बुधवार, 21 जून 2017

ADHAR CARD



आधार कार्ड की अनिवार्यता

आधार कार्ड को हाल में ही बैंक खाते के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। आकंड़ो के अनुसार 129  करोड़ आबादी वाले भारत देश में 117 करोड़ आधार कार्ड उपलब्ध करा दिए गए है। आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर समय समय पर सवाल उठाये जाते रहे है। 

इससे पूर्व इनकम टैक्स एक्ट की धारा 139 AA के माध्यम से इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए भी पैन कार्ड के साथ आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया गया था। इस मामले में दायर एक याचिका में सर्वोच्च न्यायलय ने हाल में एक फैसला सुनाया है। निजता बनाम सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता में न्यायलय का रुख सरकार के अनुरूप रहा है। 

आधार कार्ड पर सरकार इसलिए जोर दे रही है क्युकि इस कार्ड को बनवाने के लिए व्यक्ति को बायो मीट्रिक पहचान देनी होती है जिसके चलते इस को फर्जी बनवा पाना कठिन है। भारत जैसे देश में विविध योजनाओ में रूपये का बहुत रिसाव होता रहा है। काफी पहले राजीव गाँधी ने कहा था कि दिल्ली से जारी 1 रूपये में मात्र 15 पैसे ही वांछित व्यक्ति तक पहुंच पाते है। चाहे पैन कार्ड हो , या राशन कार्ड या फिर ड्राइविंग लाइसेंस , बड़ी संख्या में लोग फर्जी   तरीके से इसे बनवा लेते है। 

आधार कार्ड का उपयोग निश्चित ही नवाचारी कहा जा सकता है।  आज नहीं तो कल इसे अपना ही पड़ेगा। इसलिए इसका विरोध उचित नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही सरकार को आधार कार्ड के डाटा की गोपनीयता का विश्वास दिलाना होगा।

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।        

सोमवार, 19 जून 2017

A lesson for India

आइसलैंड से भारत के क्या सीख ले सकता है ?


हाल में ही आइसलैंड में महिलाओ के लिए पुरुषो के समान वेतन देने लिए क़ानूनी अधिकार दिया गया है। वह विश्व का पहला देश है जिसने निजी व सरकारी क्षेत्र  महिलाओ को सही मायने में लैंगिक समता  लिए  कानून का सहारा लिया है। अगर को इसे नही मानता है तो उस पर आर्थिक जुरमाना लगाया जायेगा।  विश्व आर्थिक मंच जोकि समकालीन समय का बेहतरीन थिंक टैंक है ने ग्लोबल जेंडर  गैप इंडेक्स में आइसलैंड  को  २०१५ में पहला स्थान दिया था। भारत को इस इंडेक्स में काफी निम्न स्थान था।

वस्तुत भारत में समान कार्य के समान वेतन के लिए नीति निर्देशक तत्व में प्रावधान किया गया है। इसके चलते यह राज्य के लिए बाध्यकारी नही है। यही वजह है कि भारत में निजी क्षेत्र में महिलओं को पुरुषो के मुकाबले निम्न वेतनमान दिया जाता है। इसके चलते भारत में लैंगिक समता एक स्वप्न मात्र है। भारत को आइसलैंड से सीख लेते हुए इस तरह के नूतन विचार को अपनाना चाहिए। इससे न केवल लैंगिक समता आयेगी साथ ही आर्थिक विकास  दर में भी काफी तेजी आयेगी।

आशीष कुमार
उन्नाव उत्तर प्रदेश।  

गुरुवार, 8 जून 2017

QS World University Ranking 2018 & India Education Sector


क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2018 तथा भारत में उच्च शिक्षा की दशा और दिशा 

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2018 में भारत के जिस संस्थान ने उच्चतम जगह पायी है वह है दिल्ली का आई आई टी। इसे 172 स्थान मिला है। रैंक  200 के भीतर अन्य दो संस्थान आईआईटी बॉम्बे , आईआईएससी बेंगलौर  है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति कितनी खराब है। यद्धपि इस रैंकिंग की भी कुछ बिंदुओं पर आलोचना भी की जाती रही है कि इसके मानक पश्चिमी देशों के शिक्षा संस्थानों के ज्यादा अनुरूप है। इस आलोचना में भी कुछ हद तक सच्चाई भी है। इस रैंकिंग में आधे से ज्यादा भार संस्थान की रोजगार प्रदाता की नजर में प्रतिष्ठा को दिया गया है। इस तरह के मानक में भारत के सस्थान पिछड़ जाते है। 

