सोमवार, 6 अगस्त 2018

Continuity

निरंतरता

जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए निरंतरता सबसे महत्वपूर्ण होती है। सिविल सेवा में चयन के बाद से काफी खालीपन महसूस कर रहा था वजह क्योंकि अब किसी चीज के लिए पढ़ना न था। कोई लक्ष्य नजर न आ रहा था कि अब किया क्या जाय ?

पिछले दिनों कुछ अच्छे दोस्तों की सलाह , सुझाव के चलते अपने लिए कुछ नया काम तलाश लिया है, मजा आ रहा है क्योंकि फिर से पढ़ाई में व्यस्तता बढ़ रही है। देखा जाय तो सीखने के लिए इतनी चीजे है कि आप पूरे जीवन विद्यार्थी बने रह सकते है ।

©आशीष, उन्नाव

रविवार, 29 जुलाई 2018

वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन


हैदराबाद में आयोजित वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन भारत की अर्थव्यस्था के लिहाज से काफी अहम कहा जा सकता है। भारत में स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जा रहा है।  भारत सरकार ने युवाओं को स्वरोजगार के लिए तरह तरह से प्रोत्साहित कर रही है। वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन में महिलाओ की सहभागिता पर फोकस किया गया है। इससे आने वाले समय में भारतीय महिलाओं को वैश्विक स्तर पर अपनी नेतृत्व क्षमता दिखलाने का सुनहरा मौका मिलेगा। 

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

New India


नव भारत की ओर 

योजना का फरवरी 2018 का अंक एक जीवंत लोकत्रंत के लिहाज से अपरिहार्य  , भारत में शिकायत निपटान की नूतन प्राविधियों के बारे में विस्तार से चर्चा करता है। किसी भी राष्ट की प्रगति ,स्थायित्व तथा जीवंतता , वहाँ के नागरिकों की शासन  के प्रति शिकायतो के प्रभावी निपटान पर निर्भर करती है। भारत में सुशासन और विकास पर जोर देने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी ने सभी राज्यों में विकास कार्यो पर सटीक निगरानी रखने के लिए प्रगति संवाद जैसे नूतन व प्रभावी कदम लिए हैं। इसके साथ नागरिक घोषणा पत्र , सेवा का अधिकार , उमंग एप , सभी प्रमुख मंत्रलयों के ट्विटर हैंडल , फेसबुक पेज , सीपीग्राम आदि प्रणाली , नागरिकों की शिकायतों के निपटान का आसान जरिया बन गयी हैं। इनके जरिये 2022 के लिए नव भारत का संकल्प भी पूर्ण किया जा सकता है। जरा हटके  स्तंभ में परमेश्वरन अय्यर जी स्वच्छ भारत के व्यवहार परिवर्तन पर जोर देते हुए सारगर्भित लेख में सभी पहलुओं को समेटा है। निश्चित ही स्वच्छ भारत अभियान , आजादी के बाद लागु योजनाओं में सबसे तेजी से क्रियान्वित होने वाली योजना है। कुल 9 राज्य खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। भारत में 2014 के मुकाबले 2017 में स्वच्छता कवरेज 39 से 77 फीसदी तक पहुंच गया है। आने वाले वर्षों में इसका असर भारतीय नागरिकों के अच्छे स्वास्थ्य पर भी देखा जा सकेगा। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

Health Bima


कैसे कारगर हो स्वास्थ्य बीमा योजना ?

स्वास्थ्य बीमा योजना की सफलता के लिए इससे जुड़े हितधारकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रहेगी। विशेषकर अस्पताल। चुकि हमारे पास इस योजना के पहले अनुभव यही बताते है कि कई अस्पतालों में 30000 रूपये को हासिल करने के लिए तमाम फर्जी ऑपरेशन तक भी कर दिए गए। अब तो 5 लाख रूपये है तो इस पहलू पर काफी सतर्क रहना होगा। सोशल ऑडिट , रियल टाइम मॉनिटरिंग , लाभार्थी के खाते में सीधे लाभ का वितरण, आधार का उपयोग काफी हद तक फर्जीवाड़े पर लगाम लगा सकती है। इस बड़ी योजना में क्रेन्द्र के साथ साथ राज्यों को भी उत्साहपूर्वक शामिल होने पर ही इसे सुचारु रूप से लागु किया जा सकेगा और वास्तव में समाज को सामाजिक सुरक्षा मिल सकेगी। इसके साथ साथ हमें स्वच्छ वातावरण , शुद्ध पेयजल , पौष्टिक भोजन , स्वास्थ्य जागरूकता आदि पर भी जोर देना होगा ताकि हम बीमार ही कम पड़े और अस्पताल जाने की नौबत कम आये।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Budget

