शनिवार, 3 जनवरी 2015

PART: 3 सफेद सूट वाली लडकी ?

PART: 3

सफेद सूट वाली लडकी   ?


मुझे पता नही क्या हुआ और मैंने ऐसा DECISION क्यू लिया बस  उस SATURDAY  कॉलेज से लौट कर घर जाने का मन न हुआ।  दिल ने कहा  ये घुटन भरी LIFE अब मै नही जी सकती।  एक ऐसी जिंदगी जिसमे मेरी कोई सहमति नही बस मॉम , डैड की मर्जी के अनुसार चलना। मै क्या करना चाहती हूँ उन्होंने कभी जानना ही नही चाहा।  दिल ने कहा  बस  इस उबन भरी जिंदगी से कही  दूर चली जाऊ जहां मै अपनी शर्तो पर जी सकु , 
स्कूटी STAND पर ही लगी रहने दी।  ऑटो पकड़ कर RAILWAY STATION चली गयी। मुझे पता नही था जाना कहा है।  बस पहले प्लेटफॉर्म पर पहली जो गाड़ी खड़ी थी उसी में चढ़ ली।  COACH के बाहर मैंने ऐसे सीट देख ली थी जहाँ  आसानी से कुछ देर बैठा जा सकता था।  मेरे पास TICKET नही था और चालाकी क्या होती है जानती भी नही पर जब आप अपनी धुन में होते है रास्ते अपने आप सूझने लगते है।  

सीट पर जाकर देखा एक लड़का बैठा था। मुझे देखते ही उसने  मेरे लिए आधी  सीट छोड़ दी।    ज्यादा तो नही पर मुझे इतनी समझ तो  आ  ही गयी थी कि  चिपकू लड़को से कैसे बचा जाय।  सीट पर बैठने से पहले अपना APPLE PHONE कान में लगा कर झूठे ही  फुसफुसाने लगी। इससे दोहरा असर होता एक उसको मुझसे जान पहचान करने का अवसर न मिलता दूसरा मै जताना चाहती थी कि  वो मेरे फ़ोन का SILVER C  वाला एप्पल का लोगो देख ले और समझ ले कि मै  कोई मामूली लड़की नही हूँ। आप सोच रहे होंगे मै किस तरह की लड़की हूँ।    आप मुझे गलत मत समझईये प्लीज जो सच्चाई है वही  बता रही हूँ।  
ये मेरी उम्मीद से परे  थे मुझे सीट पर बैठे ५ मिनट हो गए थे अभी तक उस लड़के ने  एक  बार भी  मेरे चेहरे पर नजर नही डाली थी।  मै अब अपने फ़ोन पर गेम खेलने लगी थी।  मै  चाहती थी कि  मै  व्यस्त दिखू  ताकि वो मुझसे चिपके नही। वो  अच्छी कद और शक्ल  का था।  उसकी एथलेटिक बॉडी को देख कर ऐसा  लगा   कि  किसी आर्मी या पोलिस में जॉब करता है।  कॉलेज के लड़को जैसा नही था।  कोई फैशन नही जैसे किसी छोटे शहर का हो।  मैंने एक  दो बार जब भी चोरी से उस पर नजर डाली वो मेरी ड्रेस  को घूर रहा था। वैसे मेरी ड्रेस घूरने लायक थी आज कॉलेज में BEAUTY CONTEST  था।  उसके लिए मैंने  वाइट कलर का FROCK SUIT पहना था। मेरी ड्रेस इतनी अच्छी थी कि  मै  बता नही सकती।  आम तौर पर मै  JEANS TOP पहनना पसंद करती हूँ।  मै  कम्पटीशन में जीत गयी थी।  मन में इतनी उलझन थी कि DRESS  चेंज किये बगैर मै  अपनी उस जिंदगी से भाग ली।

ये  कैसी उलझन थी ? मै  चाहती थी कि  उसका ध्यान  मेरी तरफ भी  जाये  और  मै  उदासीनता भी दिखा रही थी। उसकी ख़ामोशी अखरने लगी थी।  ट्रैन के कोच की SIDE SEAT पर एक स्मार्ट लड़के एक साथ सीट शेयर कर रही थी और वो लड़का मेरी ड्रेस और बालो में ही उलझा रहे।  मै बात करने के लिए बेचैन हो रही थी।  पागल एक बार मेरे चेहरे पर भी नजर डाल  तो सही मेरी काली गहरी आखो में डुंब न जाये तो कहना।  न जाने कितने लड़को ने मुझसे बात करनी चाही पर मैंने उन्हें कभी भाव न दिया और आज जब मै तुम्हारे बारे में जानने के लिए बेचैन हो रही हूँ तब तू चुप बैठा है। मै  सच में बहुत ज्यादा उत्सुक हो रही थी आखिर ये शक्स है कौन ? 