इसके बावजूद भारत की उच्च शिक्षा की बदहाल स्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। भारत में उच्च शिक्षा में कई तरह की गंभीर समस्याए है। हर साल बड़ी संख्या में लाखो की तादाद में इंजीनियर , डॉक्टर निकल रहे है। बहुत अजीब लगता है जब एक उच्च शिक्षित इंजीनियर , प्राइमरी टीचर के लिए जॉब के लिए आवेदन करता है।  बीच बीच में ऐसी भी खबर आती है कि चपरासी के पद के लिए पीएचडी वाले लोगों ने आवेदन किया। यह कल्पना से परे है कि वह व्यक्ति जो शोधकर के किसी सरकारी कार्यालय में बाबू या चपरासी की नौकरी करता होगा उसे कितनी घुटन होती होगी। एक परिचित जिसने एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी की थी लेखपाल की नौकरी करने को बाध्य है। वजह उसे पता है कि सरकारी नौकरी ही , सुरक्षा की गारंटी है। विदेशो में निजी क्षेत्र में भी उच्च शिक्षित लोगो के लिए बहुत अच्छे अवसर होते है पर भारत में भी यह स्वप्न ही है कि निजी क्षेत्र , सरकारी क्षेत्र से अच्छा और सुरक्षित हो सके। 

शिक्षा में गुणवत्ता , उच्च शिक्षा संस्थान में प्रशासन जैसे मसलों पर भारत को ध्यान देने की विशेष जरूरत है। भविष्य में ज्ञान अर्थव्यस्था (KNOWLEDGE ECONOMY ) पर अपनी  महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत को शिक्षा खासकर उच्च शिक्षा को शीर्ष प्राथमिकता देना चाहिए। अभी हाल में उच्च शिक्षा के लिए हीरा (Higher Education Empowerment Regulation Agency) बनाने की घोषणा की गयी है। आशा की जानी चाहिए कि यह पूर्व की खामियों को दूर करने में सहायक होगा। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

100 IMPORTANT TOPICS FOR IAS PRE 2017 ( PART-2)


डिअर फ्रेंड्स , जैसा कि मैंने आपसे वादा किया था। IAS PRE के लिए नए टॉपिक लिस्ट तैयार की है। कैसे है जरूर बताना। YOU CAN ALSO SHARE YOUR NOTES OR TOPIC FOR IAS PRE 2017 IN COMMENT . THANKS


  1. किलकारी योजना 
  2. नई मंजिल योजना 
  3. STRANDED CARBON
  4. BALAMRUTHAM PROGRAM
  5. NARGRID
  6. BHARAT INNOVATON FUND
  7. E-PACE
  8. WORLD BANK WDR
  9. SPECIAL SAFEGUARD MECHANISM
  10. कुरील द्वीप 
  11. आर वी  ईश्वर पैनल 
  12. मानव विकास रिपोर्ट 
  13. ऐरोसोल 
  14. धीरेन्द्र सिंह समिति 
  15. अज़म्पशन द्वीप 
  16. दीपक मोहंती समिति 
  17. नैरोबी पैकेज 
  18. सुगम्य भारत अभियान 
  19. मानव पैपिलोमा वायरस 
  20. sankalp yojna
  21. top scheme
  22. Mission 11 million
  23. kambala
  24. AMAN 2017
  25. महिला शक्ति क्रेंद्र 
  26. टेक इंडिया 
  27. प्रगति 
  28. मदद 
  29. स्ट्राइव 
  30. मिशन अंत्रोदय 
  31. इंद्रधनुष योजना 
  32. राष्टीय रेलवे सुरक्षा कोष 
  33. उदय 
  34. ग्रास रूट इनोवेशन 
  35. सहकारी संघवाद 
  36. राजकोषीय घाटा 
  37. BNHS
  38. PISA
  39. TROPEX 17
  40. STICK 
  41. DISHA  PROJECT
  42. SSM
  43. सक्षम 
  44. सारथी 
  45. रोसेटा मिशन 
  46. डान मिशन 
  47. रैपिड 
  48. हेग आचार सहिंता 
  49. हरित जलवायु कोष 
  50. स्विफ्ट 
  51. बर्न कन्वेंशन 
  52. पाइक विद्रोह 
  53. चरक पूजा 
  54. ऑपरेशन ओमेरी 
  55. वसेनार समझौता 
  56. बाल्टिक इंडेक्स 
  57. अमक 
  58. ऑपरेशन निर्भीक 
  59. मेजेनिन निवेश 
  60. तपन राय पैनल 
  61. दीपक मोहंती समिति 
  62. कटोच समिति 
  63. समर एप 
  64. सफर एप 
  65. प्रोजेक्ट स्वर्ण 
  66. अनुभव सॉफ्टेवर 
  67. नसीम अल बहर 
  68. प्रोजेक्ट ट्रिडेंट 
  69. मालवीय समिति 
  70. सुंदर समिति 
  71. रतन वटल समिति 
  72. बैजेलाल समिति 
  73. वल्चर फण्ड 
  74. मारपोल 
  75. चेंचू 
  76. परजा जनजाति 
  77. जुआंग जनजाति 
  78. डच डिसीज 
  79. जेमू ग्लेसियर 
  80. 547 वीसा 
  81. मानक 
  82. संकल्प 
  83. तनसट उपग्रह 
  84. सोफिया 
  85. सचेत पोर्टल 
  86. ग्रेप्स -3 
  87. कुटुबं श्री 
  88. एडवांस रूलिंग 
  89. डम्पा 
  90. मोरा 
  91. हॉप आइलैंड 
  92. मधुकर गुप्ता समिति
  93. बसदि 
  94. बेल्मोंट फोरम 
  95. भूर सिंह 
  96. ओटावा घोषणा 
  97. मिशन फिंग़रलिंग 
  98. माँ 
  99. शक्ति 
  100. प्रोजेक्ट 15 