कैसा रहा आम बजट 

इस वर्ष का बजट कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है। किसान , गरीब पर क्रेन्द्रित इस बजट ने समय की मांग के अनुरूप कई महत्वपूर्ण फैसले लिए है। देश में पिछले कुछ वर्षो से किसान सबसे ज्यादा पीड़ित व उपेक्षित रहा है। सरकार ने किसानों को उनकी फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने की बात कही है। स्वामीनाथन समिति (2006 ) के अनुसंशा के अनुरूप , इस फैसले को दूरगामी कदम माना जा रहा है। किसानों के लये ऋण 10 लाख करोड़ से बढ़ा कर 11 लाख करोड़ दिए जाने की बात की गयी है।  आयुष्मान भारत योजना के तहत 10 करोड़ परिवारों को हर साल 5 लाख रूपये का चिकित्सा बीमा दिए जाने की घोषणा काफी उत्साहजनक है। 46 उत्पादों पर कॉस्टम ड्यूटी बढ़ा कर सरकार ने घरेलू क्षेत्र को मदद देने का प्रयास किया है। इसका असर रोजगार सृजन पर भी पड़ेगा। शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के मद्देनजर कई बेहद अहम कदम उठाये जाने की बात कही गयी है। समग्रतः यह आम बजट , आम लोगों के लिए बेहद खास रहा है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Bank Fraud

बैंक घोटालों से बचने के उपाय ?
बैंक में घोटाले का सबसे सरल और सक्रिय तरीका अपनी क्षमता से अधिक लोन पास करवाना और उसे चुकाने में हीलाहवाली करना है। इसमें प्रायः बैंक अधिकारियों की मिली भगत रहती है। इनसे बचने का सबसे अच्छा तरीका यही हो सकता है कि किसी भी लोन को पास करने से पूर्व उससे जुडी गारंटी को सटीकता से मापा जाय। फर्जी आधार पर पास लोन में लोन लेने वाले से साथ साथ बैंक कर्मचरियों पर भी तेजी से कार्यवाही की जाय। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी अपनी नियामक वाली भूमिका को और प्रभावी करने की जरूरत है। सात सूत्रीय इंदधनुष योजना को शीघ्रता से लागु किया जाय। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 


शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

Mission Imposible :6

इथान हंट कभी आपको को निराश नहीं करते हैं


MI सीरीज के फ़िल्म की कुछ खास बातें होती हैं। फ़िल्म की शुरुआत में टॉम क्रूज किसी गुप्त, अनजानी जगह पर होते हैं। उन्हें उनकी एजेंसी IMF से संदेश मिलेगा, जो 5 सेकंड में नष्ट भी हो जाता है। उसके बाद एक एक्शन सीन , फिर वही पुरानी जानी पहचानी धुन।

उसके बाद शुरू होता है, विज्ञान, तकनीक, जांबाजी का शानदार मिश्रण। हर बार कुछ खास स्टंट किये जाते है, कभी दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग से कूदना, कभी पानी में 4 मिनट तक सांस रोकना । सुपर बाइक से रोड पर ट्रैफिक की विपरीत दिशा में दौड़ लगाना तो खैर होता ही है। इस बार एक हेलीकॉप्टर का स्टंट सबसे रोमांचक लगा। कहानी तो खैर अलग, उम्दा होती है। दुनिया खत्म होने से, पहले इथान हंट अपनी टीम के साथ खतरे को टाल देते है।मिशन इम्पॉसिबल : फॉलआउट , एक बढ़िया देखने लायक फ़िल्म है। तमाम नई अनोखे गैजेट से भरपूर , फ़िल्म आपको मन्त्र मुग्ध कर देगी।

आशीष, उन्नाव।

मंगलवार, 24 जुलाई 2018

Look your positive side

हर हाल में मुस्कराना है 


आखिरी अटेम्ट होने के कुछ अपने फायदे व नुकसान होते है। रह रह कर ख्याल आता कि अगर अबकी बार मिस किया तो पूरी उम्र आईएएस के लिए तड़पते रहोगे। इसलिए पूरी तरह से कमर कस ली और सकारात्मक चीजो पर नजर डाली। मैंने सोचा, अगर तुम पास हुए और अपने एटेम्पट दुनिया के सामने रखे तो लोग नजीर देंगे। यह सोच, मुझे हर पल मेहनत के लिए प्रेरित करती रही।


आशीष, सिविल सेवा 17 में चयनित

#मोटिवेशनल



Purandar Fort (03), Pune

पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (03 )

