गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

success mantra




अच्छा आप लोगो ने कौन कौन कोर्स की किताबो के अलावा किताबे पढने का शौक रखता है . मेरा मतलब नावेल , कहानिया , मैगजीन पढने से है ..
मुझे कभी इन सबका का बहुत शौक हुआ करता था सच कहूँ वो भी क्या life थी . आज बस अचानक यूँ फील हुआ कि अब तो सिर्फ कोर्स की किताबे पढने का ही टाइम मिल पाता है .. न जाने कितना टाइम हो गया होगा कोई मन का नावेल नही पढ़ा ..

पिछले साल अप्रैल में डेल्ही जाना हुआ था .. मेट्रो के एक स्टेशन पर मुझे नेशनल बुक ट्रस्ट का बुक स्टाल दिख गया .फिर क्या था उसमे तुरत घुस गया .. ५ किताबे खरीद डाला .सारी सारी कहानियों बुक थी .. बहुत मन से खरीदा पर तब से अब तक उन्हें पढने की जरा भी इच्छा नही हुई .. कई बार उन्हें उठा कर भी देखा पर न जाने क्यों मन ही तैयार नही हुआ ..

अब शायद वो पहली सी आजादी नही महसूस होती है .यह सच है सरकारी जॉब मिलना , इस दौर में भगवान मिलने सरीखा होता है .. इतनी मारा –मारी है जॉब के लिए .. पर एक बार जॉब में आने के बाद ही पता चलता है कि यह तो वो चीज ही नही थी जो सोची थी .. जॉब में रोज का वही ढर्रा रहता है ..

जब कभी भी मेरी चिंतक जी से मेरी बात होती है वो कहते है कि कितना अच्छा है तुम्हे तो २१ साल में ही नौकरी मिल गयी थी पर मेरा उनसे यह कहना होता है कि तुम भले बेरोजगार हो पर पढने के लिए आजाद हो .. तुमको सारा दिन पढना ही है उससे अच्छी क्या बात हो सकती है .. सच तो यह है एक जॉब कर रहे व्यक्ति जो साथ में तैयारी कर रहा होता है के लिए पढाई के लिए टाइम निकाल पाना कठिन होता है .

इसलिए मै उन सभी पाठको को यह कहना चाहता हूँ कि अगर आप को सिर्फ पढना है तो खूब जम कर पढ़े और सोचे कि आप भाग्यशाली है कि आपको सिर्फ पढना है जरा उनको सोचे जो जिन्दगी में चुनौती उठाते हुए भी पढाई कर रहे है मेरा मतलब उनसे है जिन्हें मजबूरी में जॉब करनी पड़ी जिन्हें  अपने मन मुताबिक तैयारी करने के लिए के लिए विरासत का सहयोग नही मिला .

पिछले दिनों मेरी  गूगल हैंगआउट पर अपने एक  रीडर से बात हुई .. उनके पापा की कैंसर में डेथ हो चुकी है ..वो और उनकी माँ .. अकेली लडकी अपनी माँ को भी सम्भाल रही है .. पैत्रक साइबर कैफे को चलाते हुए तैयारी भी कर रही है ..ज्यादा बात तो नही हुई पर यह कल्पना की जा सकती है कि उसके लिए तैयारी करना कितना जटिल होगा .. इसलिए मै हमेशा इस बात पर जोर देता हु कि अगर आप लगन है और कुछ कर दिखाने का जस्बा है तो सफलता कुछ देर से ही सही पर आपके कदम जरुर चूमेगी . ईमानदारी से प्रयास करते रहिये .   