बुधवार, 7 जून 2017

Shangai Cooperation Organisation & India


शंघाई सहयोग संगठन और भारत 


शंघाई सहयोग संगठन की इस साल अस्ताना में होने वाली बैठक में भारत को मध्य एशिया के महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन में पूर्ण सदयस्ता मिल जाएगी। 2001 में स्थापित  संगठन मुख्यतः आतंकवाद,सहयोग , सम्पर्क , आर्थिक संबध जैसे मुद्दों पर अपनी प्राथमिकता रखता है। भारत के साथ साथ पाकिस्तान को भी इस बैठक में पूर्ण सदस्य बनाया जाएगा।

मध्य एशिया के देश तेल व गैस से भरपूर समद्ध है। भारत इस संघ के माध्यम से इस देशो के साथ अपने सम्पर्क बढ़ा कर अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती प्रदान कर सकता है। इसके साथ ही वैश्विक आतंकवाद के लिए भारत को अपनी आवाज उठाने के लिए यह मंच बेहद उपयोगी साबित हो सकता है. रूस व चीन इस संघ के बड़े सदस्य है। इसमें चीन पाकिस्तान का और रूस भारत का लम्बे समय से पक्ष लेते रहे है। 

भारत को इस अवसर का सावधानी से लाभ उठाना होगा। उसे न केवल अपने लिए आर्थिक हितों को तलाशना होगा वरन सामरिक व कूटनीतिक पहलुओं पर विशेष महत्व देना होगा। इसके साथ ही सभी सदस्यो को इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि वह आपसी टकराव को इस संघ पर हावी न होने दे वरना इसको अन्य प्रभावहीन  क्षेत्रीय संघ बनते देर न लगेगी।

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 5 जून 2017

Qatar- Saudi: Problems & Issues


कतर संकट : खाड़ी देशो में बढ़ता तनाव 


सोमवार को सऊदी अरब के नेतृत्व में बहरीन ,मिश्र , यमन , लीबिया , सऊदी अरब अमीरात ने कतर से अपने राजनयिक सम्बन्ध तोड़ने की घोषणा की। इन देशो ने कतर पर मुस्लिम ब्रॉदरहुड  से सम्बन्ध रखने का आरोप लगाया है। वस्तुतः इस घटना को इतने सरल तरीके से नहीं देखा जा सकता है। खाड़ी देशो में तनाव की मुख्य वजह शिया -सुन्नी तनाव रहता है जो समय समय पर अलग अलग रूप में उभर कर सामने आता रहा है। कतर ने पिछले दिनों ईरान के पक्ष में अपना ज्यादा लगाव दिखाया है। पहले कतर ने अमेरिका और सऊदी अरब पर ईरान के साथ ज्यादती के आरोप लगाए थे फिर ईरान में हसन रूहानी के पुनः राष्टपति के पद पर चुने जाने पर उन्हें टेलीफ़ोन पर बधाई दी थी। ईरान और सऊदी अरब के बीच लम्बे अरसे से सम्बन्ध तनावपूर्ण रहे है. 
कतर ने दोनों देशो के बीच के तनाव का फ़ायदा लम्बे समय से उठाता रहा है। इस बार उसे शायद अपनी उक्त कूटनीति का नुकसान उठाना पड़े।  2022 में कतर में फुटबाल का विश्वकप का आयोजन होना है। इसके लिए वहां पर बड़े स्तर पर निर्माणकार्य शुरू है। इसके लिए जरूरी सामग्री सऊदी अरब के रास्ते से होकर जाती है। ऐसा लगता है कतर को इस मुद्दे पर काफी समस्या झेलनी पड़ सकती है। 