आशीष कुमार 

अंततः किले के दरवाजे तक पहुंच गए। अब उसमें कोई लकड़ी का दरवाजा नहीं है। पूरी तरह से सन्नाटे से भरा, अजीब सीलन से भरी महक, गेट में लोहे के पुराने कुंडे में दरवाजे के कुछ अवशेष और न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी। इस दरवाजे तक पहुँचने में पूरी तरह से पसीने से कपड़े गीले हो चुके थे. अब  पुराने पत्थरो की सीढियाँ बनी थी. एक भी सीढ़ी चढ़ी न जा पा रही थी पर अब हम पहुंचने ही वाले थे।  ऊपर जा कर देखा तो कुछ नहीं था। बस पहाड़ , कही कही पर कुछ पुराने दीवारे। यहाँ दूर तराई में गांव छोटे छोटे दिख रहे थे।  

यहाँ से नवनाथ जी कुछ बड़ी रोचक बातें बताई , जैसे पुराने दिनों में इन किलों में हाथी भी रहा करते थे जो बहुतों को आश्चर्य का विषय लगता। लोग सोचते कि इतने ऊपर हाथी कैसे चढ़ कर आते ? दरअसल हाथी के छोटे छोटे बच्चो को ही ऊपर चढ़ा दिया जाता था और वही बाद में बड़े हो जाते थे। किले के ऊपर भी साल/२ साल तक के लिए पानी , अनाज की भी व्यवस्था हुआ करती थी। पुराने दौर में जब सेना की मजबूती घोड़े , हाथी की सेना समझी जाती थी, ऐसे किले जीतना बहुत ही कठिन था। ऊपर तक चढ़कर आने में ही सेना थक जाती फिर वो किसी भी लड़ाई में नकाम रहती। बहुत बार , जैसे ही दुश्मन का पता लगता , ऊपर से बड़े बड़े पत्थर लुढ़का दिए जाते। यही कारण था कि मराठा लम्बे समय तक अजेय बने रहे। 
(ऊपर से तस्वीर तो नहीं ले पाया पर यह ज़ूम तस्वीर बता रही है कि काफी ऊंचाई चढ़नी है )


तमाम लोगों को यह लग सकता है कि यहाँ देखा क्या जाय ? ज्यादातर जगह पथरीली थी. अच्छा हुआ जो नवनाथ जी साथ थे। उन्होंने मुझे ऊपर पानी को इकठ्ठा करने वाली जगह दिखाई। सामने एक जगह पीने का पानी था जो वर्षा से अपने आप इक्क्ठा हो जाता था। दूर पहाड़ी पर एक मंदिर दिख रहा था जो किले का हिस्सा था। वो दिखने में ही बहुत दूर लग रहा था। हिम्मत जरा भी न था कि अब वहाँ क्या जाया जाय। नवनाथ जी जोर दिया और मैंने भी सोचा कि अब यहां तक आ गए तो वहाँ तक भी चला जाय। 

(समझ सकते है कि हम कितने ऊपर चढ़ कर गए थे )

किले का ऊपरी भाग काफी हद तक समतल है। रास्तें में एक परिवार सुस्ता रहा था। हम आगे बढ़े और रास्ते में पानी को इक्क्ठा करने के कई स्थान मिले। मोबाइल बहुत याद आ रहा था कि काश ये सब जगहें , तस्वीरों में कैद कर ली जाये। नवनाथ जी तमाम बातें बताते चल रहे थे , जैसे कि आस पास के युवा कभी कभी किसी खास मौके पर आकर इन पानी की जगहों को साफ कर जाते है। ज्यादतर जगहों पर लगभग 10 लाख लीटर तक पानी जमा हो सकता था। 

मंदिर की सीढ़िया अब पास लगने लगी थी। ऊपर दो आदमी और कुछ बंदर नजर आ रहे थे। पास जाने पर पता चला कि वो दोनों सेना के जवान थे। उनकी ड्यूटी खत्म हो रही थी , अब बाद में कोई दो और जवान आएंगे। इतनी ऊंची जगह पर चढ़ना और ड्यूटी करना , सच में टफ टास्क था। यह शिव जी का प्राचीन मंदिर था। अंदर बहुत सकूँन महसूस हुआ। यहाँ पर हवा बहुत स्फूर्तिदायक थी। सारी थकान दूर हो गयी। और भी तमाम रोचक बातें है पर उन बातों को रहने देते हैं।  काफी लम्बी सीरीज हो गयी है , आप भी पढ़ते पढ़ते तक गए होंगे। बस उपसंहार पढ़ लीजिये अच्छा है। 

