शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

Inequality



कभी कभी जब आप यह सोचे कि आजादी के बाद हमने क्या खोया और क्या पाया तो बहुत हताशा होती है। ऑक्सफेम की विषमता पर जो रिपोर्ट आती है उससे पता चलता है कि आजादी के समय अमीर और गरीब में जो फासला था वह आज के मुकाबले काफी कम था। इसका सीधा और साफ मतलब यह निकलता है कि पिछले 70 सालों में खूब विकास तो जरूर किया पर विकास के लाभ तो समावेशी तरीके से वितरित न कर पाए। एक और जहां साधन -सपन्न लोग ने तेजी से प्रगति की तो दूसरी और समाज के हाशिये पर खड़े लोग , बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्षरत रहे। हम केवल भ्र्ष्टाचार को ही विषमता के लिए दोष नहीं दे सकते है। प्रगति के लिए बुनियादी जरूरत के लिए शिक्षा , स्वास्थ्य , शुद्ध पेयजल , आवास को माना गया है। हमें केवल यह नहीं देखना चाहिए कि ये बुनियादी जरुरते कितने को मिल रही है , हमें यह भी देखना होगा कि इन जरूरतों की गुणवत्ता क्या है। शिक्षा , वह भी है जो सरकारी पाठशाला में दी जाती है , शिक्षा महंगे कान्वेंट स्कूल में भी दी जाती है। पीने का पानी नदी , तालाब , कुआँ , पक्का कुंआ , नल आदि में भी मिलता है और पिया जाता है दूसरी ओर आधुनिक तकनीक पर आधारित आर ओ से भी शुद्ध कर पिया जाता है। इलाज , सरकारी अस्पताल में भी होता है तो दूसरी ओर फोर्टिस , मैक्स , अपोलो जैसे प्राइवेट अस्पतालों में भी। 

कुछ शहरों में  वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है। क्या लगता है कि इसकी मार सब पर बराबर पड़ रही है नहीं , सक्षम लोग एयर शुद्ध करने वाली मशीन लगा रहे है। सक्षम लोग , महंगी कार से चलते है , जिसके अदंर वो साफ सुथरे रहते है पर बाइक से , साइकिल से या पैदल चलने वाले लोगों का क्या। झुग्गी झोपडी में रहने वालो का क्या। विकास की  कीमत आखिर कब तक गरीब , शोषित वर्ग चुकाता रहेगा। हम अक्सर समाचार में सुनते है कि अमुक ने इतने लाख रूपये की रिश्वत ली है , फलां अधिकारी ने इतने लाख की सम्पत्ति जुटा ली पर सोचते है कि इस तरह के लोगों की वजह से ही देश पिछड़ रहा है पर बेस इरोजन प्रॉफिट शिफ्टिंग, राउंड ट्रिपिंग  जैसे जटिल किंतु सुरक्षित तरीके से अरबों , खरबों रूपये की कर चोरी करना , अपने लाभ को टैक्स हैवन देशों में भेजने वाले बड़े कॉर्पोरेट घरानों  , सेलब्रिटी ( पनामा पेपर के अनुसार ) आदि के बारे आम जनता को ज्यादा न तो पता चलता है और न ही फर्क पड़ता है। कोई दो जून की रोटी को तरस रहा है तो कोई अपने परिवार के हर मेंबर के लिए फरारी , ऑडी खरीद रहा है या खरीदने के लिए संपत्ति जुटाने में व्यस्त है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या है क्लाइमेट चेंज या फिर ग्लोबल वार्मिंग। चाहे गर्मी बढ़े या सर्दी , उनके लिए ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। सोचें तो जिन्हें सर पर छत मोहताज नहीं , सोचे वो जिन्हें बदन पर ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   








  