बुधवार, 9 मार्च 2016

chintak ji and an ips' mother

चिंतक जी और एक  IPS की माँ

भागीदारी भवन, लखनऊ  की बात है चिंतक जी घर गये थे लौट कर आये तो बहुत मुदित थे उनकी खुशी राज मुझे कुछ रोज बाद पता चला जब चिंतक जी ने मुझे hostel की तीसरी मजिल पर छत पर शाम के समय बताया कि अब वो एक ips के  direct tuch में रहने वाले है . . उनकी बातो से पता चला कि लौटते समय चितंक जी को ट्रेन में एक महिला मिली थी उस महिला ने जब चितंक जी पूछा क्या करते हो तो चितंक जी बताया “ मै ias की तैयारी कर रहा हूँ ... “ उस महिला ने खुश होते कहा मेरा बेटा भी काफी लम्बी तैयारी के बाद अभी जल्द ही ips बना है इस समय ट्रेनिंग पर है ..” चिंतक जी यह सुनकर बहुत खुश हुए और उनसे , उनके बेटे का नंबर ले लिया .

चितंक जी के पास उन दिनों मोबाइल तो था नही सो उस नंबर को कागज पर बहुत सहेज कर रखे थे . मुझसे बोले अगर तुम चाहो तो यह नंबर दे सकता हूँ पर वो ips किसी से  ज्यादा बात नही करते . मैंने मना कर दिया कि मेरी हिम्मत नही है और मेरे को इसमें कुछ फ़ायदा ही नही दिख रहा है ..

चिंतक जी उन व्यक्तियों में है जो रणनीति बना कर काम करते है .. सफल लोगो के से बात करना ..उनकी एक रणनीति का एक हिस्सा है .. उन दिनों तो ias और ips में चयनित लोगो से मिल पाना और बात कर पाना बेहद कठिन था और फेसबुक का भी ज्यादा चलन नही था .
एक शाम , किसी से मोबाइल मांग कर चितंक जी उस ips को फ़ोन लगाया .. चिंतक जी से उस ips ने बहुत सीमित बात करके यह कहा कि वह बहुत व्यस्त है और फ़ोन काट दिया . चिंतक जी इससे दुखी नही हुए उनको पता था कि ips ऐसे ही होते है रिज़र्व nature के .


chintak ji  &  AN IPS'S  MOTHER  BY IAS KI PREPARATION HINDI ME

मैंने कई बार लिखा कि जिन्दगी में बहुत से अजीबोगरीब चमत्कार होते है . बमुशिकल २० बीते होंगे एक सुबह चितंक जी अख़बार लेकर मेरे पास भागते हुए आये .. एक खबर को दिखाते हुए पढने को बोला ..
खबर यह थी कि हजरतगंज , लखनऊ थाने में एक फर्जी ips को पकड़ा गया . वो ips तब पकड़ा गया जब वह थाने पर अपना रोब दिखाते हुए बोला कि मै ips हु मुझे   चलकर shopping करवाओ  .....पता चला वो फर्जी ips ने इंटरव्यू तो दिया था पर उसमे फ़ैल हो गया था पर उसने अपने घर में भी नही बताया और यही बोला कि वो ips बन गया है .. उसका यह नाटक ७ या ८ महीने से चल रहा था ..
कहने कि जरूरत नही यह खबर उसी ips की थी जिससे चिंतक जी बात की थी . दुख की बात यह थी वो बेचारी माँ भी , अपने लडके की करतूतों से अनजान थी .
पिछले दिनों भी एक खबर फर्जी ias की निकली थी जिसमे कोई लडकी मसूरी में काफी दिनों तक फर्जी आधार पर ट्रेनिंग भी कर डाली थी .

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बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

Learn like this ......

चिंतक जी और ज्ञानी गुरु

क्या आप सोच सकते है कि चिंतक जी जो खुद अहम ब्रह्म हो किसी के , हमउम्र के पैर छु सकते है ......वैसे भारतीय संस्कृति में पैर छूना आदर की बात होती है ..पर इस घटना में पैर छुवाना ,,एक प्रकार से उन्हें नतमस्तक करना था ... यानि इस कहानी में आप देखगे कि बात कि बात में चिंतक जी को किसी के पैर छूने पड़ गये ..
चिंतक जी के बारे में आप काफी कुछ पढ़ चुके है पर अभी तक आपको  ज्ञानी गुरु के बारे में कुछ भी नही बताया है ......दरअसल कई किरदार है एक दुसरे से जुड़े और जीवंत भी .ज्ञानी गुरु के चरित्र को किसी रोज फिर विश्लेषित करेगे आज सीधे कहानी पर आते है ......
CHINTAK JI  AUR  GYANI GURU BY  IAS KI PREPARATION HINDI ME