लौटे समय इतना थका हुआ था कि डैम देखने का प्लान कैंसिल कर दिया। भोर से पुणे की बस ली। रात 8 बजे पुणे एयरपोर्ट पर था। सबसे ज्यादा कमर और तलुवे दर्द कर रहे थे। नाइके के हलके वाले शूज होने के चलते चढ़ाई में आराम तो मिला पर पत्थरों की चुभन बहुत दर्द दे रही थी। फ्लाइट 11 बजे थी। एक जगह पर मसाज चेयर दिखी। उनके विज्ञापन पर नजर गयी। "रिलैक्स एंड गो" का दावा था कि उनकी मसाज चेयर में 5 मिनट , एक एक्सपर्ट मसाज देने वाले के 30 मिनट के बराबर है। मैंने 20 मिनट वाला , जोकि सबसे बड़ा और फुल पैकेज था , लिया और आँख बंद कर लेट गया। एक एक्सपर्ट मसाज करने वाले के दो घंटे के बराबर मसाज कराने के बाद और एक आम व्यक्ति के पुरे दिन की कमाई के बराबर रुपए देने के बाद जब उठा तो कम से कम कमर और तलुवे की हालत काफी ठीक हो चुकी थी।

पास में चाय वाले से चाय पूछी।
"80 रूपये "
"मिल्क है "
"नहीं मिल्क पावडर है "
"क्या यार इतनी मॅहगी चाय और दूध भी नहीं "
"मिल्क पावडर 600 रूपये किलो वाला है "

इसीलिए एयरपोर्ट पर कुछ लेने से , सिनेमाघर में पॉपकॉर्न खाने से बचता हूँ , उस दिन मन मार कर 600 रूपये किलो वाले मिल्कपॉवडर की चाय पी। पुणे में आखिरी अंतिम घंटे  थे. यहाँ  जीवन में तमाम नए अनुभव मिले थे।  भारत में दक्षिण की ओर इतनी दूर तक पहली बार आया था। बहुत  सारे रोमांचक, सुखद अनुभवों  के साथ यात्रा समाप्त हुयी। 

( समाप्त )

© आशीष कुमार,उन्नाव उत्तर प्रदेश।   

सोमवार, 23 जुलाई 2018

Purandar Fort (02), Pune

पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (02 )

आशीष कुमार 

बाला जी के मंदिर के मंदिर से निकले तो पास के पहाड़ी पर काले काले बादल घिर आये थे, मन में थोड़ी चिंता भी बढ़ी। नवनाथ जी बता चुके थे कि इधर बारिश आती है तो कई कई दिन तक लगातार होती रहती है। मुझे भोर (पुणे का एक तालुका ) में दो दिन हो चुके थे अभी तक तो सब ठीक था। जब गया उसके पहले तक बारिश हुयी थी। खैर बारिश होगी तब देखा जायेगायह सोच कर आगे बढ़ गए। 

रास्ता काफी उतार -चढ़ाव , घुमावदार था। मदिंर से थोड़ा आगे बढ़ने पर ही ऊपर पहाड़ी पर किले की काला ढांचा दिखने लगा था। बहुत दुँधला था। इससे पहले मैंने इलहाबाद का किला (अकबर) , दिल्ली का लाल किला (शाहजहाँ ), रानी लक्ष्मीबाई का किला ( झांसी ), विजय विलास पैलेस ( कच्छ गुजरात , यहाँ पर हम दिल दे चुके सनम की शूटिंग हुयी थी ) , सिटी पैलेस ( उदयपुर) , आगरा का लाल किला देख चूका था। इन सबमें लक्ष्मीबाई का किला /महल सबसे दुर्गम और रोमांचक लगा था। सिटी पैलेस काफी भव्य है और टिकट सबसे ज्यादा महँगी  है।

पुरन्दर की संधि (1665 ) के बारे में आप सब ने पढ़ा ही होगा। यह वही जगह थी। मन में बहुत रोमांच था कि उन्हीं जगहों में घूम रहा हूँ जहाँ लगभग 350 वर्ष पहले शिवा जी के नेत्तृत्व में मराठों ने मुगलों को दर्जनों बार कड़ी चुनौती थी।  इतिहास में मुझे मराठों का समय सबसे रोमांचककारी लगता है। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी " गढ़ आया पर सिंह गया " शायद यह ताना जी की कहानी थी , जिसमें वो रस्सी की मदद से किसी किले को जीत लेते है पर अपनी शहादत की कीमत पर। शिवा जी के बचपन की तमाम कहानी भी पढ़ी है। बड़ी ही कम उम्र में उन्होंने तमाम किले जीत लिए थे।  अब जब अपनी आँखों से ऐसे किले देखने जा रहा था तो महसूस हुआ कि इन किलों को जीतना सच में बहुत ही कठिन था। कठिन क्यों था यह आगे बताऊंगा अभी अपनी यात्रा आगे बढ़ाये।  