शायद मै  ही पहल कर उस लड़के से बात शुरू  देती पर तभी  एक और घटना हो गयी।  मेरी  सीट के पास  एक   शख्स आ कर खड़ा हो गया। उसका चेहरा लोहे जैसा सख्त दिख रहा था। BLACK COAT और हाथ में ब्रीफ़केस लिए वो अजनबी किसी विलेन जैसा लग रहा था।  आते ही उसने मुझे सीट से उठा दिया।  मै अपना   बैग उठा कर आगे बढ़ आयी।  मेरे पास कोई विकल्प नही था।  रिजर्वेशन की बात छोड़ो  मेरी पास तो टिकट भी नही थी।  

मुझे  बहुत शर्मिदगी हो रही थी।  उस सहयात्री ने मेरे बारे में क्या सोचा होगा ? मै  कितनी घटिया लड़की हूँ  जो झूठ मूठ  ही उसकी सीट पर अपना अधिकार जता रही थी।  मै कोच में आगे बढ़ आई दरवाजे के पास अपना PHONE  चार्ज करने लगी।  TRAIN में बहुत भीड़ थी।  दिवाली की छुट्टी में सभी अपने अपने घर जा रहे थे।  और एक मै  थी जो अपना घर छोड़ कर जा रही थी।   मै  उस बारे में अधिक सोचना नही चाहती थी।  बस  मैंने जो निर्णय लिया था वो सही था मैंने अपने आप को समझाया।  

रात  के १२ बज रहे थे।  फ़ोन तो चार्ज हो गया था  खड़े खड़े मेरे पैर दुखने लगे थे पर मै  क्या करती मेरे पास उसी जगह खड़े रहने के सिवा  दूसरा विकल्प न था। गाड़ी रुक रही थी शायद कोई STATION आ रहा था।  तभी मैंने देखा मेरा सहयात्री , उस अजनबी साथ मेरी  ओर  चले आ रहे थे।  मै  घूम कर खड़ी हो गयी मै  उसकी नजरो का सामना कैसे करती  ?  

वो दोनों उतर  रहे थे। समझ नही आ रहा था कि  वो दोनों  परिचित है या अपरिचित।  दोनों में कोई बातचीत नही।  बस  अजनबी के पीछे मेरा सहयात्री चला जा रहा था।  मेरी SIXTH SENSE ने कहा  ' कुछ तो गड़बड़ है। '  मैंने अपना CHARGER  निकाल  कर बैग में रख लिया। मै  भी उस स्टेशन पर उतर रही थी।     
       
STORY OF A REAL HERO

( कहानी जारी है >>>>>>>) © आशीष कुमार

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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

PART: 2 हरी सिगरेट वाला आदमी

PART: 2   हरी सिगरेट वाला आदमी


मै काफी उत्सुकता से उसकी ओर देख रहा था । वो कहाँ  से चढ़ा था पता नही और कहाँ  जा रहा था ये भी नही पता। उसका चेहरा इतना भावहीन था कुछ पता नही लग पा रहा था।  उसके कपड़ो में जरा भी सिलवटे नही थी। इतनी रात तरोताजा लग रहा था।  काश उसका सिगरेट वाला ऑफर स्वीकार ही कर लिया होता तो कम  से कम इतनी उत्सुकता न होती। खुद कोई पहल करने की हिम्मत न हो रही थी ऐसा लग रहा था कुछ भी पूछूँगा तो अटपटा जबाब ही देगा। 5 मिनट हो गये थे  उसकी सिगरेट खत्म न हुई।  उसने मेरी ओर सिगरेट बढ़ा दी। अब मना करने का कोई मतलब नही था वैसे भी इस अजीब सिगरेट से धुँआ भी नही निकल रहा था। अगर एक सिगरेट शेयर करने से बातचीत शुरू हो जाती है तो अच्छा है।  मैंने सिगरेट हाथ में ले ली।  आम सिगरेट से जरा लम्बी थी और उसका कलर अजीब लग रहा था।  आमतौर पर वाइट कलर की सिगरेट होती है अगर बहुत एडवांस शौकीन है तो ब्लैक पर यह बिलकुल अलग थी।  रात के ११ बजने को होंगे  डिब्बे में अब धीरे धीरे लोग सोने लगे थे।  मै सिगरेट को लेकर बहुत दुविधा में पड़ गया।  डिब्बे में इतनी रौशनी न थी कि उसका कलर साफ साफ दिख जाये पर इतना जरुर था वो सिगरेट तो नही थी भला वाइट और ब्लैक के अलावा कोई सिगरेट भी आती है। शायद उसने मेरी दुविधा भाप ली थी उसने एक बहुत बारीक़ मुस्कान के साथ वो अनोखी चीज वापस ले ली। मै भी मुस्कराने लगा मैंने कहा दरअसल मै सिगरेट पीता नही।  " किसने कहा ये सिगरेट है ? " उसने जबाब दिया।  यार मै कहाँ फस गया हूँ। इससे अच्छा वो लडकी ही थी कम कम शांति के साथ सफर का आनंद  तो ले पाता। ये न जाने कौन है इतना बेरुखा आदमी आज तक मुझे नही मिला था। उपर वाले ने मुझे भी अच्छी शक्लो सूरत दी है रोचक बाते भी करनी आती है ज्यादा देर नही लगती है अजनबियों से घुलने मिलने में पर इस व्यक्ति से कोई तुक ही नही बैठ रहा था।  जाने दो मेरा स्टेशन कल शाम को आ जायेगा तब किसी तरह चुपचाप बैठ कर काट लेता हूँ। पर वो सच में कोई असाधारण इन्सान था। जैसे ही मैंने शांत बैठने को सोचा उसने मुझसे कहा " मेरा स्टेशन आ रहा है तुम भी उतरोगे क्या ? ".   ये सच में बहुत अजीब इन्सान था।  स्टेशन उसका आया था और पूछ मुझसे रहा था यहाँ उतरोगे क्या ?
मैंने जबाब दिया " मै अनजानी  जगह क्यू उतरु ? "
" अपने स्टेशन पर तो हमेशा ही उतरते हो आज अजनबी स्टेशन पर उतरकर देखो।  अच्छा लगेगा।  " उसने कहा।
बात उसकी सोचने लायक थी।  ऐसा कौन करता है होगा जो अपने स्टेशन पर उतरने के बजाय  बीच में ही किसी अजनबी स्टेशन पर उतर  जाये वो भी बगैर कोई मतलब के। दिवाली का त्यौहार था बस  यही लग रहा था कि  कितनी जल्दी घर पहुंच जाऊ।  मुझे सोचते देख उसने फिर कहा
" इतना मत सोचो।  कभी कभी बगैर सोचे भी कुछ कर के देखो तुम उन रहस्यों को जान सकोगे जो हमेशा अनजाने रह जाते है। "
मै  सम्मोहित  सा हो गया था।  उसकी बातें  बहुत गहरी लगी।  मुझे उसके बारे में जानने की और उत्सुकता होने लगी। ट्रेन  ने हॉर्न दिया और उसकी गति कम होने लगी।  उसका स्टेशन आ रहा था।  रात  के बाहर १२ बज रहे थे।  बाहर बहुत गहरा अधेरा था। कोई छोटा सा स्टेशन लग रहा था।  राजस्थान या मध्य प्रदेश में गाड़ी थी।
वो अजनबी साथी अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और साथ में मै  भी---- पता नही क्यू बस ऐसा लगा कि  मुझे भी इसके साथ जाना चाहिए।  गाड़ी रुक चुकी थी।  मै उस अजनबी के साथ दरवाजे पर आ गया।  अरे.…… वो वाइट सूट  वाली लड़की  अभी भी दरवाजे के  पास खड़ी अपना फ़ोन चार्ज कर रही थी।