चिंतक जी का वो पुराना रूम याद है न जो किसी ज़माने में पुरानी  रेलवे कालोनी का था ..उसी रूम की बात है ज्ञानी गुरु भी मेरे भागीदारी भवन , लखनऊ से ही परिचित थे .. वही पर चिंतक जी मुलाकात हुई थी तो जब भी मेरा इलाहाबाद जाना होता ज्ञानी गुरु भी मिलने आ जाते थे ( ज्ञानी गुरु से मेरी ४ सालो से बातचीत बंद है आज लिखते वक्त उनकी बड़ी याद आ रही है ...लगता है मुझे ही पहल करके उन्हें फ़ोन करना होगा ..)
पता नही कैसे हुआ पर मेरे सामने ही जोरदार  बहस शुरू हो गयी . वैसे इलाहाबाद में इस तरह की बहस होना बड़ी स्वाभाविक बात है ..
ज्ञानी गुरु और चिंतक जी इतिहास के एक प्रश्न को लेकर भिड गये प्रश्न यह था कि मुहम्मद तुगलक के राजधानी परिवर्तन का कारण किस ने यह बताया है कि delhi के लोग उसे गाली भरे पत्र लिखते थे ?  बरनी या इब्नबतूता ( अब याद नही यही आप्शन थे या कुछ और ..)
मैंने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि इलाहाबाद में जितना बारीकी से , तथ्य आधारित पढाई कि जाती है उतनी पुरे देश या कहू विश्व में कही नही होती ....इसके पीछे लोक सेवा आयोग की कारस्तानी है .. लगे हाथ बता दू .. uppcs के जैसे सवाल शायद ही कही पूछे जाते हो ..एक नमूना भी देख लो .. एक बार पूछा गया कि गाँधी जी २ गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने जिस जहाज से लन्दन गये थे उसका नाम क्या था ............यही कारण है मेरे जैसे लोग uppcs से हमेशा दूर रहे इस तरह के प्रश्नों से दिमाग का दही हो जाता है ......)
जब चितंक जी और ज्ञानी गुरु में बहस हुई तो मेरे लिए प्रश्न ही नया था पर बहस थी कि गर्म होती जा रही थी कोई हार मानने को तैयार नही था ऐसा लग रहा था मेरे जैसे नैसिखिये के सामने कोई हार कैसे मन सकता है ..
बात इतनी बढ़ गयी कि शर्त लगने लगी तय यह हुआ कि जो हारेगा वो दुसरे के पैर छुवेगा ( मतलब यह कि शिष्यत्व स्वीकार करेगा ) 
ज्ञानी गुरु अपने आंसर के प्रति इतना sure थे कि बोले अमुक बुक का फला पेज खोलो .. ( आज भी ऐसे लोग है जो पेज सहित जबाब रट जाते है )
किताब का वो पेज खोला गया वहां जबाब न था पर उसके अगले पन्ने पर जो जबाब था उसके अनुसार ज्ञानी गुरु ने चितंक जी को परास्त कर दिया था ..
शर्त के मुताबिक चिंतक जी ने ज्ञानी गुरु के पैर छुवे यह कहते हुए कि ज्ञानी गुरु उम्र में बड़े है तो उनके पैर छूने में क्या शर्म.... तो इस प्रकार अपने दो शूरवीरो की कहानी पढ़ी .. ( ज्ञानी गुरु बाद में अपने रटने की विशेष क्षमता के चलते आयोग द्वारा  उप समीक्षा अधिकारी पर चुन लिए गये )

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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

