इंतजार
"मैं थोड़ी देर में करती हूँ"
"अरे कोई नहीं "
" अरे मैं करती हूँ, पक्का"...
और वो हमेशा की तरह उसके फ़ोन का इंतजार करता रहा, यह जानते हुए भी कि घर में हजार तरह के काम होते हैं।
6 जनवरी 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव
इंतजार
"मैं थोड़ी देर में करती हूँ"
"अरे कोई नहीं "
" अरे मैं करती हूँ, पक्का"...
और वो हमेशा की तरह उसके फ़ोन का इंतजार करता रहा, यह जानते हुए भी कि घर में हजार तरह के काम होते हैं।
6 जनवरी 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव
धनिया पत्ती
बात कुछ पहले की है अब उतने महत्व की भी न रही पर लिख ही डालते है। कुकिंग बहुत बहुत पहले से करने लगा था, ज्यों 2 बड़ा हुआ त्यों 2 कुकिंग और ज्यादा व्यवस्थित होती गयी। धीरे 2 समझ आया कि धनिया पत्ते के बगैर तो कुछ भी बना हो स्वाद आता ही नहीं। कहने के मतलब कुछ भी हो धनिया पत्ते के अभाव में सब्जी न बनेगी।
पाठकों में पता नहीं कितने लोग सब्जी लेने जाते है या नहीं पर मुझे यह काम फिलहाल तो खुद ही करना पड़ता है। जब रूम पार्टनर थे तब यह उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी। सब्जी खरीदना भी बड़ी कला है पर मुझसे न होती है। अपन तो कपड़े भी 10 मिनिट में खरीद के निकलने वालों में है फिर सब्जी में कौन जांच परख में दिमाग लगाए। रुकते है वरना सब्जी खरीद शास्त्र लिख डालूंगा, धनिया पत्ते पर आते हैं।
पिछले दिनों मालूम है धनिया पत्ता के दाम कहाँ थे। 400 रुपये किलो यानी 10 रुपये की 25 ग्राम। आम तौर पर धनिया मिर्चा लोग फ्री में डलवा लेते हैं। उन दिनों भूल से भी ऐसी मांग नही की जा सकती थी। सब्जी वाले भड़क उठते थे। अगर आशंका होती कि फ्री में मांगेगा तो अक्सर बोल देते की है ही नहीं।
जैसा कि लोग कहते है कि विक्रेता गाड़ी देख के दाम बताते हैं, तमाम लोग इसी होशियारी में गाड़ी दूर खड़ी करके , फल खरीदने पीछे आते हैं। कुछ ऐसे भाव रहे होंगे जब मैंने उससे वैसी बात की।
उस दिन जब एक ठेले वाले से पूछा -
कि भाई धनिया पत्ती कैसे दिए ?
"40 की 100 ग्राम " उसने सर तक न उठाया , उसके सामने तमाम ग्राहक थे।
" यार कल तो उस ठेले वाले ने तो 30 रुपये में दिया था, क्या गाड़ी देख के दाम बता रहे हो ?" प्रसंगवश मैं रॉयल एनफील्ड से गया था।
" घर में दो दो खड़ी हैं...." ठेले वाले से कुछ ऐसे ही बड़बोले जबाब की ही उम्मीद मैंने की थी, आखिर मैं दिल्ली में खड़ा था।
" भाई, अब तीसरी भी जल्द खड़ी होने वाली है तेरे घर ..." मैंने मुस्कुरा कहा।
"क्या मतलब " सब्जी वाले ने अब सर उठाया।
" कुछ नहीं , तुम अमिधा ही समझ सकते हो, लक्षणा, व्यंजना तुम्हारे बस की बात नहीं" उस सब्जी वाले को, जिसके घर दो दो बुलट खड़ी थी, थोड़ा उलझन में डालकर आगे बढ़ आया।
उसको क्या खबर कि इस दिल्ली में किराए के पैसे से ऐश, मजे करने वालों के बीच ठेठ ग्रामीण परिवेश से आये भी लोग रहते है जो कितना ऊपर उठ जाए, उनसे बेफजूली खर्च चाहकर न हो पाती है।
( रेल सफर के बीच रचित )
9 दिसम्बर, 2019
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश।
उन्नाव
उन्नाव फिर से चर्चा में है, मेरी व्यथा यह है कि यह हर बार अपराध के लिए ही राष्टीय स्तर पर चर्चा में आता है। कहते है जन्मभूमि स्वर्ग समान होती है, अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव होता है। मेरी तमाम तरह से कोशिश होती है कि उन्नाव , पूरे भारत में बढ़िया चीजों के लिये जाना जाय। मेरी पोस्ट के अंत में हर बार जो उन्नाव का जिक्र देखते है उसके पीछे की मंशा उक्त ही है।
कलम व तलवार की धरती उन्नाव को न जाने कब अतीत वाला गौरव मिलेगा। प्रताप नारायण मिश्र, निराला, रामविलास शर्मा व चन्द्रशेखर आजाद की धरती को न जाने किसकी नजर लग गयी है। तमाम बार जब लोग पूछते है कि उन्नाव कहाँ पड़ता है तो कुछ भी बताओ तो लोग शायद ही समझ पाए पर अगर चर्चित रेप कांड का नाम ले लो या फिर वो बाबा के सपने में 1000 टन सोने की खुदाई वाली घटना का नाम ले लो फिर सब समझ जाते है। है न अजीब पर सत्य यही है। यह चीजें इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे तमाम बार काफी बड़े मंचो व अति प्रतिष्ठित लोगों से मिलने पर बड़े गर्व से बताना होता है कि मैं उन्नाव से हूँ।
खैर
अच्छी उम्मीदों के साथ,
आपका ही
आशीष, उन्नाव।
7 दिसंबर, 2019
#unnao #Nirala #azad
मुझे किसी भी सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...