( कहानी जारी है >>>>>>>) © आशीष कुमार












 

  

IAS MAINS 2014 GENERAL STUDY PAPER 1 QUESTION 1 SOLUTION


बुधवार, 31 दिसंबर 2014

PART: 1 वो कौन था ?

PART: 1 वो कौन था ?

बहुत मुश्किल से office से छुट्टी मिल पायी थी . Diwali का festival था . इसलिए ट्रेन में बहुत ज्यादा भीड़ थी . AC में टिकट कन्फर्म होने से रहा यही सोच कर sleeper में टिकट थी . अतिंम समय तक RAC ही बना रहा . समझ न आ रहा था कि सहयात्री कौन होगा और कैसा होगा .

समय से पहले ही स्टेशन पहुच गया था . बहुत साफ सुथरा station था . इन दिनों वाकई काफी साफ सफाई पर जोर दिया जाने लगा है . डिब्बे में जाकर अपनी सीट देखी . साइड सीट थी . ऐसा ही होता है जब आप की टिकट RAC में होती है . सामान के नाम पर एक bag था . कुछ दिनों के लिए ही घर जाना हो रहा था .
धीरे धीरे लोग आना शुरु हो गये . साथ ही वेंडर  , भिखारी  भी . ट्रेन चलने को हुई तब भी मै अपनी सीट पर अकेला था . अगले स्टेशन पर मेरी सहयात्री आयी . यह मेरी सोच से परे था . सोचा था कोई बन्दा होगा . सफर बातचीत  में कट जायेगा . पर यह कोई MBA की स्टुडेंट थी  और थोड़ी देर जता भी दिया . जब हो आयी तब उसके कान के फोन लगा था . मुझे सिल्वर एप्पल दिख था . कुछ देर बाद फ़ोन कान से हाथ में आ गया . अब शायद what app या फेसबुक पर वो बिजी थी . यह एक अवसर था मै  उसे अच्छे देख सकूँ।

किसी किसी के कपड़ो की पसंद कितनी अच्छी होती है। white color का एक लांग  सूट पहन रखा था।  मेकउप भी था पर बहुत सादा। एक छोटी सी बिंदी भी। बाल  बहुत सिल्की , काले, और लंबे।  सच कहूँ  को तो किसी के काले , सिल्की और अच्छे से सवाँरे बाल  मुझे जल्द ही मुग्ध कर देते है। मेरी नजर से वो लड़की बहुत खूबसूरत लग रही थी। मन हुआ कि  बातचीत शुरू  की जाय  पर ऐसा कुछ वजहों से रुक गया। एक तो वह बिजी थी दूसरा कोई भी मुझे तक ही अच्छा लगता है जब तक वो बोलता नही है। बोलने के बाद असाधारण लगने वाले बहुत कम ही है , यह धारणा  न जाने कब बन गयी।  खैर वो अपने में  बिजी रही और मै उसे अपनी किसी कहानी की नायिका समझ कर , उसके कपड़ो,  हाव भाव को देखने , समझने में व्यस्त।