वो गुमनाम लेखिका

अक्सर मै आहा जिन्दगी का जिक्र करता रहता हु पिछले दिनों सैनी अशेष के लेख पढ़े और बहुत प्रभावित हुआ। सोचा इनसे बात करनी ही चाहिए। दिमाग में विचार था कि सम्पादक को फ़ोन कर उनसे नंबर ले लूँगा।  
पता नही क्यू पर मुझसे रहा न गया और मैंने उनको गूगल से खोजना शुरु किया। कुछ ब्लॉग पर उनके कमेंट मिले , फेसबुक पर id भी मिल गयी। id मिलने पर उनकी टाइम लाइन को पढना शुरु किया।  यह एक प्रकार से खोज सी शुरु थी अधिक से अधिक जान लेने का मन था। आखिर उनके लेखो में जो जादू दिखा था वह सच में ही बहुत लाजबाब था।  
टाइम लाइन से ही पता चला कि वो स्नोवा बर्नो के सह - लेखक है। स्नोवा बर्नो -------२००८ के आस पास उनकी कुछ कहानिया हंस में छपी थी। एक - दो मैंने भी पढ़ी थी क्या कमाल की कहानियाँ थी।  बहुत दिनों तक लेखिका के बारे में लोग कयास लगाते रहे कि आखिर एक अंग्रेज इतनी गहरी हिंदी में कहानी कैसे लिख सकती है।  ऐसा माना जाता रहा कि उनका छद्म नाम इस्तमाल कर कोई पुरुष ही यह कहानियाँ लिख रहा है. 

ABOUT CHINTAK JI

     चिन्तक जी के बारे में बहुत से लोगो ने पूछा है पर एक पाठक को वह कहानी इतनी भायी कि मुझे ३ – ४ मेल लिखे . मैंने उन्हें हमेशा जबाब दिया कि समय मिलते है पोस्ट करूगां . पास लिखने के लिए बहुत से विचार होते है पर समय के आभाव में उन्हें लिख नही पाता हूँ . वैसे भी लिखने के लिए फ्री mind होना चाहिए जो आज के दौर में बहुत कम होता है
 .    ABOUT  CHINTK  JI  BY  IAS KI PREPARATION HINDI ME
ज्यादातर लोगो को यह जानने कि उत्सुकता रही है कि चिन्तक जी इन दिनों क्या कर रहे है तो समय आ गया है जब आप को जानकारी दे दू चिन्तक जी ने दिसम्बर १५ में uppcs lower का इंटरव्यू दिया है . पहली बार इंटरव्यू दिया है और उम्मीद की जानी चाहिए उनका सिलेक्शन हो जायेगा .
चितंक जी के तेवर अभी भी वैसे है जैसे पुराने दिनों में हुआ करते थे अब मेरी उनसे बातचीत बहुत कम ही हो पाती है महीने या २ महीने में एक बार पर जब भी बात होती है मुझे ख़ुशी होती है कि अभी भी उनमे बहुत कुछ बाकि है २००६ में पहली बार में आईएएस का pre निकालने के बाद , काफी कोशिस के बाद भी उनका कभी pre नही निकला .

२०१५ में जब ias का पैटर्न फिर से बदला उन्होंने पुरे जोर शोर से , दम लगा कर एग्जाम दिया . एग्जाम के बाद मेरी उनसे फ़ोन पर बात हुई पता चला उनका स्कोर मात्र ८० अंक है यानि इस बार भी उनका होना नही था .. इस बार भी वो ias का मैन्स देने से वंचित रह गये ...अच्छा स्कोर ने कर पाने के कारण भी बताये थे जो मुझे अब याद नही ... वैसे भी आपको पहले की कहानियों से चिन्तक जी के बारे में एक बात बहुत अच्छे से समझ में आ गयी होगी वह बहुत गंभीरता से सोचते और समझते है ..

