फेसबुक पर कुछ मेरी रोचक पोस्ट
झील पर पानी बरसता है हमारे देश में
खेत पानी को तरसता है हमारे देश में .
( बल्ली सिंह चीमा )
भारत और इंडिया में अंतर कविता के रूप में
कैसी विचित्र है यह जिन्दगी
जिसे मै जीता हूँ
एक सडा कपडा जो फटता जाता है
ज्यों ज्यों सीता हूँ
मन को समझाता हूँ
क्रांति का पलीता हूँ
( शायद सर्वेश्वर की कविता )
जिन्दगी दो अंगुलियों में दबी
सस्ती सिगरेट के जलते टुकड़े की तरह है
जिसे कुछ लम्हों में पीकर
नाली में फेक दूँगा
(सर्वेश्वर )
घूँट घूँट
सायनाइड पीता हूँ
एक घिसे सोल के
फटे जूते का
टूटा हुआ फीता हूँ
(मन को समझाता हूँ क्रांति का पलीता हूँ )
प्रभाकर माचवे
पिछली कुछ पोस्टों की विषय वस्तु जरा हट कर रही है कुछ हुआ नही है मुझे बस हिंदी साहित्य पढ़ा जा रहा है । ये कविताये विसंगति बोध पर है जहा कलमकार को जीवन सारहीन लगने लगता है आजादी के बाद बहुत से लोगो को वैसा जीवन न मिला जैसा वह सोचते थे उसके प्रतिफलन में कुछ ऐसी कविताये लिखी गयी । आज भी उतनी ही प्रभावी है यह कविता की जीवन्तता है । आशा है प्रबुद्ध मित्रो को पसंद आ रही होंगी ।
मैंने उसको जब जब देखा
लोहा देखा
लोहा जैसे तपते देखा
गलते देखा ढलते देखा
मैंने उसको गोली जैसे चलते देखा
(केदारनाथ अग्रवाल )
सोचो भला कवि के मन में क्या चल रहा होगा जब ऐसी कविता लिखी होगी ? निःसंदेह शोषित दलित मजदूर किसान
बह चुकी बहकी हवाये चैत की
कट चुकी पुले हमारे खेत की
कोठरी में लौ बढ़कर दीप की
गिन रहा होगा महाजन सेंत की
जनवादी कविता यहा पर शोषक महाजन की मुफ्तखोरी का चित्र है ।समय भले बदल गया पर आज भी मेहनतकश वर्ग पर मुफ्तखोर भारी है ।यह विडम्बना ही है कि सामाजिक असमानता बढती ही जा रही है । हमारी smvidhan की प्रस्तावना में , मौलिक कर्तव्य में इससे जुड़े लक्ष्य की पूर्ति कितनी हुई है यह समाज के हाशिये पर खड़े की बेबस मजबूर असहाय व्यक्ति से पूछिए ।
आदमी टूट जाता है एक घर बनाने में
तुम क्यों तरस नही खाते , बस्तियां जलाने में
(शायद बसीर बद्र )
घर सिर्फ मिट्टी, ईट , सीमेंट की संरचना नही होती वरन यह किसी की सपने , उम्मीद , मेहनत का जीवंत रूप होता है. इसलिए वजह चाहे जो हो , गलती चाहे जिसकी हो पर किसी का घर जलना या जलाना दोनों ही दुखद , मार्मिक होता है शायद कुछ ऐसे भी भाव रहे होंगे शायर के . समाज के प्रति ऐसे प्रतिबद्ध लेखन को ही मेरी नजर में वास्तविक साहित्य मानना चाहिए . बाकि तो बाजारवाद है ( हाफ गर्लफ्रेंड का बाजार गर्म है पर मेरी पढने की इच्छा कम ही हो रही है . किसी ने पढ़ लिया तो बताना कुछ है भी या यू ही )
मुक्ति का दिन
अगर सब कुछ ठीक रहा तो आज शाम को मै मुक्त ( ऑफिस से छुट्टी पास ) हो जाऊंगा . पिछले २ सालो में पहली बार ५ दिन से अधिक दिनों के लिए घर ( उन्नाव , उत्तर प्रदेश ) जा रहा हूँ .अक्सर मुझे ये सुनने को मिलता है कि बदल गया हूँ , बहुत भाव खाने लगा हूँ . इन सब की वजह केवल यही है कि पुराने दोस्तों को वक्त ही नही दे पाता था . घर में सारी छुट्टी खत्म हो जाती थी .
इस आभासी दुनिया से बहुत से दोस्त बने है . इस पहले भी मेरी मित्रो की सूची बहुत लम्बी रही है . अक्सर सब से वादा करके भी मिल न सका . अपने प्रिय शहर इलाहाबाद , जॉब लगने के बाद चाह के न जा पाया . पुराने ऑफिस (BSA OFFICE UNNAO, PCDA , LUCKNOW & KGBV , BANGERMAU ) के साथी भी नाराज है . नाराज क्या सम्बन्ध शून्य ही हो गये . पर अब वक्त आ गया है कि कुछ हद तक सभी आत्मीय जनों की नाराजगी दूर कर दूँ .
मै हर किसी से मिलना चाहता हूँ , इलहाबाद , लखनऊ , उन्नाव , मौरावां , के सभी साथियों के कुछ पलो के लिए ही सही पर मिलना चाहता हूँ .दिवाली के बाद में इलहाबाद आने की योजना है,लखनऊ वाले दोस्तों से उससे बाद,UNNAO के दोस्त तो जब चाहे .
अगले माह के मध्य तक छुट्टी पर हूँ . आशा है आप भी पहल करेगे .और हा अगर कोई दोस्त आपको समय नही देता या आप से मिलने नही आता तो इसका मतलब हमेशा बदल जाना नही होता . हर कोई अपने पुराने दिन , पुराने दोस्त , पुरानी जगहों को याद करता है बस वह आज के महानगरीय जीवन के चलते समय नही दे पाता .
नोट : इन सभी मुलाकातों में चाय , नास्ता , मेरी और से ही रहेगा . तो फिर मिलते है किसी सडक , चाय की दुकान पर . याद किया जाय कुछ पुराने दिनों को , यकीनन मन की थकावट को दूर करने का इससे अच्छा तरीका नही होता है . व्यक्तिगत बाते यथा फोन no इनबॉक्स में प्लीज .BE HAPPY IT'S FESTIVAL SEASON ............WISHING YOU ALL FOR DIWALI IN ADVANCE .......GOOD DAY
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