रात के दस बज चुके थे। मौसम गुलाबी ठण्ड का था।  बगल  की सीट में कुछ सत्संगी लोग भजन जैसा कुछ गा  रहे थे।  दिक्क़त  तो सभी को हो रही थी पर कौन जा कर उनसे उलझे।  हम दोनों यात्री  सीट पर  , अपने पैर समेटे बैठे थे। समझ नही आ रहा था कि  रात  कैसे कटेगी ?
ठीक इस समय वो आया।  मेरी ही कद काठी और उम्र का था। सीट के पास  आते ही बोला " यह मेरी सीट है। " मैंने लड़की की ओर  हैरानी से देखा।  वो जरा सा विचलित नजर आई।  उसने request कि  उसे अगले स्टेशन पर उतरना है इसलिए कुछ देर उसे बैठे रहने दे पर हमारा नया यात्री बहुत सख्त मिजाज का लगा।  उसने  तुरंत उस लड़की को सीट से उठा दिया। मै  हैरानी से ये सोच रहा था कि  यह लड़की कितनी तेज है उसने बाहर लगी लिस्ट से देख लिया होगा कि  मेरी सीट कहाँ  तक खाली  है ?

मेरा नया सहयात्री बेहद चुस्त और smart लग रहा था।  उसने एक overcoat पहन रखा था।  उसके पास एक ब्रीफ़केस था।  उसने बैठकर मेरी और देखा। ऐसा लगा वो आँखों  से तोल  रहा था।  पर यह तो मेरी  आदत थी।  मै  भी उसकी आँखो  में आँखे  डाल कर उसको जानने की   कोशिस  की।लगभग २ मिनट तक यही चला। मुझे लगा आज मुझे कोई मिला है जो असाधारण है।  उसने चेहरे पर बगैर कोई भाव लाये  पूछा " पियोगे ".
मैंने भी उतनी ही उदासीनता से जबाब दिया " मै  पीता  नही। "  यह बगैर जाने कि  वह किस चीज के पीने  की बात कर रहा है। शायद  सिगरेट , या शराब की बात कर रहा होगा मैंने सोचा। पर हो सकता है वो tea या पानी पीने  के लिए पूछा हो। जाने दो वैसे भी ट्रैन में अजनबियों का  कुछ खाना - पीना नही चाहिए खासकर ऐसे stranger से जो मुँह  से ज्यादा आँखो  से बोलता हो।
कुछ देर उसने अपने कोट से एक cigarette निकाली।  अब हद हो गयी थी।  ट्रैन में सिगरेट-------. अब तो टोकना ही पड़ेगा।  उसने सिगरेट मुँह  लगाई और यह क्या यह अपने आप कैसे जल गयी ? कोई धुँआ  नही क्या यह इलेक्ट्रिक सिगरेट थी पता नही पर अब मुझे अपने सहयात्री से सतर्क रहना था।  क्यूकि उसकी हरकते बहुत अजीब लग रही थी।  

( कहानी  जारी है >>>>>>>)   © आशीष कुमार


सिविल सेवा की तैयारी के दौरान शिथिलता से कैसे बचे ?

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

क्या फर्क पड़ता है ?

क्या फर्क पड़ता है ?


कुछ बहुत सामान्य सी घटनाये बहुत आसामान्य बन जाती है कम से कम 10 साल पुरानी घटना होगी पर मन से मिटी नही ।


शहर से गावं बस से जा रहा था काफी भीड़ थी । एक जगह नवविवाहित युवती बस में चढ़ी । भीड़ काफी थी मेरी सीट के सामने ही खड़ी हो गयी । मेरी नजर उसको देखते हुए कुछ सोचने लगी उसने साड़ी इतने अच्छे से पहन रखी थी उसका जरा भी हिस्सा नजर नही आ रहा था । आमतौर पर इस तरह से साड़ी को लपेटना जिसमे जरा भी पेट नजर न आये ग्रामीण क्षेत्र में आश्चर्य की बात थी । मै मन ही मन उसकी इस बात की प्रशंसा कि कितनी अच्छी है जिसे अंग प्रदर्शन कि जरा भी इच्छा नही है । पता नही मै क्या सोचने लगा था कि यह भारतीय संस्क्रति की प्रतीक है आदि आदि । 5 मिनट बाद उसने अपने ब्लाउज से पान मसाला निकाल कर अपने मुहं में डाला उसके रंगे दंत शेष कहानी बयाँ कर गये ।

इस लोक सभा के चुनाव में ड्यूटी करने के लिए SDM के साथ एक मीटिंग थी । जब उनसे मिलने गया तो अपने ही विभाग के एक साथी भी मिल गये । जूनियर थे । विभाग में जल्द ही आये थे । मीटिंग खत्म होने के बाद तय हुआ कि कुछ चाय पानी हो जाय । ये साथी बहुत स्मार्ट लग रहे थे । एकहरा बदन लम्बे बेहद गोरे और जुबान इतनी मीठी जैसे शहद । पास की tea शॉप पर हम दोनों पहुचे । तब तक साथी ने मुझे गोल्ड फ्लैक की डिब्बी मेरी और बढ़ाते हुए सिगरेट ऑफर की । ऐसे पल मेरे लिए बहुत दुविधा भरे होते है ऐसा नही कि मैंने कभी सिगरेट नही पी पर असहज महसूस होता है मना करू तो वो असहज फील करेगा । "पीता नही हूँ पर साथ दे सकता हूँ " ऐसा बोलना ज्यादा सुरक्षित होता है मेरे लिए ।


 इस विषय में विस्तृत व्याख्या फिर कभी आज to the point बात यह कि क्या फर्क पड़ता है आप क्या है और कहाँ है, आप कितना सुंदर दिखते है ? यह शायद मेरी नादानी नासमझी है जो नशेबाजी को रूप या कुरूपता से जोड़ बैठा । पर मुझे अपने स्मार्ट जूनियर को सिगरेट का लती (15-16 per day) देख बहुत दुःख हुआ ।उसने शुरु क्यूँ कि इस प्रकरण पर फिर कभी पर आपकी इस बारे क्या राय है ?