वो ias के एग्जाम से भले दूर रहे हो पर हमेशा २०१३ में भी मुझसे ias मैन्स के पेपर मागे थे ताकि समझ ले कैसे प्रश्न पूछे जा रहे है इलाहाबाद में उनके परिचितों में दूर दूर तक कोई मैन्स लिखने वाला नही था .. मैंने भी समय निकल कर पेपर्स की कॉपी करवा कर पोस्ट कर दी थी हलाकि यह बहुत झंझट का काम लगा था ..

२०१४ में भी मैन्स के पेपर मागते रहे जब भी बात होती थी वह यह डिमांड करना नही भूलते थे पूरे  साल मै टालता रहा वजह साफ थी मुझे ऐसा लग रहा था कि जब मैन्स लिखना ही नही है तो मैन्स के पेपर के विश्लेष्ण करके  क्या करोगे ... पर उनसे सीधे सीधे कैसे कहूँ कि अब ias  का पैटर्न  बिलकुल बदल गया है .. अब इसमें COMPETITION  भी बहुत बढ़ गया है .

अभी जनवरी में फिर उनसे बात हुई तो बोले होली जब घर आना तो २०१४ और २०१५ के मैन्स के पेपर लाना मत भूलना ... मतलब अभी भी वो ias को छोड़ेगे नही .....मेरे ख्याल से अभी भी उनके २ या ३ चांस बचे है .....देखो क्या होता है ......( अगर कोई पाठक इलाहाबाद से हो और चिन्तक जी ias मैन्स के पेपर उपलब्ध करा सके तो प्लीज संपर्क करे क्यूकि चिंतक जी अभी भी सिंपल फ़ोन रखते है और उनका कोई फेसबुक , जीमेल अकाउंट नही है ..मैंने नेट पर देखने कि सलाह दी थी तो उनका कहना था कि हार्ड कॉपी में देखना ज्यादा अच्छा होता है .....उनके तर्को को मै कभी काट नही पाता हूँ ... उनसे जुडी शेष कहनियाँ फिर कभी ........)

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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

Working under government


आज अहा जिंदगी का फरवरी का अंक लाया। यह मैगज़ीन  मैंने  इसके शुरआती दिनों में पढ़ी थी तब भी ज्यादा समझ में नही आयी थी और इन दिनों भी कुछ खास समझ में नही आती है। यह अलग बात है कि    Nishant Jain , Ias Topper 2015 ने जब से इसके बारे में बताया है तब से इसे फिर से लेने लगा हु। 
इस बार के अंक में एक जापानी कहानी का अनुवाद ' सुंदरी ' आया है। काफी दिनों बाद कुछ पढ़ कर मन को अच्छा लगा।  अरसा हो गया साहित्य को शौक की तरह पढ़े।  

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self dependent  तो १६/१७ की उम्र से ही हो गया था। जब  regular job  २१ साल में लगी।  २२ की उम्र में  central government  में कार्य करने लगा था ।  आज एक बात मै आप से share  करना चाहता हु। पहले पहल जब जॉब लगी बड़ी खुशी हुई। पहले से सारे दुःख दर्द सब दूर हो गए।  सोचा अब खूब पैसे मिलेंगे तो मन चाहे brand के कपड़े , जुते ,  mobile  आदि रख सकूंगा। कुछ हद तक यह सच भी था पर कुछ दिनों ही बाद मुझे एक चीज बहुत खलने लगी।  
 student life  में , दिन में २ घंटे सोना एक अनिवार्य सा नियम है , मुझे भी दिन में सोना बहुत अच्छा लगता है।  रात में पढ़ते पढ़ते १ या २ बज ही जाते है सो सभी दिन में सोते है।  जॉब में आने के बाद यह आदत सबसे ज्यादा परेशान  की।  उस दिन से आज तक कभी  free mind  होकर सो न सका। तो यह है सरकारी नौकरी के नकारात्मक पहलू। हलाकि  क्रेन्दीय सेवा में २ दिन यानि  Saturday , Sunday  छुट्टी होती है इसके बाद भी यह सच है कि  नौकरी में आकर  पहले सी आजादी कहाँ  .