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

Consumer Protection

उपभोक्ता की सजगता सबसे अहम 

 भारत में उपभोक्ता  के संरक्षण  के अनुरूप विविध प्रावधान किये गए है।  इस भावना के अनुरूप ही वस्तु एवं सेवा कर के तहत मुनाफखोरी रोकने के लिए , नेशनल एंटी प्रोफिटिरिंग अथॉरिटी का गठन भी किया है। जो कर दरों में कमी का लाभ , निर्माता की जगह , उपभोक्ता तक पहुंच को सुनिश्चित करता है।  रियल स्टेट सेक्टर में रेरा लाया गया है। इसके बावजूद आम जनता को लूटने व ठगने का दौर जारी है।   आम जनता द्वारा चिकित्सा पर अपनी गाढ़ी कमाई, उपभोक्ता जागरूकता के अभाव के  चलते  बर्बाद हो रही है। दवा के नाम पर तरह तरह से ठगी की जा रही है। नियम से किसी भी दवा को पूरी स्ट्रिप के साथ बेचा जाना चाहिए ताकि हमें पता चल सके कि दवा के दाम , एक्सपायरी व कंटेंट आदि  क्या है।   विदेशों में  ऐसा ही  होता है। भारत में प्रायः 1 गोली , दो गोली खरीदने व बेचने का चलन है। एक आम उपभोक्ता को इससे बचना चाहिए। डॉक्टरों  को कैपिटल लेटर में दवा लिखने के निर्देश है पर इसका अनुपालन शायद ही कोई डॉक्टर करता हो। जैसा कि कहा गया है  ज्ञान ही शक्ति है , बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता की सजगता , सतर्कता ही उसकी शक्ति है। उसे अपने अधिकारों के प्रति हमेशा जागरूक व सजग रहना चाहिए।    

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

Year 2017: An important year of Indian Economic History


वर्ष 2017 पर एक नजर 


वर्ष 2017 भारत के आर्थिक इतिहास में काफी महत्वपूर्ण माना जायेगा।  इस साल के शुरआत में देश विमुद्रीकरण के चलते नकदी की कमी से जूझ रहा था , जिसके चलते असंगठित क्षेत्र के कारोबारी काफी हलकान हुए। जैसा कि शंकर आचार्य ने अपने लेख ( 26 दिसंबर -17 ) को लिखा कि कानपुर , तिरुपुर , लुधियाना जैसे महत्वपूर्ण बिजनेस  हब में इसकी मार सबसे ज्यादा  देखी गयी।   मई और अप्रैल में जब देश में पर्याप्त नगदी हो गयी , एक बार फिर उन्हें बड़े संस्थागत बदलाव की कीमत चुकानी पड़ी।  1 जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर लागु होने से काफी अफरा तफरी मच गयी। हालांकि सरकार ने अपने स्तर से हमेशा ही कारोबारियों की मदद करने के लिए तैयार दिखी। इसका बड़ा और सटीक उदाहरण हम विश्व बैंक द्वारा ईज ऑफ़ डूइंग बिजिनेस रैंकिंग में देख सकते है , जिसमे सरकार ने 30 स्थानों का महत्वपूर्ण सुधार किया। कारोबार की दिशा और दशा जानने के लिए , हम सकल घरेलू उत्पाद में परिवर्तन को भी ले सकते है। भारत ने अपनी पहली तिमाही में अनुमान से कही नीचे वृद्धि दर हासिल की , उसके बाद में थोड़ा सा सुधार हुआ। सार रूप में यह कहा जा सकता है कि इस  साल भारत के कारोबारियों को विविध संस्थागत बदलाव की कीमत चुकानी पड़ी है और उनके  सकल लाभ में  काफी गिरावट आयी है। नए साल में आशा की  जानी चाहिए कि पिछले साल के विविध बदलाव , एक व्यवस्थित रूप में स्थिर होकर , देश की अर्थव्यवस्था की सुढृढ़ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।   

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

रविवार, 24 दिसंबर 2017

Never became part of Crowd

भीड़ का  हिस्सा न बने ।

प्रिय दोस्तों, काफी समय बाद एक आपके लिहाज से एक महत्वपूर्ण पोस्ट करने जा रहा हूँ । वैसे पोस्ट में अपनी ही बात है पर वह आपके भी काफी काम की है ।

टॉपिक से ही पता चल रहा होगा कि मसला क्या है । मैं शुरू से इस बात पर जोर देता रहा कि हमेशा  अपने आप को विशिष्ट माने और इस बात का अपने भीतर attitude भी रखें । लीक से हट कर चले, सोचे और करें बस शर्त यह है कि आप में इतनी समझ होनी चाहिए कि आप कभी भी गलत नही करेंगे ।