©आशीष कुमार 

Some interesting post on Facebook

फेसबुक पर कुछ मेरी रोचक पोस्ट


झील पर पानी बरसता है हमारे देश में 
खेत पानी को तरसता है हमारे देश में .
( बल्ली सिंह चीमा )
भारत और इंडिया में अंतर कविता के रूप में


कैसी विचित्र है यह जिन्दगी 

जिसे मै जीता हूँ
एक सडा कपडा जो फटता जाता है 
ज्यों ज्यों सीता हूँ

मन को समझाता हूँ 
क्रांति का पलीता हूँ
( शायद सर्वेश्वर की कविता )



जिन्दगी दो अंगुलियों में दबी
सस्ती सिगरेट के जलते टुकड़े की तरह है 
जिसे कुछ लम्हों में पीकर 
नाली में फेक दूँगा
(सर्वेश्वर )


घूँट घूँट
सायनाइड पीता हूँ
एक घिसे सोल के
फटे जूते का

टूटा हुआ फीता हूँ
(मन को समझाता हूँ क्रांति का पलीता हूँ )
प्रभाकर माचवे
पिछली कुछ पोस्टों की विषय वस्तु जरा हट कर रही है कुछ हुआ नही है मुझे बस हिंदी साहित्य पढ़ा जा रहा है । ये कविताये विसंगति बोध पर है जहा कलमकार को जीवन सारहीन लगने लगता है आजादी के बाद बहुत से लोगो को वैसा जीवन न मिला जैसा वह सोचते थे उसके प्रतिफलन में कुछ ऐसी कविताये लिखी गयी । आज भी उतनी ही प्रभावी है यह कविता की जीवन्तता है । आशा है प्रबुद्ध मित्रो को पसंद आ रही होंगी ।
मैंने उसको जब जब देखा
लोहा देखा
लोहा जैसे तपते देखा
गलते देखा ढलते देखा
मैंने उसको गोली जैसे चलते देखा 
(केदारनाथ अग्रवाल )
सोचो भला कवि के मन में क्या चल रहा होगा जब ऐसी कविता लिखी होगी ? निःसंदेह शोषित दलित मजदूर किसान
बह चुकी बहकी हवाये चैत की
कट चुकी पुले हमारे खेत की
कोठरी में लौ बढ़कर दीप की
गिन रहा होगा महाजन सेंत की
जनवादी कविता यहा पर शोषक महाजन की मुफ्तखोरी का चित्र है ।समय भले बदल गया पर आज भी मेहनतकश वर्ग पर मुफ्तखोर भारी है ।यह विडम्बना ही है कि सामाजिक असमानता बढती ही जा रही है । हमारी smvidhan की प्रस्तावना में , मौलिक कर्तव्य में इससे जुड़े लक्ष्य की पूर्ति कितनी हुई है यह समाज के हाशिये पर खड़े की बेबस मजबूर असहाय व्यक्ति से पूछिए ।
आदमी टूट जाता है एक घर बनाने में
तुम क्यों तरस नही खाते , बस्तियां जलाने में
(शायद बसीर बद्र )

घर सिर्फ मिट्टी, ईट , सीमेंट की संरचना नही होती वरन यह किसी की सपने , उम्मीद , मेहनत का जीवंत रूप होता है. इसलिए वजह चाहे जो हो , गलती चाहे जिसकी हो पर किसी का घर जलना या जलाना दोनों ही दुखद , मार्मिक होता है शायद कुछ ऐसे भी भाव रहे होंगे शायर के . समाज के प्रति ऐसे प्रतिबद्ध लेखन को ही मेरी नजर में वास्तविक साहित्य मानना चाहिए . बाकि तो बाजारवाद है ( हाफ गर्लफ्रेंड का बाजार गर्म है पर मेरी पढने की इच्छा कम ही हो रही है . किसी ने पढ़ लिया तो बताना कुछ है भी या यू ही )

मुक्ति का दिन

अगर सब कुछ ठीक रहा तो आज शाम को मै मुक्त ( ऑफिस से छुट्टी पास ) हो जाऊंगा . पिछले २ सालो में पहली बार ५ दिन से अधिक दिनों के लिए घर ( उन्नाव , उत्तर प्रदेश ) जा रहा हूँ .अक्सर मुझे ये सुनने को मिलता है कि बदल गया हूँ , बहुत भाव खाने लगा हूँ . इन सब की वजह केवल यही है कि पुराने दोस्तों को वक्त ही नही दे पाता था . घर में सारी छुट्टी खत्म हो जाती थी .
इस आभासी दुनिया से बहुत से दोस्त बने है . इस पहले भी मेरी मित्रो की सूची बहुत लम्बी रही है . अक्सर सब से वादा करके भी मिल न सका . अपने प्रिय शहर इलाहाबाद , जॉब लगने के बाद चाह के न जा पाया . पुराने ऑफिस (BSA OFFICE UNNAO, PCDA , LUCKNOW & KGBV , BANGERMAU ) के साथी भी नाराज है . नाराज क्या सम्बन्ध शून्य ही हो गये . पर अब वक्त आ गया है कि कुछ हद तक सभी आत्मीय जनों की नाराजगी दूर कर दूँ .