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

No age limits for sucess

इस बार की प्रतियोगिता दर्पण फरवरी अंक में डॉ गोबर्धन लाल शर्मा का इंटरव्यू पढ़ा तो एक बहुत प्रेरणादायक बात पता चली । उनका चयन ras में 9 रैंक पर हुआ है ।
उनकी जन्मतिथि है 15/07/1970 यानि लगभग 45 की उम्र में यह सफलता पायी है।

इससे काफी कुछ सीख मिलती है । मैंने अक्सर कुछ लोगो को एक उम्र बाद हताश होते हुए देखा है शादी बाद तो लगभग न के बराबर लोग तैयारी करते है । सोचते है कि अब जो बनना था बन चुके है पर विजेता के लिए उम्र कोई मायने नही रखती ।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

That day at charbagh railway station

मदद कही से मिल सकती है

वो भागीदारी भवन , Lucknow के दिन थे . बहुत ही तंगहाली मुफलिसी में गुजर रहे थे . hostel  में ज्यादातर लोग इलहाबाद से थे , उनसे बहुत से चीजे सीखी . आपको याद हो मेरी चिन्तक जी से यही मुलाकात हुई थी . इसी जगह पर रह कर मैंने सिखा कि पढाई के लिए कितना त्याग किया जा सकता है .

 Dipawali का Festival  था . कोई इलहाबाद अपने घर नही जा रहा था . मै भी नही जाना चाह रहा था क्यूकि मेरे पास बहुत कम रूपये बचे थे . घर आने जाने में १०० रूपये तक खर्च हो जाने थे . दोपहर तक मै अनिश्चय में था कि घर जाऊ या यही रह कर दिवाली मना लू . शाम होते होते , घर जाने की ललक खूब जागी. मैंने अपना एक बैग लिया और चारबाग रेलवे स्टेशन पहुच गया .

टिकट काउंटर में बहुत लम्बी लम्बी लाइन लगी थी . मै भी एक लाइन में लग गया . मेरे आगे ४०/४५ आदमी रहे होंगे . तभी एक नेपाली जोकि फौजी ड्रेस में था , मेरे पास आकर कुछ कहने लगा .. उसको कोई टिकट कैंसिल करानी थी , जल्दी में था और चाह रहा था कि उसे टिकट खिड़की पर सबसे पहले लग जाने दिया जाय . उसने अपनी मजबूरी बताई कि उसकी वाइफ कही दूसरी जगह वेट कर रही है और उसे जल्दी से जाना है . उसने बोला कि मै लाइन में सबसे से पूछ कर आगे जाना चाहता हूँ ..ताकि उसे कोई गाली न दे ..उसके अनुसार यहाँ के लोग बहुत गन्दी गन्दी गाली देते है ..
मै तो लाइन में बहुत पीछे था मुझे क्या फर्क पड़ता मैंने मुस्कराते कहा भाई जरुर ले लो आपको जल्दी है तो ले लो ... मैंने देखा वो नाटा , गोरा फौजी लाइन में लगे कुछ और लोगो की सहमती लेता हुआ ....आगे तक गया ...
अच्छा ...अगर को कोई लखनऊ या उत्तर प्रदेश को अच्छे से जानता हो तो आसानी से अनुमान लगा सकता कि लाइन पर सबसे आगे आदमी ने ..उस फौजी को क्या जबाब दिया होगा ..

“ घुसो @#%$ के ...लाइन में आओ ..ये कहानी और किसी से पेलना ....” ऐसा ही कुछ जबाब रहा होगा क्यूकि मैंने पीछे से देखा कि आगे माहौल गर्म होने लगा ...  लम्बी लाइन में लगे भले से भले आदमी का मूड भी अल्टर हो जाता है ..