आज के समय भेड़ चाल बढ़ती ही जा रही है । आप तमाम लोगों से मिले, बात करे और यहाँ तक कि आप उनसे प्रभावित भी हो जाये पर अनोखापन मिलना काफी दुर्लभ है वजह विचार में नवीनता व अनोखापन तभी आएगा जब आप नई नई किताबों को पढ़ने के साथ साथ चिंतन करने की आदत डाले। चिंतन व मनन की आदत ही आपको भेड़ चाल से रोक सकेगी । जीवन का उद्देश्य सिर्फ स्कूली शिक्षा में दक्षता और एक अदद सरकारी नौकरी नही हो सकता । हो सकता है कि आप हमेशा सफल होते रहे और टॉप करते रहे और आप ने सब हासिल कर लिया पर एक दिन , हाँ एक विशेष दिन आपको यह अहसास हो कि आप में और दूसरों में कोई फर्क नही है ।

बस इतना ही, बाकि टॉपिक असीम है और वक़्त कम । अंत रूसो की महान पंक्ति से करना चाहता हूँ कि व्यक्ति स्वत्रंत पैदा होता है परन्तु सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा रहता है । आशय समझ रहे है न __

आशीष , उन्नाव

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

Books are so precious

दिल है कि मानता नही ।

इन दिनों , मैं हिंदी भाषी क्षेत्र में नही रहता हूँ, इसके बावजूद कोई साहित्य का विशेषांक 17 साल बाद आये तो कैसे भी करके उसको हासिल कर ही लेता हूँ । इंडिया टुडे के शुरू के कुछ विशेषांक , किसी कबाड़ी वाले के ठेले से खरीदे थे , शायद अभी भी पैतृक घर के किसी कोने में पड़े हो । उन दिनों जब मैं ट्यूशन पढ़ाया करता था तो कबाड़ी वाले के ठेले अक्सर मेरे लिए काफी रूचि का विषय होते थे कई बार उनके कुछ पुरानी खाली डायरी, नावेल, सरिता, कादम्बनी आदि के अंक किलो के हिसाब से खरीद लेता था । घर में कुछ रहा हो या न रहा हो जब से मैं बड़ा हुआ किताबों का भण्डार लगा रहा तमाम कॉमिक्स,लुगदी साहित्य और न जाने क्या क्या । अक्सर घरों में दीवाली, होली में साफ सफाई के दौरान पुरानी किताबें कबाड़ समझ कर बेच दी जाती है , आप उनसे बचना , क्योंकि किताबें आपके घर की हैसियत भले न बताये पर आपके वक्तित्व का पता जरूर बताती है ।

आशीष, उन्नाव ।  

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

Two book of Neeraj Musafir

नीरज मुसाफिर की दो किताबे

दो किताबें और आ गयी । अब लग रहा कि काफी लोड हो गया है । अब जब तक सारा खत्म न हो जाये  तब तक कोई नया आर्डर नही ।

आज जो किताबे आई है वो यात्रा विवरण है । नीरज जी के बारे में अभी हाल में ही सुना था फेसबुक पर ।
दुनिया में विरला ही कोई होगा जिसे घूमना पसंद न हो । पर यायावरी करना सबके बस की बात नही । जरूरी नही कि आपके पास बहुत पैसा हो तो घूम सको। ये किताबे कम पैसे में घूमने का विवरण देती है । एक में तो सायकल से ही घूमने का विवरण है ।

समय मिलने पर , मैं भी घूमने का प्लान बना ही लेता हूँ पर अभी तक पुरे मन के साथ नही घूम सका हूँ, कुछ प्रतिबद्धता है ।
भारत सरकार, अपने कर्मचारी को हर 4 साल में भारत घूमने का ख़र्चा देती है (LTC)।
मेरी एक लैप्स हो गयी निकल ही न पायाअब जब भी निकलूंगा  तो एक बार में ही सब खत्म कर दूंगा पता नही जिन्दगीं की   दौड़ भाग कब खत्म होगी ।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

