की  की फोटो को सामने देख रहा था। बगैर नाम बताये वो साथी कैसे उसे खोज के दिखा दिया यह मेरी समझ से परे था। वो मुस्कुरा था कि तुम अकेले नहीं हो , तुम्हारे जैसे तमाम है जो उसके अनोखे , अद्वितीय सौंदर्य की मार से कोई नहीं बचता अदि आदि। हम दोनों बहुत देर तक हँसते रहे। काफी देर तक इस बात पर खोजबीन चलती रही कि आखिर ऐसा क्या है..... हम दोनों एक निष्कर्ष पर पहुँचे कि उसकी आँखे बहुत मादकता से भरी है चेहरे में एक अलग किस्म का गुमान रहता है इसी के चलते वो भीड़ में भी बहुत अलग दिखती है आदि आदि। मुझे साथी के शब्द याद है उसका कहना था कि वो कामदेव की अवतार है..... मै उसे ठीक करते हुए बोला कि कामदेव नहीं रति बोलो, कामदेव तो पुरुष थे। मेरे साथी भी कभी उस लड़की से बात तक न की थी पर जानकारी पूरी  रखे थे।   

उस साल हम दोनों ही UPSC के इंटरव्यू में फेल हो गए। 2016 में पता चला कि उस अलग सी दिखने वाली लड़की का सलेक्शन हो गया। मेरे साथी का पता नहीं पर मै उस साल प्री फ़ैल हो गया था। 2017 में मै और मेरे साथी दोनों ही सलेक्ट हो गए। रैंक भी आस पास ही थी।  साथी का गुजरात में DSP पद पर भी चयन हुआ था और उसने अपना स्टेट ही चुना नौकरी के लिए। कुछ दिन तक हम टच में रहे फिर गैप आता गया। पर मुझे पूरा भरोसा है कि उन्हें यह संस्मरण जरूर याद होगा आखिर सिर्फ विवरण के आधार पर फेसबुक से किसी को खोज निकलना , उनका ही हुनर था।  

मेरे मुंबई वाले साथी भी 2016 में चंयनित है उसी लड़की वाली  सर्विस  में।  मेरे अजीज मित्र , मेरे लिखने के बड़े प्रशंसक भी है , उनका कहना है यह कहानी उस तक जरूर पहुंचा दी जाएगी। यह कहानी दो टुकड़ो में लिखी गयी है पहली बार जब मेरे बॉम्बे वाले साथी दिल्ही आये थे तक इसकी शुरआत हुयी थी और इसी साल के इसी महीने में जब वो दोबारा मिले तो उन्होंने इसका जिक्र किया । मैने वादा किया था कि कहानी जल्द ही पूरी करके शेयर करूंगा।  


(इस कहानी के सभी पात्र , विवरण काल्पनिक है , जीवंत बनाने के लिए कुछ सजीव से विवरण का सहारा लिया गया है ) 

© आशीष कुमार, उन्नाव। 
29.01.25


























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