भारत में गाली – गलौच बेहद आम बात है ..आम जन जीवन से लेकर साहित्य ( कासी का असी –कशीनाथ सिंह ) , सिनेमा (  gangs of wasseypur) में यह रची और बसी है .. इनके प्रयोग से प्रयोगकर्ता कुछ विशेष हनक महसूस करता है ..
मुझे हैरानी तब हुई जब वो गोरखा फौजी जो कि गाली न देने की दुहाई दे रहा था.... तैश में आकर गाली देने लगा .. उसकी टिकट कैंसिल नही हो पाई तो वो लाइन में लगे लोगो को अपनी टिकट दिखा कर बोला ... लो इसे बत्ती बना कर अपनी @#$% में डाल लो ..” उसमे अपनी टिकट लपेट कर जमीन में फेक दी और गाली देता हुआ .. वहां से चला गया ..
इस संसार में सबसे जादुई चीज है दिमाग .. ...यह तमाशा तो बहुतो ने देखा पर दिमाग में घंटी मेरे तुरंत बजी ... मुझे टिकट cancellation  के बारे में पूरी तरह से पता नही था फिर भी मैंने जल्दी से वो टिकट उठा ली और लाइन में अपनी बारी की बहुत आराम से प्रतीक्षा की . अपनी बारी आने पर मैंने वो फौजी वाला टिकट .. clerk  को कैंसिल करने को  दिया मुझे लग रहा था कि वो कोई डिटेल या id मागेगा पर उसने बगैर कुछ बोले बताया कि २४० रूपये वापस होंगे ... मैंने उससे अपनी ख़ुशी छुपाते हुए ..एक उन्नाव के लिए टिकट मागी .. उनसे मुझे उन्नाव की टिकट से साथ २२५ रूपये वापस कर दिए ...
मेरी ट्रेन अभी भी कुछ देरी से थी . मै स्टेशन से बाहर आ गया .. मैंने बहुत गहरी सकून भरी साँस ली .. चारबाग के सामने कोने पर एक छोटी सी गुमटी है ...उसके बहुत सी स्वादिष्ट जायकेदार चीजे ..जैसे ब्रेड पकौड़ा , समोसे , छोले  भटूरा ..मिलती है .. . आज याद नही पर उस रोज जो कुछ भी खाया .. बहुत लजीज रहा होगा .

जयपुर में एक दोपहर

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

10 POINTS ABOUT MANREGA HINDI ME

आज से मनरेगा को १० साल पूरे  जायेगे।  परीक्षा की नजर से यह योजना बहुत चर्चित रही है।  लगभग सभी एग्जाम ias  pcs  के pre  , mains  और इंटरव्यू में इससे जुडी बातों  को अक्सर पूछा जाता है।  आज इसके बारे में कुछ पॉइंट्स

  1. संसद से यह एक्ट २३ अगस्त २००५ को पारित हुआ था।  
  2.  यह योजना २ फ़रवरी 2006   को  आंध्र प्रदेश के बंदावली  जिले के अनंतपुर  गावं में सबसे पहले लागू  की गयी थी।  
  3.  jean dreze को इसका नीति निर्माता माना  जाता है।  
  4.  इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा लागु किया जाता है।  
  5. इसमें हर परिवार के एक सदस्य को हर साल 100  दिन का रोजगार देने का प्रावधान है।  
  6.  इसमें महिलाओं  के लिए 33 % आरक्षण का प्रावधान  है 
  7.   15  दिन तक रोजगार मिलने पर , बेरोजगारी भत्ता  दिए जाने का प्रावधान है।  
  8.  2 oct 2009  से इसे mgnrega नाम दिया गया है।  
  9. manrega  के बारे अधिक अधिक जानकारी यहां   से ले सकते है।  
  10.  यह प्रश्न कई बार पूछा गया है जो अक्सर लोगो से गलत हो जाता है - मनरेगा सबके के लिए है या सिर्फ पिछड़े और दलित लोगो के लिए।  उत्तर है सबके लिए जो भी काम करने का इच्छुक हो।  
  11. कार्य की अवधि 07 घंटे और सप्ताह में ६ दिन काम।  
  12.  अब तक 3.13 लाख करोड़ रूपये इस योजना में खर्च किया जा चुके है. 
मनरेगा का  उद्देश्य -