मै हर किसी से मिलना चाहता हूँ , इलहाबाद , लखनऊ , उन्नाव , मौरावां , के सभी साथियों के कुछ पलो के लिए ही सही पर मिलना चाहता हूँ .दिवाली के बाद में इलहाबाद आने की योजना है,लखनऊ वाले दोस्तों से उससे बाद,UNNAO के दोस्त तो जब चाहे .
अगले माह के मध्य तक छुट्टी पर हूँ . आशा है आप भी पहल करेगे .और हा अगर कोई दोस्त आपको समय नही देता या आप से मिलने नही आता तो इसका मतलब हमेशा बदल जाना नही होता . हर कोई अपने पुराने दिन , पुराने दोस्त , पुरानी जगहों को याद करता है बस वह आज के महानगरीय जीवन के चलते समय नही दे पाता .

नोट : इन सभी मुलाकातों में चाय , नास्ता , मेरी और से ही रहेगा . तो फिर मिलते है किसी सडक , चाय की दुकान पर . याद किया जाय कुछ पुराने दिनों को , यकीनन मन की थकावट को दूर करने का इससे अच्छा तरीका नही होता है . व्यक्तिगत बाते यथा फोन no इनबॉक्स में प्लीज .BE HAPPY IT'S FESTIVAL SEASON ............WISHING YOU ALL FOR DIWALI IN ADVANCE .......GOOD DAY




चलो एक बार फिर से घूमने चले.……………।

चलो एक बार फिर से घूमने चले....


पढ़ाई के दिनों में जब कभी बाहर निकलना हुआ तो बस   exam  के सिलसिले में।   Lucknow , Delhi , Allahabad  और जबलपुर में एग्जाम दिए तो साथ में वहाँ  दर्शनीय स्थल tourist place  भी देख लिए। केवल घूमने के लिए कही  निकलना तो जॉब में आने के बाद शुरू  हुआ खासकर जब से अहमदाबाद , गुजरात में पोस्टिंग हुई। पिछले साल नल सरोवर से शुरुआत हुई  और कच्छ  की  white desert  वाली यात्रा तो जीवन के सबसे यादगार थी।

इस बार भी plan  बन गया है बहुत जल्दी प्लान बनाया गया है सिर्फ ४ दिनों सारी  प्लानिंग की गयी।  बहुत ज्यादा रोमांचित महसूस कर रहा हूँ। दोस्तों के साथ घूमने का अलग ही मजा है।  एक दोस्त का काम है प्लान बनाना , दूसरा बजट देखता है और कुछ सम्पर्क सूत्र तलाशता है ताकि यात्रा में कोई असुविधा न हो।  मेरा काम है यात्रा अनुभव को शब्दबद्ध करना।  सभी लोग अपनी अपनी जम्मेदारी  बखूबी निभाते है और तब बनती है एक बेहतरीन यात्रा। न भुलाये जाने वाले पल।
   
यहाँ  की ठंड बहुत अच्छी है गुलाबी गुलाबी।  घूमने के लिहाज से बिलकुल मुफीद।  दीव , पलिताना , गिर की lion  सफारी , और न जाने क्या क्या। आप ने वो पंक्तियाँ  तो सुनी ही होंगी

सैर कर दुनिया कि ग़ाफ़िल , ये जिंदगानी फिर कहाँ  
जिंदगानी गर रही तो ये नौजवानी फिर कहाँ। 

शुक्रिया  दोस्तों ,इतना अच्छा प्लान बनाने के लिए।  अकेले तो मै  घूमने से रहा सच में ऐसे  दोस्त न  हो तो कभी शायद  ही निकलना हो पाता।

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

हिंदी साहित्य पहला पेपर ( सिविल सेवा मुख्य परीक्षा २०१४)

हिंदी साहित्य पहला पेपर  ( सिविल सेवा मुख्य परीक्षा २०१४) >

अगर साफ न दिखाई पड़ रहा हो तो डाउनलोड कर के देखे .


सोमवार, 22 दिसंबर 2014

टॉपिक : ५२ तीसरा संवाद


          प्रिय दोस्तों बहुत दिनों बाद आप से   रूबरू हो रहा हूँ। अरसा हो गया  आप से बातें किये  हुए।  सोचा था कि   हर ५००  लाइक के  गुणक में आप से संवाद करुगा पर बहुत व्यस्त रहा , इसके चलते आप को 26  सितम्बर के बाद से नई , टॉपिक वाली पोस्ट पढ़ने को नही मिली।  इस बीच कुछ लोग ने मेसेज भी किया कि  बहुत दिन हो गए कोई स्टोरी पढ़ने को नही मिली।  दोस्तों , अब इंतजार खत्म हुआ आप जितना पढ़ने के लिए बेकरार थे उससे ज्यादा मै  लिखने के लिए  बेचैन था।  हर रात  मै  यही सोचा करता हूँ कि  मुझे क्या क्या लिखना है ?