Pushpashpant ji ki ek book

पुष्पेश पंत जी की एक बुक

पहले पहल इनके लेख किसी पेपर में पढ़े थे । बहुत अच्छे लगे थे । फिर इन्हें एक रोज शुक्रवार पत्रिका में कढ़ी के बारे बताते पढ़ा तो चौक गया , लगा कि ir का एक्सपर्ट  आदमी  ये क्या  करने लगा पर कुछ लोग बहुआयामी पतिभा के धनी होते है । पंत जी का लेखन भी बहुआयामी है ।
ये किताब मैंने जून 17 में अमेज़न से ली थी । बुक के आर्डर में भी एक बवाल हो गया था सोचा था उस बवाल पर अलग से पोस्ट लिखूंगा पर वक़्त न मिला । आज जिक्र हुआ तो कुछ बता देता हूँ दरअसल ये बुक का प्राइस 125 रूपये था और डिलीवरी चार्ज 175 रूपये, जबकि मैंने कई बुक एक साथ ली थी ताकि फ्री डिलेवरी मिले । जब आर्डर दिया था तब अमेज़न ने फ्री डिलेवरी दिखाया था ।
मैंने इसके बिल को भी सभाल कर रखा था ताकि अपने तमाम पाठको को अमेज़न की लूट दिखा सकूँ वो किस तरह से ठगते है ।
खैर , मेरी प्रवत्ति तो 10 रूपये भी बर्बाद न करने की है यहाँ तो बात 175 की थी। यह तो वही मसल हो गयी 9 की लकड़ी और 90 रूपये चिराई । अब ज्यादा विस्तार में न बताने का वक़्त नही है बस अंत में हुआ ये कि मुझे सेलर ने सम्मानपूर्वक 175 रूपये का चेक भेज दिया साथ में यह आग्रह कि उसे मैं अमेज़न पर 5 स्टार दे दू । गनीमत यह है उसका नाम नही बता रहा हूँ यही काफी है ।
अब पुस्तक के बारे में।कुछ पुस्तके होती सरल है पर आप चाह कर भी तेजी से नही पढ़ सकते वजह उनमे ज्ञान दबा दबा कर भरा जाता है।इस पुस्तक में बहुत से कांसेप्ट है जो बेहद सरलता से समझाये गए है,
मजा आ गया पढ़ कर , यह अलग बात है देखने में यह बुक बेहद पतली है पर इसको पढ़ने में काफी वक़्त लग गया । कम से कम एक दर्जन बैठक में खत्म हो पायी है । यह पुस्तक सीधा सीधा upsc के mains के gs के कोर्स से जुडी है पर आप इसे शौकिया तौर भी पढ़ सकते है ।

आशीष , उन्नाव ।

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

diwaswapn : A novel by GijuBhai



दिवास्वप्न : गिजुभाई का एक नावेल 


पिछले कुछ दिनों से गिजुभाई का प्रसिद्ध नावेल दिवास्वप्न पढ़ रहा था। वैसे गिजुभाई का नाम शायद आपके लिए नया हो। मैंने भी इनके बारे काफी देर से जाना। ये गुजरात के प्रसद्धि शिक्षाविद थे। इन्होने ने शिक्षण पर बहुत सुंदर पुस्तकें लिखे है। इनका जोर प्राथमिक शिक्षा में अमूल चूल बदलाव पर था।  यह खेल के जरिये शिक्षा देने पर जोर देते थे। रटने पर जोर देने के बजाय , बच्चों को खेल के जरिये सरल तरीके से ज्ञान देने पर जोर था। गाकर , अभिनय , चित्र बनाकर बच्चों को भाषा , व्याकरण , भूगोल आदि विषय को आसानी से बच्चों को सिखाया जा सकता है।  

दिवास्वप्न (1932 ) में प्रकाशित हुआ था। इसमें एक शिक्षक लक्ष्मीशंकर एक विद्यालय में अपने अनूठे प्रयोग करते है। वह बच्चो को साफ सफाई , अनुशासन आदि के बारे सरलता से अपने प्रयोगों के जरिये प्रेरित करते है। उनको , अन्य शिक्षक के प्रतिरोध , व्यंग्य आदि का सामना करना पड़ता है पर अंत में वह सफल होते है।  

आज के समय में भी गिजुभाई जैसे शिक्षको की जरूरत है। पिछले दिनों , मेरी एक मित्र से बात हुयी उन्होंने बताया कि उनकी ढाई साल की बेटी पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगी है। दिल्ली से है वो। कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने की बात सुनी थी पर इतनी कम उम्र में , मुझे बहुत हैरानी हुयी। उन्होंने बताया की 10000 फ़ीस ली है। मेरे ख्याल से इतने रूपये के अगर बच्चे को खिलौने दे दिए जाय या फिर उसे नई नई जगहों पर घुमा दिया जाय तो बच्चे का मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान परिवर्धन भी हो जायेगा।  प्लेस्कूल के नाम पर इन दिनों कम उम्र के बच्चों के मन पर बहुत बोझ डाला जाने लगा है। दिवास्वप्न का डिजिटल अंक , इंटरनेट पर मुफ्त उपलब्ध है। इसके न केवल शिक्षको वरन अभिवावकों के साथ साथ शिक्षा नीति निर्माण से जुड़े लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  