  1.  ग्रामीण रोजगार ताकि शहरों की तरह कम पलायन हो। 
  2. वित्तीय समावेशन। 
  3.  पंचायती राज संस्थाओ की मजबूती।  
मनरेगा की खामियां 

  1.  अवैध जॉब  कार्ड , फर्जी काम के आधार पर धन का घोटाला 
  2. इस योजना में जो भी काम किये गये उनसे कोई आउटपुट न मिल पाना सबसे बड़ी कमी मानी जा सकती है .  

रविवार, 31 जनवरी 2016

an ias motivational story in hindi


डेल्ही का मुखर्जी नगर ......और इलहाबाद .......यह दोनों ही जगह मुझे बहुत प्रिय रही है पर अफ़सोस यहाँ पर कभी लम्बा प्रवास नही रहा बस एक या २ दिन . युवा शक्ति को समझना .. अपनी बारीक़ नजर से देखने के लिए यह सबसे माकूल जगह है ..
सफल – असफल लोगो की कितनी ही कहानियाँ ..कितने ही मिथक .. किस्से इतने रोचक रोचक कि बस आप सुनते ही रहे .

                                        



आज एक भूली – बिसरी कहानी याद आ रही है .. जो किसी ने कही सुनी थी और मुझे सुनाई थी तो इस सुनी सुनाई कहानी की शुरआत होती है डेल्ही के मुखर्जी नगर से ..
कथानायक डेल्ही में रह कर काफी दिनों से तैयारी कर रहे थे कभी pre से बाहर होते तो कभी मैन्स से तो कभी इंटरव्यू से .. काफी हताश हो चुके थे .. तभी उनके जीवन में प्रेम का अंकुर जगा .. उन्हें अपनी नायिका मिल गयी .. तो कथानायक सीनिएर थे और नायिका जूनियर थी .... नायक सारा साल नोट्स , gudience ,, नायिका को उपलब्ध कराते रहे .. और जब अंत में रिजल्ट आया तो आप समझ सकते थे क्या हुआ होगा ... नायिका की रैंक १०० के अंदर थी .. आईएएस बन गयी थी .और कथानायक COMPULSORY  इंग्लिश में फ़ैल हो गये थे ( सबसे से निराशाजनक समय )
इसी दौरान नायक ने किसी मित्र के रूम में रोते हुए अपनी दुःख भरी कहानी शेयर की थी संयोगवश उस रूम में वो साथी भी मौजूद थे जिहोने ने यह कथा हमे सुनाई थी ..
कहानी का यह हिस्सा काफी मार्मिक है .. नायक जब नायिका को बधाई देने गये तो उसने बहुत बेरुखी दिखाई इतना अपमान किया कि वो बेचारे उसी शाम अपने घर कि टिकट कटा कर हमेशा के लिए डेल्ही छोड़ने का मन बना लिया . अपनी बोरिया बिस्तर ले कर स्टेशन भी पहुच गये . ट्रेन में भी बैठ गये तब उनके मन में एक विचार आया इस तरह से वो हार कर , अपमानित हो कर लौट नही सकते ... वो ट्रेन से उतर आये ( निश्चित ही उनके मन में उस समय फैसल खान जैसे विचार रहे होंगे – बाप का,, दादा का ,,, सबका बदला लेगा तेरा फैसल ..)
आगे की कहानी किसी हीरो सी रही ....... उनकी रैंक पता कितनी थी ......अंडर -१० ............ तो इस तरह से उनके दिन बदले ......यह पता नही कि उनकी नायिका ने इस पर क्या टिप्पड़ी थी या फिर नायक ने उसे माफ़ किया या नही .........पर यह कहानी .. मुखर्जी नगर में हजारों के लिए अम्रत सरीखी थी .. और कहानी परम्परागत तरीके से साल दर साल चलती चली आ रही है 



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