लिखना सच में बहुत अजीब होता है।  बहुत बार एक बार में आप बहुत अच्छा , रोचक लिख सकते है तो कई बार घंटो लिखना और काटना ------  ।  जब कभी मै  सोचता हूँ इतने बड़े और अच्छे लोग मेरा मतलब प्रतिभाशाली लोग इस पोस्ट को पढ़ेंगे तब जरा सा नर्वश  महसूस करने लगता हूँ आपको पता है यहाँ  काफी नामचीन लोग है।  मैं दो लोगो का जिक्र कर रहा हूँ एक साथी kbc  के बड़े विनर है दूसरे देल्ही  के नामचीन कॉलेज के प्रोफेसर --------। ऐसे बहुत से लोग है जिनको यहाँ देखकर वाकई हैरानी होती है मैंने शुरू  के ५० लोगो से सिवा  किसी को पेज लाइक  करने के लिए बाध्य नही किया बस  स्वतः लोग आते गए। 

शुक्रिया , दोस्तों आपके यहाँ होने के लिए।  मेरे पुराने दोस्त जानते है मैंने आज तक कभी भी चलताऊ , सूचना  नही पोस्ट की। मेरी कोशिस हमेशा रही है आपको वो दूँ जो आपको कही  नही मिलता है।  अनुभव----- सूचना  से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और यही चीज है जो आपको कोई देना नही चाहता है। इसी लिए इस पेज को मै अलग मानता हूँ। 

खेद के साथ कहना पढ़ रहा है पिछले दिनों दो लोगो को ब्लॉक करना पड़ा। जैसे जैसे लोग बढ़ेंगे ये चीजे शुरू  होनी ही है। वजह आप से शेयर कर लूँ  , कभी कभी लोग कमेंट में पोस्ट से इतर  बात करते है या कभी कभी किसी पेज या ब्लॉग का लिंक दे कर प्रचार करते।  ऐसे लोगो की यहाँ जगह नही , प्लीज सॉरी।  कोई भी चीज कितनी अच्छी क्यू न हो उसको प्रचार के माध्यम से थोपना मेरे ख्याल से उचित नही है। आप में गुणवत्ता होगी तो लोग स्वतः आपको महत्व देंगे। 

नया साल आने वाला है कुछ नई चीजे की जाय। मुझे ठीक याद नही कितने लोगों  ने मुझसे तैयारी करने के सम्बन्ध में संपर्क किया। सभी के एक जैसे प्रश्न थे मुझे टिप्स दे दो , किताबे बता दो , आपके पास नोट्स है क्या-----या ऐसे ही कुछ।  सच कहूँ  मै  कुछ और अपेक्षा कर रहा था।  मुझे लगता लोग वो क्यू नही पूछते जो सबसे जरूरी है।  खैर कुछ दिन हुए , किसी ने मुझसे  सम्पर्क किया और ठीक वही  प्रश्न पूछे  जिनकी मै  अपेक्षा कर रहा था। 

मैंने कई बार कोशिस  की है यहाँ  पर   आप सक्रिय सहभागिता करे पर अफ़सोस -----। आप एक बात बताये लाइक  करने से या nice  पोस्ट लिखने से आपको वाकई कुछ फायदा होता है।  पिछले माह मैंने कई answer लिख कर पोस्ट किये।  अपने बहुत अच्छा रिस्पांस दिया , शुक्रिया। पर ज्यादा अच्छा होता कि  आप भी एक आंसर लिख कर अपलोड करते।  मुझे पता था कि  मेरे आंसर बहुत ज्यादा अच्छे नही है पर मुझे लिखना था बगैर यह सोचे कि  लोग क्या कहेंगे। बहुत टाइम लगता है इसमें मुझे पता है पर इससे गुजरे आप पार  नही पा  सकते है।  

एक बार फिर , उत्तर लेखन अभ्यास फिर शुरू करने का इरादा है। अगर आपको प्रतिभाग करना है तो आपका भी स्वागत है। मै आपको एक सॉफ्टवेयर बताउगा।  उसको अपने एंड्रॉयड  मोबाइल में डाउनलोड करके आप बहुत आसानी से अपने नोट्स में लिखे आंसर , अपलोड कर सकते है।  शुरुआत इस साल के सिविल सेवा ( मुख्य ) परीक्षा के प्रश्नो से करनी है। 

कुछ पुराने वादे  भी पूरे  करने है।  मैंने एक पोस्ट में आपसे पूछा था कि  सफलता के लिए सबसे जरूरी क्या होता है ? आप ने अपने अपने उत्तर भी पोस्ट किये थे पर मैंने अपना जबाब न दिया था।   मैंने वादा  किया था कि  एक मोटिवेशनल सीरीज लिखूँगा।  लिखने का मन बनाया पर मन ठीक से तैयार न था उस तरह की पोस्ट लिखने के लिए मन बहुत शांत और स्थिर होना बहुत जरूरी है। व्यस्त तो मै हमेशा  ही रहता हूँ पर इस साल जून से लेकर अगस्त तक , जिंदगी बहुत उथल पुथल से भरी रही। कुछ सबसे चुनौती भरा समय था अब जाकर कुछ मौसम शांत हुआ है सब कुछ ठीक रहा तो वो मोटिवेशनल सीरीज जल्द पूरी करनी है।  