भारत को बहुत सावधानी से इस मुद्दे पर अपनी नीति की घोषणा करनी होगी। कतर और सऊदी अरब दोनों ही देश भारत के लिए कच्चे खनिज तेज व गैस उपलब्ध कराते है साथ ही यह देश , भारत के प्रवासी मजदूरों के लिए बड़े गंतव्य  भी है. कतर ने हाल में ही काफला प्रणाली को खत्म करने की घोषणा की थी। इससे भारत के प्रवासी मजदूरों के लिए , क़तर में कार्य करने के लिए और बेहतर अवसर मिलने लगे थे।  खाड़ी देशो के बीच बढ़ता तनाव भारत के आर्थिक हितो के लिए नुकसानदायक हो सकता है।   

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

शनिवार, 3 जून 2017

World Peace Index


विश्व शांति सूचकांक 

इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पीस ने हाल में विश्व शांति सूचकांक जारी किया है। इसमें पहला स्थान आइसलैंड तथा अंतिम स्थान गृहयुद्ध , आतंकवाद से ग्रस्त  सीरिया को मिला है। 161 देशों की इस सूची में भारत को 137 स्थान दिया गया है। इससे पता चलता है कि भारत को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। 
भारत को आंतरिक चुनौती यथा नक्सलवाद , आरक्षण को लेकर हरियाणा , गुजरात , आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में गंभीर हिंसा का सामना करना पड़ा है। इसके साथ सीमा की रक्षा के लिए हर वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों पर ख़र्च करना पड़ता है। विश्व शांति सूचकांक के माध्यम से ऊपर वर्णित सस्थान विश्व को यह बतलाता है कि वैश्विक हिंसा के चलते देश अपनी पूरी क्षमता के साथ विकास नहीं कर पा रहे है। अगर हिंसा पर रोक ला दी जाय तो सैन्य ख़र्च कम होगा जिसका इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा , स्वास्थ्य , जलवायु परिवर्तन , गरीबी के उन्मूलन में किया जा सकता है। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   

शुक्रवार, 2 जून 2017

Paris Agreement of climate Change and America


पेरिस जलवायु संधि और अमेरिका का इससे बाहर निकलना 


जैसा ट्रम्प ने चुनाव में वादा किया था और कयास लगाए जा रहे थे अमेरिका ने पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि से बाहर निकलने की घोषणा कर दी। ऐसा करके अमेरिका ने एक प्रकार से वैश्विक नेता के पद से पीछे हटने की बात की है। शीत युद्ध के बाद विश्व का नेतृत्व अमेरिका करता आ रहा है पर अब ऐसा लगता है कि उसकी जगह चीन स्वाभाविक रूप से ले लेगा।  

पेरिस संधि अब तक की जलवायु परिवर्तन पर सबसे महत्वपूर्ण संधि है। इसकी विशिष्ट बात यह कि यह आम सहमति पर आधारित संधि है जिसमे अलग अलग देशो ने स्वैच्छिक रूप से कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की बात कही थी। ट्रम्प ने अपने सम्बोधन में चीन के साथ साथ भारत पर कई तरह के आरोप लगाए है। अमेरिका को यह याद रखना चाहिए कि चीन और भारत अभी विकासशील देश है जबकि अमेरिका ने 100 पहले ही इतना कार्बन उत्सर्जन करने लगा था जिसका परिणाम आज सारा विश्व भुगत रहा है। अगर प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात करे तो अमेरिका अभी भी पहले स्थान पर है। 

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है इसको किसी एक देश की जिम्मेदारी कह कर छोड़ा नहीं जा सकता है। अमेरिका ने कम नौकरी सृजन के मुद्दे पर जलवायु संधि से अलग हुआ है। यह काफी हास्यपद होगा कि पथ्वी के भविष्य की चिंता के बजाय उन्हें नौकरी की पडी है। उन्हें शायद यह अंदाजा नहीं होगा कि चीन या भारत में अभी उपभोक्तावाद नहीं है जितना अमेरिका में है। जो विकसित देश  है उनकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है कि वैश्विक मुद्दों को आम सहमति से सुलझाए। अमेरिका को सीरिया में हस्तक्षेप करने , सऊदी अरब को हथियार बेचने में कुछ गलत नहीं लगता पर जलवायु परिवर्तन संधि उसके लिए हानिकारक है। अंत में यही कहा जा सकता है कि अमेरिका का ट्रम्प के हाथो में ही अंत होगा अर्थात कुशासन , भड़काऊ फैसले , प्रतिकियावादी नीति के चलते भविष्य में अमेरिका को राजनीतिक , आर्थिक व सामरिक मसले पर काफी निम्न स्तर देखना पड़ेगा।  