शनिवार, 9 दिसंबर 2017

Vyas prize Mamta kaliya



ममता कालिया जी को व्यास सम्मान दिया गया है । पिछले दिनों उनके एक नावेल दौड़ के बारे में लिखा था ।
व्यास सम्मान उनके नावेल दुखम सुखम् के लिए दिया गया है, आपको अगर यह नावेल पढ़ने की इच्छा हो तो आप गूगल में hindisamay की वेबसाइट पर जाकर उपन्यास सेक्शन में ममता कालिया लिंक पर पा सकते है, दौड़ भी वहाँ पर उपलब्ध है ।.

जल्द ही मैं भी उसे पढ़ने वाला हूँ, आप भी पढ़े और अपनी राय दे तो अच्छा लगेगा ।Ias की तैयारी करने वाले अक्सर अपनी हॉबी को लेकर बहुत sure नही होते । अगर आप भी किसी दुविधा से गुजर रहे हो तो मेरी राय माने और अपनी हॉबी रीडिंग नावेल बना ले , हिंदी या अंग्रेजी अपनी सुविधानुसार । नावेल मैं बताता रहूंगा काफी नावेल ऑनलाइन pdf में free में ही मिल जायेगे । 

इस हॉबी की सबसे खास बात यह है कि ias या pcs में सेलेक्ट न भी हुए तो आपको ज्यादा दुःख न होगा क्योंकि नावेल रीडिंग , आपके जीवन में , आपकी सोच में अलग किस्म का बदलाव लाएगी ।



आशीष, unnao।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

Daar se bichhudi : A novel By Krishna Sobti

डार से बिछुड़ी : कृष्णा सोबती जी का एक नावेल 





कृष्णा सोबती जी को इस साल (2017 ) ज्ञानपीठ अवार्ड दिया गया है। काफी पहले उनके कुछ नावेल पढ़े थे पर समझ न आये , वजह उनकी पंजाबी मिश्रित हिंदी। मुझे कुछ कुछ मित्रों मरजानी का कथानक याद भी है।  

आईएएस मैन्स के लिहाज से भी कृष्णा जी काफी महत्वपूर्ण है। इस साल भी उन पर टिप्पणी  पूछी गयी थी।राजेंद्र यादव द्वारा सम्पादित एक दुनिया समानांतर में भी उनकी एक कहानी  ' बादलो के घेरे ' संकलित है।  

कल उनका चर्चित नावेल , डार से बिछुड़ी पढ़ा।  इसमें पाशो की कहानी है। पाशो , खत्री परिवार में जन्मी होती है पर सारा जीवन उसे भटकना पड़ता है , उसकी माँ शेखों के घर भाग जाती है , इसके चलते पाशो को उसके मामा , मामी बहुत तंग करते है। पाशो एक दिन घर छोड़ कर भाग जाती है , पहले शेखो के घर , फिर बूढ़े दिवान एक घर।  वहां उसे एक बच्चा होता है पर बूढ़े दीवान मर जाते है तो उस बूढ़े दीवान का भाई शोषण करता है और उसे बेच देता है। पाशो , अब जिस घर जाती है वहां पर एक बूढ़ा और उसके 3 बेटे होते है। मझला बेटा पाशो को महत्व देता है। इस दौरान चिलियाँ वाली लड़ाई (1849) शुरू हो जाती है , फिरंगी और पंजाबी लोगों के बीच। एक रोज मझला भी मारा जाता है। पाशो भटकती रहती है। अंत में , उसे उसका भाई , माँ मिल जाती है। तमाम संघर्ष , शोषण के बाद नावेल का सुखद अंत दिखाया गया है। नावेल पढ़ते समय मुझे यशपाल कृत दिव्या याद आया। दिव्या भी इस तरह भटकती और अंत में मारिश के साथ सुखद अंत होता है।  

( चित्र में कृष्णा जी का एक और नावेल ऐ लड़की का भी दिख रहा है। उसको भी पढ़ चूका जल्द ही उस पर भी लिखूंगा ) 

अशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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