यहाँ प्रवेशद्वार से आप किले की धुंधली तस्वीर देख सकते है
(यहाँ प्रवेशद्वार से आप किले की धुंधली तस्वीर देख सकते है )



रास्ता काफी सकून भरा था , भीड़ न थी। चारो तरफ हरियाली थी। खेतों में एक्का दुक्का लोग काम करते नजर आ रहे थे। किला दिखा गया था पर काफी ऊंचाई पर था। पहाड़ी जगहों में दुरी का अनुमान लगाना कठिन है पर कम से कम ४ किलोमीटर के घुमावदार रास्ते में पहाड़ पर चढ़ने के बाद , मिल्ट्री का चेक पॉइंट मिला। आज  ज्यादातर किले सेना के अधीन हैं। नवनाथ ने बताया कि पहले यह किले के दूसरे भाग में थे अब यहां तक इन्होने अपनी मौजूदगी बना ली है। पहले नीचे से ऊपर आने के लिए कोई रोड न थी। लोग ऊपर आने में भी आधा दिन लगा देते थे। 





(ऊपर सेना के पॉइंट से आगे बढ़ने के बाद )



सेना ने बाहर ही बाइक रुका दी और हम पैदल ही आगे बढ़े। ऊपर करीब 500 मीटर दूर किले की दीवारे अब स्पष्ट होने लगी थी। आगे एक और सेना का पॉइंट मिला। यहाँ हम से हमारे हथियार ( मोबाइल ) के लिए गए। बड़ा कष्ट हुआ कि अब आगे कैसे तस्वीरें निकाली जाएँगी। खैर अब अपनी चढ़ाई शुरू हुयी। एकदम खड़ी चढ़ाई , कोई सीढ़ी नहीं , बस पथरीला रास्ता। जोश था , खूब तेजी से चढ़े और थोड़ी ही देर में पस्त हो गए। बाहर से कही कोई गेट नजर नहीं आ रहा था.जंगली पेड़ , पौधों के बीच में हम गुजर रहे थे। बमुश्किल  5  फिट चौड़ा ही  रास्ता होगा। रास्ते में एक जगह एक दादा अपने पोते से के साथ मिले , वह वापस लौट रहे थे और उस जगह रुक का सुस्ता रहे थे। उस जगह पर बिलकुल खड़ी चढ़ाई पर एक शार्ट कट रास्ता था. 20 फिट की खड़ी चढ़ाई चढ़ो या फिर 50 मीटर घूम कर आओ। हमारे मेजबान ने कहा- सर चढ़ना मुश्किल और जोखिम भरा है और थक भी जाओगे। मैंने कहा मै जरूर चढूँगा। महानगरों में इस तरह की  दीवालों चढ़ने के लिए 100/200  रुपए ले लेते है और रस्सी का सहारा भी होता है। नवनाथ इकहरे शरीर के है और उनके लिए यह बहुत आम बात थी। पलक छपकते ही बगैर कोई सहारा लिए , ऊपर चढ़ गए। मैं भी चढ़ा , धीरे से बैठ कर। दोनों ही लोग जूते पहने थे। मुझे जूतों के फिसलने का डर था।


(ज़ूम करने बाद , समझ सकते है कि यह काफी उचाई पर है )


ऊपर नवनाथ बोल रहे थे  कि सर नीचे मत देखना। मेरा जरा भी पैर फिसलता तो काफी नीचे गिरता , मौत तो नहीं पता पर उठने लायक न बचता , इतना निश्चित था। बिलकुल चिपक कर , पत्थर पकड़ कर ऊपर चढ़ा और धीरे धीरे ऊपर पहुँच गया। सांस बहुत जोर से चल रही थी , ऐसा लगा कि 1 किलोमीटर की दौड़ लगा ली हो। खड़ा हुआ और आगे बढ़ा वजह आज रात में ही पुणे से फ्लाइट थी और मुझे कम समय में ज्यादा घूमना था। अगर सुस्ताने लगता तो पूरा किला देखा पाना मुश्किल था। थकान होने के बावजूद बहुत मजा आ रहा था। मैं अपने दोस्तों को मिस कर रहा था , सोच रहा था वो होते और मजा आता। 

जारी>>>>> 

© आशीष कुमार , उन्नाव। 

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