आशीष कुमार, 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

गुरुवार, 1 जून 2017

Ken-betwa Link Project


केन -बेतवा नदी सम्पर्क योजना 

केन नदी को बेतवा नदी से जोड़ने की योजना को हाल में पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति मिल गयी है। १०,०००  करोड़ रूपये की लागत वाली इस महत्वपूर्ण योजना से कई तरह के लाभ यथा ६ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिचाई , १५ लाख लोगों को पेयजल तथा 50 मेगावाट बिजली के उत्पादन की बात कही जा रही है। इसके साथ साथ बाढ़ नियंत्रण , सूखा प्रबंधन आदि में भी इस योजना से काफी सहायता मिलेगी। 

भारत में नदी जोड़ो योजना को लेकर कई तरह के मतभेद रहे है। नेशनल जल ग्रिड बनाने की बात काफी समय से कही जा रही है। इसमें कुल 30 नदियों के जोड़ने की बात कही जाती रही है। इस तरह की योजना की लागत , पर्यावरण दुष्प्रभाव , विस्थापन आदि समस्याओं को लेकर आशंका जताई जाती रही है। केन बेतवा परियोजना  में भी पन्ना रिज़र्व का काफी हिस्सा जलमग्न हो जाएगा। इसके लिए इस योजना की लागत का 5 फीसदी , पन्ना के संरक्षण पर ख़र्च करने का प्रावधान किया गया है। इस तरह के विशेष प्रावधान , नेशनल जल ग्रिड के लिए एक अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा सकता है।  

भारत जैसे देश में जल प्रबंधन में दक्षता , समय की मांग है। नदी जोड़ो परियोजना , इसके के लिए अच्छा विकल्प हो सकती है। जरूरत है इस विषय से जुड़े हितधारकों से आम सहमति बनाने की। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

World Bank Report : Women Workforce in India

विश्व बैंक रिपोर्ट : भारतीय कामकाजी महिला की दशा और दिशा 

हाल में जारी के विश्व बैंक की महिलाओं पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को 131 देशों की सूची में 120 वा स्थान , भारत की कामकाजी महिलाओं का अर्थव्यस्था में निम्न योगदान दिखलाता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 2005 से हर साल काम होती जा रही है। भारत में महिलाओं के लिए सेवा के क्षेत्र में 20 प्रतिशत से कम रोजगार उपलब्ध है।महिलाओं के लिए कृषि क्षेत्र में ज्यादा रोजगार उपलब्ध है।  

चीन व ब्राजील की अर्थव्यस्था में महिलाओ की भागीदारी की उच्च दर ( 65-70 प्रतिशत) के चलते वहां पर विषमता कम है साथ ही विकास दर भी तेज है।भारत में यह दर मात्र 27 प्रतिशत है। विश्व बैंक के अनुमान के  अनुसार , अगर भारत अपनी रोजगार में महिलाओ के लिए भागीदारी बढता है तो इसकी विकास दर दो अंको में जा सकती है।  
भारत को इसके लिए शिक्षा ,स्वाथ्य जैसे सामाजिक क्षेत्र में काफी निवेश करना होगा। भारत में कामकाजी महिला को दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। उसे नौकरी के साथ साथ घर पर भी सारी जिम्मदारी उठानी पड़ती है।कार्यस्थल पर उसके लिए अभी भी कई तरह की समस्याएं है यद्पि इस दिशा में सरकार ने कई कानून बनाये है। भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान के लिए कई तरह के प्रयास कर रहा है पर उसकी  इन आकांक्षाओं पर इस तरह की रिपोर्ट में निम्न स्थान कई मायनो में सबक देने वाला रहता है। एक चीज और भी ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी सुधार मात्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, क्रन्तिकारी बदलाव के लिए हमे अपने बीच से शुरआत करनी होगी। समय है समाज में महिलाओं के प्रति अपनी जीर्ण मानसिकता में बदलाव लाने की।  

आशीष कुमार , 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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