मैंने एक बार आने वाली पोस्टो के बारे में लिखा था।  उसमे एक टॉपिक था " जिंदगी के साथ प्रयोग मत करे " . उसकी भी काफी समय  पहले किसी  ने माँग  की थी।  टॉपिक काफी उलझन भरा है पर कुछ सुलझाने की कोशिस  करुँगा।बातें  बहुत सी है उनका अंत नही है।  बहुत दिनों बाद मुखातिब हो रहा हूँ तो ऐसा होना  स्वाभाविक है।  आशा है पुरानी आत्मीयता बनी रहेगी। आप बताइये कैसे है और क्या चल रहा है ? आप के लिए अच्छे , सुखद , खुशनुमा समय की शुभकामनाओं  के साथ विदा -----। बहुत जल्द ही एक रोचक , प्रेरणादायक पोस्ट के साथ मिलता हूँ।   

A post regarding Vodafone ad

वोडाफ़ोन के बहाने 

कुछ चीजे कभी कभी इतनी चौका जाती है कि पूछिए मत . एक साथी को ऑफिस में वोडाफ़ोन कि नयी कॉलर tune के लिए इतना ज्यादा  बेचैन देखा  , बहुत देर तक सर्च करते रहे पर अंततः हार मान कर बोले " भाई जो भी हो है बहुत मस्त tune "मुझे भी वोडाफ़ोन के तीन नये ऐड याद आ गये . इतने अच्छे और हट कर है कि चाहे जितना देखो उबन नही होती .मुझे वो पुराने ऐड याद है जिसमे एक छोटा कुत्ता हमेशा आपके पास कुछ जरूरत की चीज लेकर खड़ा रहता था . खास कर वो जिसमे एक छोटी सी लडकी को चोट लगी होती है और डॉगी बैंडेज का बॉक्स  लेकर खड़ा रहता था .

फिर आये जूजू . क्या कमाल का कांसेप्ट था . कितनी तरह के वो ऐड बनाये गये थे . आम  तौर पर लोग ऐड आने से उबते है पर मुझे इतने ज्यादा भाए कि यू ट्यूब पर कितनी ही बार देखा .इन दिनों तीन नये ऐड आ रहे है वोडाफ़ोन के . तीनो थीम बहुत हट और बहुत अलग है .पहले में एक गली में बैंड बजाने वाला  आदमी कुछ बजा रहा होता है लोग उसे अनसुना कर रहे है फिर वो आदमी ढेर सारे यंत्रो को मिलकर कुछ अलग और नये अंदाज में पेश करता है और इस बार भीड़ उसे सुनने के लिए जमा हो जाती है . इस भीड़ में एक आदमी है हरे रंग का चश्मा लगाये . उसकी हँसी की स्टाइल ही अलग है .

दूसरा वोडाफ़ोन के ऐड उसी हरे चश्मे वाले व्यक्ति से शुरु होता है इस बार एक जूस बनाने वाली बड़ी सी लकड़ी की मशीन है सारे गावं वाले अपने अपने घरो से फल लाकर देते है . एक व्यक्ति एक संतरा जिस भाव से देता है उसको आप महसूस करिये . खैर जूस तैयार होता है और डॉन ( हरे चश्मे वाला व्यक्ति ) उसको चखता है चारो तरह खामोशी है फिर एक जर्बदस्त शोर उठता है जूस लाजबाब है काश थोडा हमे भी चखने को मिलता ...

तीसरा और मेरी नजर में सबसे बेहतरीन ऐड वो है जिसमे एक चोटहिल व्यक्ति एक गावं पहुचता है वहां के गाव वाले उसकी सेवा , आवभगत करते है उनका पंखा भी बहुत अलग है और अंत में एक गाड़ी आती मैंने आज तक वो गाड़ी नही देखी है बड़े से पहिये है और उसमे बीच में बैठ कर आपको अपने हाथो से उसे चलाना है . मैंने इसके बारे में खूब सोचा ऐसा लगा प्राचीन समय में शायद ऐसी गाड़ी चलती रही होंगी ..... आज के समय भी वैसी गाड़ी कहा चलती है ? आपको कोई जानकारी है क्या ?

तीनो ही ऐड अपनी पुरानी और अलग थीम के चलते मन में कुछ ऐसे बैठे कि एक पोस्ट ही लिख डाली . वैसे तीनो से ही आपको बहुत सीख मिलती है .

पहले से ....... सफल होने के लिए लाइफ में आप को हट कर और मौलिक सोचना होगा

दुसरे से  ....... साथ मिलकर ही आप अलग तरह का स्वाद ले पायेगे .

तीसरे से ..... कभी कभी अजनबी लोगो को अपनी सेवा , आवभगत से हैरान से कर के      

                  देखिये ..आपकी जिन्दगी की उबन दूर हो जाएगी .

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